F Shiv Puran Katha शिव पुराण कथा -8 - bhagwat kathanak
Shiv Puran Katha शिव पुराण कथा -8

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Shiv Puran Katha शिव पुराण कथा -8

Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा -8

 Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा

Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा

यहां युद्ध में तत्पर महा ज्ञानी विष्णु ने अतिशय क्रोध के साथ दीर्घ निश्वास लेते हुए ब्रह्मा जी को लक्ष्य कर भयंकर माहेश्वर अस्त्र का संधान किया। ब्रह्मा ने भी अतिशय क्रोध में आकर विष्णु के हृदय को लक्षकर ब्रह्मांड को कम्पित करने वाला भयंकर पाशुपत अस्त्र का प्रयोग किया । Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा

सूर्य के समान हजारों मुख वाले अत्यंत उग्र तथा प्रचंड आंधी के समान भयंकर दोनों अस्त्र आकाश में प्रगट हो गए । उस भयंकर युद्ध को देखकर देवता गण सभी बहुत दुखी हो गए और आपस में कहने लगे-
सृष्टिः स्थितिश्च संहारस्तिरोभावोप्यनुग्रहः।
यस्मात् प्रवर्तते तस्मै ब्रम्हणे च त्रिशूलिने।। वि-6-20

जिसके द्वारा सृष्टि ,स्थिति, प्रलय ,तिरोभाव तथा अनुग्रह होता है और जिसकी कृपा के बिना इस भूमंडल पर अपनी इच्छा से एक तृण का भी विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है। उन त्रिशूलधारी ब्रह्म स्वरूप महेश्वर को नमस्कार है।

देवता गण जब कैलाश शिखर पर गए ,महादेव जी अपनी सभा में उमा सहित सिंहासन पर विराजमान थे। देवताओं ने साष्टांग दंडवत कर महादेव जी को नमस्कार किया। महादेव जी बोले पुत्रों- सब कुशल से तो है ना ? मैंने सुना है कि ब्रह्मा और विष्णु परस्पर युद्ध कर रहे हैं और तुम लोग बड़े दुखी हो, अच्छा तो मैं अपने गणों के साथ चलता हूं। तुम लोग भय ना करो। Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा

यह कह कर शिव जी ने अपने गणों को वहां चलने की आज्ञा दी साथ ही स्वयं भी अपने भद्ररथ पर आरूढ़ हो चलने को तैयार हुए। शिवजी बादलों में छुप कर ब्रह्मा विष्णु का युद्ध देखने लगे । शिवजी ने देखा कि दोनों एक दूसरे के वध की इच्छा से माहेश्वर और पाशुपत अस्त्र का प्रयोग कर रहे हैं ।

तब शिव जी कृपा करते हैं उनका युद्ध शांत करने के लिए-
महानलस्तम्भविभीषणाकृति
र्बभूव तन्मध्यतले स निष्कलः। । वि-7-11

निराकार भगवान शंकर इस अकाल प्रलय को आया देखकर एक भयंकर विशाल अग्नि स्तंभ के रूप में उन दोनों के बीच प्रकट हो गए ।Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा

संसार को नाश करने में सक्षम वह दोनों महा दिव्यास्त्र अपने तेज सहित उस महान अग्नि स्तंभ के प्रगट होते ही अपने तेज सहित तत्क्षण शांत हो गए । उस अद्भुत दृश्य को देखकर ब्रह्मा विष्णु परस्पर कहने लगे यह इंद्रियातीत अग्नि स्वरूप स्तंभ क्या है ? हमें इसका पता लगाना चाहिए ।

ऐसा निश्चय करके दोनों वीर उसकी परीक्षा लेने के लिए बहुत ही शीघ्र वहां से चले । भगवान विष्णु ने शूकर का रूप धारण किया और स्तम्भ के जड़ की खोज में चले। ब्रह्मा भी हंस का रूप धारण करके उसका अंत खोजने के लिए चल पड़े।

विष्णु जी पाताल में बहुत दूर तक चले गए परंतु स्तंभ का अंत ना मिला तब वह पुनः युद्ध भूमि में लौट आए। Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा

इधर आकाश मार्ग से जाते हुए ब्रह्मा जी ने मार्ग में अद्भुत केतकी (केवड़ा) के पुष्प गिरते देखा, अनेक वर्षों से गिरते रहने पर भी वह ताजा और सुगंध युक्त था।

ब्रह्मा विष्णु के विग्रह पूर्ण कृत्य को देखकर भगवान शंकर हंस पड़े जिसके कंपन के कारण उनका मस्तक हिला और वह श्रेष्ठ केतकी पुष्प उन दोनों के ऊपर कृपा करने के लिए गिरा था ।

ब्रह्माजी उससे पूछा- हे पुष्पराज तुम्हें किसने धारण कर रखा था और तुम क्यों कर रहे हो ? केतकी ने उत्तर दिया इस पुरातन और अप्रमेय स्तम्भ के बीच से मैं बहुत समय से गिर रहा हूं फिर भी इस के मध्य को ना देख सका अतः आप अंत देखने की आशा छोड़ दें।

ब्रह्मा जी ने कहा मैं तो हंस का रूप लेकर इसका अंत देखने के लिए यहां आया हूं। अब हे मित्र मेरा एक अभिलाषित काम तुम्हें करना पड़ेगा । विष्णु के पास मेरे साथ चलकर तुम्हें इतना कहना है कि ब्रह्मा ने इस स्तंभ का अंत देख लिया है । हे अच्युत मैं इसका साक्षी हूं ।

इधर ब्रह्मा केतकी के साथ युद्ध स्थल में आए और कहा हे हरे मैंने इस स्तंभ का अग्रभाग देख लिया है इसका साक्षी यह केतकी का पुष्प है। तब केतकी ने भी झूठा समर्थन कर दिया।


विष्णु जी उस बात को सत्य मानकर ब्रह्मा को स्वयं प्रणाम किया और उनका षोडशोपचार पूजन किया। उसी समय कपटी ब्रह्मा को दंडित करने के लिए उस प्रज्वलित स्तंभ लिंग से महेश्वर प्रगट हो गए-
विधिं प्रहर्तुं शठमग्निलिङ्गतः
स ईश्वरस्तत्र बभूव साकृतिः।
समुत्थितः स्वामिविलोकनात पुनः
प्रकम्प पाणिः परिगृह्य तत्पदम्।। वि-7-29


महेश्वर को प्रगट हुआ देखकर विष्णु उठ खड़े हुए और कांपते हुए हाथों से उनका चरण पकड़ कर कहने लगे- हे करुणाकर, आदि और अंत से रहित शरीर वाले आप परमेश्वर के विषय में मैंने मोह बुद्धि से बहुत विचार किया किंतु कामनाओं से उत्पन्न वह विचार सफल नहीं हुआ हमें क्षमा करें यह सब आपकी ही लीला से हुआ है।

ईश्वर बोले- हे वत्स मैं तुम पर प्रसन्न हूं तुम सत्यवादी हो अतः मैं तुम्हें अपनी समानता प्रदान करता हूं । Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा

नंदिकेश्वर बोले- महादेव जी ने ब्रह्माजी पर क्रोधित हो अपनी भौहों के मध्य से भैरव को प्रकट किया। जिसने नमस्कार कर उनसे आज्ञा मांगी, शिवजी ने आज्ञा दी कि तुम अपनी तलवार से ब्रह्मा की पूजा करो । Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा

यह आज्ञा पाते ही भैरव जी ने ब्रह्मा के सिर के केस जा पकड़े , ब्रह्मा थर थर कांपने लगे । ब्रह्मा जी का पांचवा मिथ्याभि सर काट डाला । भैरव जी ने और जब सिर काटना चाहा तब ब्रह्माजी भैरव के चरणों में गिर गए यह देखकर विष्णु जी ने भी भगवान शिव का आश्रय लिया और हाथ जोड़कर प्रार्थना की।

कि आरंभ में आपने ही कृपा करके इन्हें सिर प्रदान किया था अतः इन्हें क्षमा करें । शिव जी की आज्ञा से भैरव ने ब्रह्मा जी को छोड़ दिया। शिवजी बोले तुमने अपनी प्रतिष्ठा और ईशत्व पाने के लिए छल किया था, झूठ बोला था इसलिए तुम सत्कार स्थान और उत्सव से बिहीन किए जाते हो।

इसलिए संसार में तुम्हारा सत्कार नहीं होगा और तुम्हारे मंदिर तथा पूजन उत्सव आदि नहीं होंगे । ब्रह्मा जी बोले हे महा विभूति संपन्न स्वामी आप मुझ पर प्रसन्न होइए मैं आपकी कृपा से अपने सिर के काटने को भी आज श्रेष्ठ समझता हूं । Shiv Puran Katha  शिव पुराण कथा

विश्व के कारण भगवान शिव को नमस्कार है। भगवान शिव बोले- हे पुत्र मैं जगत की स्थिति को ना बिगड़ने दूंगा, जो अपराधी हैं उन्हें तुम दंड दो और लोक मर्यादा का पालन करो। मैं तुम्हें वरदान देता हूं-

वरं ददामि ते तत्र गृहाण दुर्लभं परम्।
वैतानिकेषु गृह्येषु यज्ञेषु च भवान गुरुः।। वि-8-13

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