maha shiv puran शिव पुराण कथा
प्रात काल उठकर पूर्व, अग्नि
कोण, दक्षिण आदि आठ दिशाओं की ओर मुख करके बैठने पर क्रमशः
आयु, द्वेष, मरण, पाप, भाग्य, व्याधि, पुष्टि और शक्ति प्राप्त होती है।
रात के पिछले प्रहर को उषाकाल जाना चाहिए। उस अंतिम प्रहर का जो आधा या
मध्य भाग है उसे संधि कहते हैं। उस संधि काल में उठकर द्विज को शौच क्रिया करना
चाहिए। अपने शरीर को ढके रहकर दिन में उतरा विमुख बैठकर शौच क्रिया करें । अगर उत्तर दिशा में कोई
रुकावट है तो दूसरी दिशा की तरफ मुंह करके शौच क्रिया करें
।
मिट्टी से हाथ पैरों को धोकर शुद्ध करें फिर दंत शुद्धि करना चाहिए। उसके बाद मंत्र के द्वारा स्नान करें तदनंतर शुद्ध वस्त्र धारण कर तिलक भस्म लगाकर संध्या वदंन करना चाहिए । maha shiv puran शिव पुराण कथा
गायत्री के मंत्र जपे और सूर्य को अर्घ्य देवें। संध्या समय पश्चिम की ओर
मुख करके तथा प्रातः एवं मध्यान के समय अंगुलियों से तीर्थ देवता को जल देवें फिर
अंगुलियों के छिद्र से सूर्य भगवान को अस्त होता देखें और प्रदक्षिणा कर शुद्ध
आचमन करें ।
ब्राह्मण को चाहिए कि नित्य प्रति एक हजार गायत्री का जाप करें। सोहं भावना
से जप करता हुआ जीव को परम ब्रह्म परमेश्वर से जोड़ देवे । इस प्रकार एक हजार बार
का जप ब्रह्मपद और एक सौ बार जब इंद्रपद देने वाला है। जो सकाम भावना से युक्त गृहस्थ
ब्राह्मण है उसी को धर्म तथा अर्थ के लिए यत्न करना चाहिए। मुमुक्षु ब्राह्मणों को
तो सदा ज्ञान का अभ्यास करना चाहिए ।
धर्मादर्थोअर्थतो भोगो भोगाद्वैराग्य
सम्भवः।
धर्मार्जितार्थ भोगेन वैराग्य मुपजायते।।
वि-13-51
धर्म से अर्थ की प्राप्ति होती है, अर्थ से भोग सुलभ होता है और उस भोग से वैराग्य की प्राप्ति होती है। धर्म
पूर्वक उपार्जित धन से जो भोग प्राप्त होता है उससे एक दिन अवश्य वैराग्य होता है
।
धर्म दो प्रकार का कहा गया है- ( 1 )दृव्य के द्वारा
संपादित होने वाला और ( 2 ) शरीर से किया जाने वाला ।
द्रव्य धर्म यज्ञ आदि के रूप में और शरीर धर्म तीर्थ स्नान आदि के
रूप में पाए जाते हैं।
सतयुग आदि में तप को ही प्रशस्त कहा गया है , किंतु कलयुग में दृव्य साध्य
धर्म अच्छा माना गया है । सतयुग में ध्यान से, त्रेता में
तपस्या से और द्वापर में यज्ञ करने से ज्ञान की सिद्धि होती है परंतु कलयुग में
प्रतिमा ( भगवत विग्रह) की पूजा से ज्ञान लाभ होता है।
जो जैसा पाप पुण्य करता है उसे वैसा ही फल मिलता है-
सकुटुम्बस्य विप्रस्य चतुर्जनयुतस्य च।
शतवर्षस्य वृत्तिं तु दद्यात्तद्
ब्रह्मलोकदम्।। वि-13-59
जिसके घर में कम से कम चार मनुष्य हैं ऐसे कुटुंबी ब्राह्मण को जो सौ वर्ष
के लिए जीविका ( जीवन निर्वाह सामग्री ) देता है उसके लिए वह दान ब्रह्म लोक की
प्राप्ति कराने वाला होता है।
एक हजार चंद्रायण व्रत का फल ब्रह्म लोक है। जब तक जिसका जो अन्न खाता है
तब तक वह जो कुछ आत्म विचार, कीर्तन,
श्रवण आदि करता है उसका आधा फल दाता को मिलता है । इसी तरह लेने वालों को चाहिए कि वह जो वस्तु दान मे ले उसका कुछ अंश
दूसरों को दान करता रहे । वह तप करे या अन्य उचित साधनों से पाप का संशोधन कर दें
अन्यथा रौरव नर्क में जाना पड़ता है । मनुष्य को चाहिए
कि वह-
आत्म वित्तं त्रिधा कुर्याद्धर्मवृद्ध्यात्म
भोगतः।
नित्यं नैमित्तकं काम्यं कर्मकुर्यात्तु
धर्मतः।। वि-13-72
अपने प्राप्त किए धन के तीन भाग करें- 1 धर्म , 2 वृद्धि के लिए तथा 3 अपने
उपभोग के लिए । नित्य, नैमित्तिक और काम्य यह तीनों प्रकार
के कर्म धर्मार्थ रखे हुए धन से करें । साधक को चाहिए कि वह वृद्धि के लिए रखे हुए
धन से ऐसा व्यापार करें जिससे उस धन की वृद्धि हो तथा उपभोग के लिए रक्षित धन से
हित कारक परिमित एवं पवित्र भोग भोगे ।
खेती से पैदा धन का दसवां अंशदान कर दे इसे पाप की शुद्धि होती है । शेष धन से धर्म वृद्धि एवं
उपभोग करें अन्यथा रौरव नरक में जाना पड़ता है । बुद्धिमान को चाहिए कि दान देकर
दूसरों से ना कहे, कानों से सुना और आंखों से देखा दोष भी ना
कहे।
प्रातः एवं सायं समय संध्या एवं हवन करें यदि दोनों समय नहीं तो एक समय
अवश्य करें।
( यज्ञों का वर्णन , वारों का निर्माण
)
ऋषि गण बोले- हे प्रभु अग्नि यज्ञ, देव यज्ञ,
ब्रम्ह यज्ञ, गुरु पूजा तथा ब्रह्म तृप्ति का
क्रमशः हमारे समक्ष वर्णन करिए ।
सूत जी बोले- हे महर्षियों गृहस्थ पुरुष अग्नि में जो प्रातः काल,
सायं काल जो चावल आदि द्रव्य की आहुति देता है उसी को अग्नि यज्ञ
कहते हैं ।
अग्नौ जुहोतियद् द्रव्यमग्नि यज्ञः स उच्यते।
ब्रह्मचर्याश्रमस्थानां समिदाधानमेव हि।। वि-14-2
जो ब्रह्मचर्य आश्रम में स्थित है उन ब्रह्मचारियों के लिए समिधा का
आधान ही अग्नि यज्ञ है , वह समिधा का ही अग्नि में हवन करें।
जिन्होंने बाह्य अग्नि को विसर्जित करके अपनी आत्मा में ही अग्नि का आरोप कर लिया
है ऐसे वानप्रस्थियों को और सन्यासियों के लिए यही हवन या अग्नि यज्ञ है कि वह
विहित समय पर हितकर परिमित और पवित्र अन्न का भोजन कर लें।
हे ब्राह्मणों सायं काल की अग्नि आहुति से संपत्ति और प्रातः काल की
अग्नि आहुति से आयु बढ़ती है। दिन में इन्द्रादिक देवताओं के उद्देश्य से अग्नि को
जो आहुति दी जाती है वह देवयज्ञ कहलाता है।
हे ऋषियों महादेव जी ने सर्वलोकों के कल्याणार्थ वारों का निर्माण
किया-
संसार वैद्यः सर्वज्ञः सर्वभेषजभेषजम्।
आदावारोग्यदं वारं स्ववारं कृतवान्प्रभुः।। वि-14-13
वे भगवान शंकर संसार रूपी रोगों को दूर करने के लिए वैद्य हैं। सब के ज्ञाता
तथा समस्त औषधियों के भी औषध हैं । उन भगवान ने पहले अपने वार की कल्पना की जो
आरोग्य प्रदान करने वाला है। अर्थात आदित्यवार बनाया। maha shiv puran शिव पुराण कथा
पुनः सप्ताह के शेष छै वारों को उनके गुणों के अनुसार वैसे ही रचना
की। उन्होंने प्रत्येक दिन का उसका देवता और फल नियत कर दिया । जिनसे आरोग्य,
संपत्ति, व्याधि, नाश,
पुष्टि , आयु, भोग,
मृत्यु और हानि यह यथा क्रमशः प्राप्त होते हैं ।
इन दिनों के देवताओं की प्रीति से उनकी पूजा का वैसा ही फल देने
वाले भगवान शिव हैं । जिस देवता को प्रसन्न करना हो उसका मंत्र होम दान और जप करें
। maha shiv puran शिव पुराण कथा
आरोग्यं सम्पदश्चैव व्याधीनां शान्तिरेव च।
पुष्टिरायुस्तथा भोगो मृतेर्हानिर्यथा क्रमम्।। वि-14-21
सूर्य आरोग्य के और चंद्रमा संपत्ति के दाता हैं, मंगल व्याधियों का निवारण करते हैं , बुध पुष्टि
देते हैं, बृहस्पति आयु की वृद्धि करते हैं, शुक्र भोग देते हैं और शनैश्चर मृत्यु का निवारण करते हैं ।
( पूजन और लाभ )
नेत्र, सिर एवं कुष्ठ रोग की शांति के लिए
आदित्य देव की पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन करावे तीन दिन , तीन महीने , तीन वर्ष अथवा इससे अधिक भी पूजा करने
का विधान है। पापों की शांति के लिए रविवार के दिन की पूजा उत्तम है जिसमें कि जप
आदि से इष्ट देव को प्रसन्न किया जा सकता है। maha shiv puran शिव पुराण कथा
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए सोमवार को लक्ष्मी जी की पूजा करें। रोग
शांति के लिए मंगलवार है , इसमें काली आदि का भजन पूजन करें
और उड़द ,मूंग आदि देकर ब्राह्मणों को भोजन करावें।
बुधवार के दिन विष्णु भगवान का दही , सेव आदि
अनेक प्रकार से पूजन करें तो सर्वदा पुत्र, मित्र, कलत्र (स्त्री) की पुष्टि होती है। बृहस्पति का दिन आयु वर्धक है इस दिन
ब्राह्मणों को गौ, देवताओं को उपवीत, वस्त्र
आदि प्रदान करें दूध, घी से पूजन करें।