pradeep mishra shiv puran शिव पुराण कथा -11

 pradeep mishra shiv puran शिव पुराण कथा

pradeep mishra shiv puran शिव पुराण कथा

द्विजानां च नमः पूर्वमन्येषां च नमोन्तकम्।

स्त्रीणां च केचिदिच्छन्ति नमोन्तं च यथा विधि।। वि-11-42

द्विजों के लिए नमः शिवाय के उच्चारण का विधान है । द्विजेत्तरों के लिए अंत में नमः पद के प्रयोग की विधि है । अर्थात वे शिवाय नमः इस मंत्र का उच्चारण करें। 

 

स्त्रियों के लिए भी कहीं-कहीं विधि पूर्वक अंत में नमः जोड़कर उच्चारण का ही विधान है , कोई-कोई ऋषि ब्राह्मण की स्त्रियों के लिए नमः पूर्वक जप की अनुमति देते हैं वह नमः शिवाय का जप करें। 

पञ्चकोटि जपं कृत्वा सदाशिव समो भवेत। वि-11-43

पंचाक्षर मंत्र का पांच करोड़ जप करके मनुष्य भगवान् सदाशिव के समान हो जाता है और एक दो तीन करोड़ मंत्र जपने वाला ब्रह्मादिकों का स्थान पाता है ।  यदि कोई ॐ इस मंत्र को एक हजार बार जपे तो उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। विद्वानों को चाहिए कि आमरण शिव क्षेत्र में निवास करें । 

 

जहां कहीं मनुष्यों द्वारा शिवलिंग पधराया होता है वहां की सौ हाथ भूमि शिव क्षेत्र मानी गई है। जहां पुण्य ऋषियों ने लिंग पधराया हो वहां पर हजार हाथ की दूरी पर शिव क्षेत्र कहा गया है और स्वयंभू लिंग के चारों ओर चार चार हजार हाथ तक की भूमि को शिव क्षेत्र माना गया है। pradeep mishra shiv puran शिव पुराण कथा

 

शिवलिंग स्थान पर कुआँ, बावड़ी, तालाब आदि होना आवश्यक है उसे शिवगंगा कहते हैं। ऐसे स्थान में दान जप करना सर्वथा कल्याण प्रद है । दाह, दशांश मासिक , सपिंडीकरण, वार्षिक पिंड दान आदि शिव क्षेत्रों में करने से सब पापों से मुक्ति करा देता है । शिव क्षेत्र में-

सप्तरात्रं वा वसेद्वा पञ्चरात्रकम्।

सात, पांच, तीन या एक रात अवश्य ही निवास करें इससे भगवान सदाशिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इतना सुनकर सौनक आदि ऋषियों ने कहा- हे सूत जी अब आप कृपा कर हमें सभी पुण्य क्षेत्रों का वर्णन संक्षेप में सुनाइए - जिनका आश्रय लेकर सभी नर-नारी शिव पद की प्राप्ति करते हैं । 

 

सूत जी बोले ऋषियों शिव क्षेत्रों में पाप करना वज्र की तरह दृढ़ हो जाता है । अतः मुनियों पुण्य क्षेत्र में निवास करने पर किंचित भी पाप ना करें और जैसे भी हो सके मनुष्य को चाहिए कि वह सर्वदा पुण्य क्षेत्र में निवास करें।

 

गंगा आदि नदियों के तट पर अनेक तीर्थ हैं। साठ मुख वाली सरस्वती नदी बड़ी ही पुनीत है इसके तट पर निवास करने वाला ब्रह्म पद को प्राप्त होता है । हिमालय से निकली सतमुखी गंगा नदी पतित पावनी है उसके तट पर बास करें। काशी आदि अनेकों पुण्य क्षेत्र हैं कि जिनमें जाकर बसें । 

 

सोनभद्र के तट पर बसे उसमें स्नान करने और वहां व्रत करने से गणेश पद प्राप्त होता है । महानदी नर्मदा के तट पर बसे जो चौबीस मुख वाली और वैष्णव पद प्रदान करने वाली है । द्वादश मुखों वाली तमसा नदी और महा पुण्य दायक गोदावरी के तट पर बसें जहां बसने से ब्रह्म हत्या तथा गौ हत्या का भी पाप नष्ट हो जाता है। यह इक्कीस मुख वाली गोदावरी पुण्य लोक को देने वाली है । 

 

इनके अतिरिक्त कृष्णवेणी, विष्णु लोक दायिनी तुंगभद्रा, ब्रह्मलोक दायिनी ओर सुवर्ण मुखरी नदी जो नौ नौ मुखों वाली है  ब्रह्मलोक से आये जीव इसी के तट पर जन्म ग्रहण करते हैं। pradeep mishra shiv puran शिव पुराण कथा

 

सरस्वती, पंपा, कन्याकुमारी तथा शुभ कारक श्वेत नदी यह सभी पुण्यक्षेत्र हैं। इनके तट पर निवास करने से इंद्रलोक की प्राप्ति होती है । सह्य पर्वत से निकली हुई महानदी कावेरी परम पुण्यमई है उसके सत्ताइस मुख बताए गए हैं। 

 

इन सभी नदियों और क्षेत्रों में स्नान का अपना-अपना पर्व है, इन पर्वों और मुहूर्तों पर जो इन नदियों में स्नान करता है उसे उनके महत्व के अनुसार उत्तमोत्तम फलों की प्राप्ति होती है । 

पुण्य क्षेत्रे कृतं पुण्यं बहुधा ऋद्धिमृच्छति।

पुण्य क्षेत्रे कृतं पापं महदण्वपि जायते।। वि-12-36

पुण्य क्षेत्र में किया हुआ थोड़ा सा पुण्य भी अनेक प्रकार से वृद्धि को प्राप्त होता है तथा वहां किया हुआ छोटा सा पाप भी महान हो जाता है। पुण्य क्षेत्र की यहां तक महिमा गाई गई है कि पुण्य क्षेत्र में निवास करना है ऐसा मन में संकल्प लेते ही पहले के सारे पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं । 

 

( सदाचार विवेचन )

ऋषि बोले-

सदाचारं श्रावयासु येन लोकाञ्जयेद बुधः।

धर्माधर्म मयान्ब्रूहि स्वर्गनारकदांस्तथा।। वि-13-2

हे सूत जी अब आप शीघ्र ही हमें वह सदाचार सुनाइए जिससे विद्वान पुरुष पुण्य लोकों पर विजय प्राप्त कर लेता है। स्वर्ग प्रदान करने वाले धर्ममय आचारों तथा नरक का कष्ट देने वाले अधर्ममय आचारों का भी वर्णन कीजिए। सूत जी बोले-

सदाचार युतो विद्वान ब्राह्मणो नाम नामतः।

वेदाचार युतो विप्रो ह्येतैरेकैकवान्द्विज:।। वि-13-2

सदाचार का पालन करने वाला विद्वान ब्राह्मण ही वास्तव में ब्राह्मण नाम धारण करने का अधिकारी है। जो केवल वेदोक्त आचार्य का पालन करने वाला है उस ब्राह्मण की विप्र संज्ञा होती है । 

 

जिसमें स्वल्प मात्रा में आचार्य का पालन देखा जाता है जो छत्रिय वाले कर्मों में लगे हैं वह क्षत्रिय ब्राह्मण कहे गए हैं । वैश्यवृत्ति में लगे द्विज को वैश्य ब्राह्मण की संज्ञा दी गई है और जिस ब्राह्मण की वृत्ति सूद्र के समान है तो उसे सूद्र ब्राह्मण कहते हैं। जो ब्राह्मण दूसरों की निंदा बुराई दूसरों में दोष देखने वाले हैं-

असूयालूः परद्रोही चण्डालद्विज उच्यते।

और पर द्रोही हैं उसे चांडाल द्विज कहते हैं।

इसी तरह क्षत्रियों में भी जो पृथ्वी का पालन करता है वह राजा है। दूसरे लोग राजत्वहीन क्षत्रिय माने गए हैं और वैश्यवृत्ति करने वाले वैश्य क्षत्रिय कहे गए हैं । 

वैश्यों में भी जो व्यापार करता है वह वैश्य कहे गए हैं और बाकी वणिक कहलाते हैं ।  जो तीनों वर्णों की सेवा में लगा रहता है उसे दास ( सूद्र ) कहते हैं। pradeep mishra shiv puran शिव पुराण कथा

 

इन सभी वर्णों को चाहिए कि वे सभी मनुष्य प्रातः काल में उठकर पूर्वा विमुख हो सबसे पहले देवताओं का फिर धर्म का पुनः अर्थ का तदनंतर उसकी प्राप्ति के लिए उठाए जाने वाले क्लेशों का तथा आय और व्यय का भी चिंतन करें । 

 

प्रात काल उठकर पूर्व, अग्नि कोण, दक्षिण आदि आठ दिशाओं की ओर मुख करके बैठने पर क्रमशः आयु, द्वेष, मरण, पाप, भाग्य, व्याधि, पुष्टि और शक्ति प्राप्त होती है। pradeep mishra shiv puran शिव पुराण कथा

 

रात के पिछले प्रहर को उषाकाल जाना चाहिए। उस अंतिम प्रहर का जो आधा या मध्य भाग है उसे संधि कहते हैं। उस संधि काल में उठकर द्विज को शौच क्रिया करना चाहिए। अपने शरीर को ढके रहकर दिन में उतरा विमुख बैठकर शौच क्रिया करें । अगर उत्तर दिशा में कोई रुकावट है तो दूसरी दिशा की तरफ मुंह करके शौच क्रिया करें । 

संपूर्ण शिव कथानक की सूची देखें

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