F एवमुक्तो हृषीकेशो / av mukto rishikesho - bhagwat kathanak
एवमुक्तो हृषीकेशो / av mukto rishikesho

bhagwat katha sikhe

एवमुक्तो हृषीकेशो / av mukto rishikesho

एवमुक्तो हृषीकेशो / av mukto rishikesho

 एवमुक्तो हृषीकेशो / av mukto rishikesho

संजय उवाच
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्‌॥१-२४॥

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्‌।
उवाच पार्थ पश्यैतान्‌ समवेतान्‌ कुरूनिति॥१-२५॥

संजय बोले – अर्जुन के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर भगवान श्रीकृष्ण ने दोनों सेनाओं के बीच में उस उत्तम रथ को खड़ा कर दिया और कहा – हे पार्थ! युद्ध के लिए एकत्रित हुए इन कौरवों, प्रमुख रूप से भीष्म और द्रोणाचार्य तथा सम्पूर्ण राजाओं को देखो॥24-25॥

 एवमुक्तो हृषीकेशो / av mukto rishikesho

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