Shiv Puran Katha in hindi शिव पुराण कथा -7

 Shiv Puran Katha in hindi शिव पुराण कथा

Shiv Puran Katha in hindi शिव पुराण कथा

ब्रह्मा जी ने कहा-

पूजाजपेश गुणरूपविलास नाम्नां

      युक्तिप्रियेण मनसा परिशोधनं यत् । 

तत्सन्ततं मननमीश्वर दृष्टि लभ्यं

      सर्वेषु साधन वरेष्वपि मुख्य मुख्यम्।। वि-4-2

ईश्वर के गुण, रूप, नाम और बिलासों में अपनी रूचि बढ़ाना तथा निरंतर अपने युक्तियों सहित अपने मन को उनके सन्मुख रखना ही मनन है और परम ब्रह्म महादेव जी अथवा शंभू भगवान के नाम का बारंबार जप करना ही कीर्तन है।  Shiv Puran Katha in hindi शिव पुराण कथा


तथा दृढ होकर भगवत संबंधी शब्दों को कानों से सुनना और उसे चित्त में स्थित करना ही श्रवण है । जब सत्संग में बैठकर शिव कथा को श्रवण करें फिर उसका मनन करें वही सर्वोत्तम मनन है जिससे आत्मा पवित्र हो जाती है ।


सूत जी बोले - हे मुनीश्वरों मैं साधन संबंधी एक प्राचीन इतिहास आप लोगों को सुनाता हूं। 
Shiv Puran Katha in hindi शिव पुराण कथा

पुरा मम गुरुर्व्यासः पराशर मुनेः सुतः।
तपश्चचार सम्भ्रान्तः सरस्वत्यास्तटे शुभे।।


एक समय सरस्वती नदी के तट पर मेरे गुरु पाराशर पुत्र वेदव्यास जी तप कर रहे थे तो सनत कुमार जी ने उनके निकट आकर उनसे पूछा। हे भगवन शिवजी तो प्रत्यक्ष सब के सहायक हैं फिर आप ऐसा तप क्यों कर रहे हैं?

व्यास जी ने कहा- मुक्ति के लिए । इस पर सनतकुमार जी ने कहा भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन, मनन यह तीनों महत्तर साधन कहे गए हैं। यह तीनों ही वेद सम्मत हैं।

व्यास जी पूर्व काल में मुझे भी ऐसा भ्रम हुआ था और मंदराचल पर्वत पर जाकर तप करने लगा था, परंतु दयालु शिवजी की आज्ञा से नंदीकेश्वर ने आकर मुझे यह बतलाया कि शिवजी के श्रवण कीर्तन और भजन से मुक्ति प्राप्त हो जाती है तब मेरा सारा भ्रम दूर हो गया। अतः हे ब्रह्मन आप भी ऐसा करें। यह कहकर सनत कुमार जी चले गए।

इस पर ऋषियों ने पूछा- कि जो श्रवण, कीर्तन और मनन नहीं करता उस जीव की मुक्ति कैसे होती है तथा बिना यत्न किए वह कैसे मुक्ति प्राप्त कर सकता है ?


(लिंगेश्वर परिचय)



सूत जी बोले- हे ऋषियों
श्रवणादित्रिकेशक्तो लिङ्गं वेरं च शाङ्करम्।
संस्थाप्य नित्यमभ्यर्च्य तरेत् संसार सागरम्।।

जो श्रवण कीर्तन और मनन इन तीनों साधनों के अनुष्ठान में समर्थ ना हो वह भगवान शंकर के लिंग एवं मूर्ति की स्थापना कर नित्य उसकी पूजा करके संसार सागर से पार हो सकता है ।


ऋषिगण बोले- मूर्ति में सर्वत्र देवताओं की पूजा होती है परंतु भगवान शिव की पूजा सब जगह मूर्ति और लिंग में भी क्यों की जाती है?
Shiv Puran Katha in hindi शिव पुराण कथा

सूतजी बोले- हे मुनीश्वरों आप लोगों का यह प्रश्न बड़ा ही उत्तम है व पवित्र है । इस विषय में तो-
अत्र वक्ता महादेवो नान्योस्ति पुरुषः क्वचित्। वि-5-1
महादेव जी ही वक्ता हो सकते हैं कोई पुरुष कहीं और कभी भी इसका यथार्थ प्रतिपादन नहीं कर सकता । इस विषय में भगवान शिव जी ने जो कहा है और उसे मैंने गुरु जी के मुख से सुना है उसी तरह में उसका वर्णन करूंगा।

एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्म रूप होने के कारण निष्कल निराकार कहे गए हैं । रूपवान होने के कारण उनको शकल साकार भी कहा जाता है। शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है और शकल ( साकार ) होने के कारण मूर्ति विग्रह की भी पूजा होती है ।
भगवान शिव के दोनों स्वरूपों की पूजा होती है अन्य देवों में यह तत्व नहीं है यही कारण है कि केवल ब्रह्म तत्व शंकर जी को प्राप्त है । सदाशिव का ब्रह्मत्व वेदों के सारभूत उपनिषदों से सिद्ध होता है ।

वहां प्रणव (ओंकार) के तत्व रूप से भगवान शिव का ही प्रतिपादन किया गया है । इसी प्रकार पूर्व में मंदराचल पर्वत पर ज्ञानवान ब्रह्मपुत्र सनत कुमार मुनि ने नंदिकेश्वर से प्रश्न किया था । जिस पर नंदीकेश्वर ने स्पष्ट कहा था कलापूर्ण भगवान शिव का लिंगेश्वर रूप में बेर पूजन लोक सम्मत है और वेद ने जिस को आज्ञा दी है ।


सनत कुमार जी ने लिंगेश्वर की उत्पत्ति पूछीं तो नंदिकेश्वर ने कहा-
पुरा कल्पे महाकाले प्रपन्ने लोक विश्रुते।
अयुध्येतां महात्मानौ ब्रह्म विष्णु परस्परम्।। वि-5-27

कि पूर्व कल्प के बहुत काल बीत जाने पर जब ब्रह्मा और विष्णु में युद्ध हुआ तो उनके बीच निष्कल शिव जी ने स्तंभ रूप प्रकट होकर विश्व संरक्षण किया था और तभी से महादेव जी का निष्कल लिंग और शकल बेर जगत में प्रचलित हुए ।

बेर मात्र को देवताओं ने भी ग्रहण किया इससे शिवजी के अतिरिक्त बेर से देवताओं की पूजा होने लगी और उसका वही फल दाता हुआ ।

परंतु शिवजी के लिंग और बेर ( मूर्ति ) दोनों ही पूजनीय हुए।
Shiv Puran Katha in hindi शिव पुराण कथा

नंदिकेश्वर बोले- पूर्व में जब श्री विष्णु जी अपने सहायकों सहित श्री लक्ष्मी जी के साथ शेषसैया पर लेटे थे,तब देवताओं में श्रेष्ठ ब्रह्मा जी स्वयं ही वहां जा पहुंचे और विष्णु जी को पुत्र कहकर पुकारने लगे।

पुत्र उठ मुझे देख मैं तेरा ईश्वर यहां आया हूं । इस पर विष्णु जी को भी क्रोध आया परंतु वह उसे दबा लिये और ब्रह्मा जी से कहा कि पुत्र तुम्हारा कल्याण हो आओ बैठो । मैं तुम्हारा पिता हूं कहो क्या बात है ?


ब्रह्माजी बोले समय के फेर से तुम्हें अभिमान हो गया है, मैं तुम्हारा रक्षक ही हूं, समस्त जगत का पितामह हूं । भगवान विष्णु ने कहा चोर तू अपना बड़प्पन क्यों दिखाता है सारा जगत तो मुझमें निवास करता है तू मेरी नाभि कमल से प्रकट हुआ है और मुझसे ही ऐसी बातें करता है ।
Shiv Puran Katha in hindi शिव पुराण कथा


नंदिकेश्वर बोले- जब इस प्रकार रजोगुण से मुग्ध हो दोनों में विवाद होने लगा, तब यह दोनों अपने अपने को प्रभु प्रभु कहते हुए एक-दूसरे का वध करने को तैयार हो गए । युद्ध छिड़ गया हंस और गरुण पर बैठे दोनों ईश्वर शिव माया से मोहित होकर आपस में घोर युद्ध करने लगे । उनके वाहन भी लड़ने लगे।

ब्रह्मा जी के वक्षस्थल पर विष्णु जी ने अनेक अस्त्रों का प्रहार कर उन्हें व्याकुल कर दिया। इससे कुपित होकर ब्रह्माजी ने भी उनके वक्ष स्थल पर भयानक प्रहार किया। एक दूसरे के प्रति युद्ध से श्रमित विष्णु जी हांफने लगे। उस भयंकर युद्ध को देखने के लिए सभी देवगण अपने अपने विमानों में बैठ युद्ध स्थल पर पहुंच गए ।

संपूर्ण शिव कथानक की सूची देखें

 Shiv Puran Katha in hindi शिव पुराण कथा

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close