Shiv Puran Katha sikhen शिव पुराण कथा -9

  Shiv Puran Katha sikhen  शिव पुराण कथा

Shiv Puran Katha sikhen  शिव पुराण कथा

वरं ददामि ते तत्र गृहाण दुर्लभं परम्।
वैतानिकेषु गृह्येषु यज्ञेषु च भवान गुरुः।। वि-8-13

आज से तुम गणों के आचार्य हुए । अतः तुम्हारे बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण ना होगा ।

ऐसा कहकर भगवान शिव केतकी के पुष्प से बोले अरे मिथ्या भाषी दुष्ट केतकी तू तुरंत यहां से भाग जा । तू मेरी पूजा के योग्य नहीं है। जब शिव गणों ने उसे दूर भगा दिया तब केतकी शिव जी की प्रार्थना करने लगा । हे नाथ मुझे कुछ तो सफल कीजिए तथा मेरे पापों को दूर कीजिए।

शिवजी ने कहा मेरा वचन मिथ्या नहीं होता तू मेरे भक्तों के योग्य है और इस प्रकार तेरा भी जन्म सफल हो जाएगा और मेरी मंडल रचना का सिरमौर तू ही बनेगा ।  Shiv Puran Katha sikhen  शिव पुराण कथा


( शिव जी का ज्ञानोपदेश)

नंदीकेश्वर बोले- हे सनत कुमार ब्रह्मा विष्णु हाथ जोड़कर शिवजी के अगल-बगल में जा बैठे और उनका पूजन करने लगे। तब शिव जी प्रसन्न हो उनसे कहने लगे हे वत्सों तुम्हारी पूजा से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं।

इसी कारण यह दिन परम पवित्र और महान से महान होगा-
दिनमेतत्ततः पुण्यं भविष्यति महत्तरम्।
शिवरात्रिरिति ख्याता तिथिरेषा मम प्रिया।। वि-9-10

आज की यह तिथि शिवरात्रि के नाम से विख्यात होकर मेरे लिए परम प्रिय होगी । शिवरात्रि के दिन जो मेरे लिंग बेर (शिव की पिंडी) की पूजा करेगा वह सृष्टि विधायक तक होगा ।

यदि कोई निराहार रहकर जितेन्द्रिय एक वर्ष तक निरंतर मेरी पूजा करेगा उसका जितना फल है वह मात्र एक दिन यह शिवरात्रि के पूजन करने पर प्राप्त हो जाएगा। Shiv Puran Katha sikhen  शिव पुराण कथा

भगवान शिव ने कहा-
मद्धर्मवृद्धि कालोयं चन्द्रकाल इवाम्बुधेः। वि-9-14
जैसे- पूर्ण चंद्रमा उदय समुद्र की वृद्धि का अवसर है, उसी प्रकार यह शिवरात्रि तिथि मेरे धर्म की वृद्धि का समय है।

हे वत्सो पहले जब मैं ज्योतिर्मय स्तंभ रूप से प्रगट हुआ था उस समय मार्गशीर्ष मास में आद्रा नक्षत्र था। जो पुरुष मार्गशीर्ष में आर्द्रा नक्षत्र होने पर मुझ उमापति का दर्शन करता है अथवा मेरी मूर्ति या लिंग की झांकी का दर्शन करता है वह मेरे लिए कार्तिकेय से भी अधिक प्रिय है। Shiv Puran Katha sikhen  शिव पुराण कथा

उस शुभ दिन मेरे दर्शन मात्र से पूरा फल प्राप्त होता है और दर्शन के साथ-साथ अगर पूजन भी किया जाए तो उसके फल का वर्णन वाणी द्वारा नहीं किया जा सकता। इस रणभूमि में मैं लिंग रूप से प्रकट होकर बहुत बड़ा हो गया था उस लिंग के कारण यह भूतल लिंग स्थान के नाम से प्रसिद्ध होगा।

हे पुत्रों जगत के लोग इसका दर्शन और पूजन कर सकें इसके लिए यह अनादि और अनंत ज्योति स्तंभ अत्यंत छोटा हो जाएगा । यह लिंग सब प्रकार के भोगों को सुलभ कराने वाला और भोग तथा मोक्ष का एकमात्र साधन होगा ।

इसका दर्शन स्पर्श तथा ध्यान प्राणियों को जन्म और मृत्यु से छुटकारा दिलाने वाला होगा। अग्नि के पहाड़ जैसा जो यह शिवलिंग यहां प्रकट हुआ है इसके कारण यह स्थान अरुणाचल नाम से प्रसिद्ध होगा । यहां अनेक प्रकार के बड़े-बड़े तीर्थ प्रगट हो जाएंगे। इस स्थान में निवास करने या मरने से जीवो का मोक्ष हो जाएगा।

ब्रह्मा विष्णु के युद्ध में जितनी सेना मारी गई थी उन सबको शिव जी ने अमृत वर्षा कर जीवनदान प्रदान किया और उन दोनों की परस्पर शत्रुता को यह कह कर समाप्त कर दिया कि मेरे ही शकल और निष्कल दो स्वरूप हैं और किसी के नहीं ।

बड़ा आश्चर्य है कि तुम लोग अज्ञान वश अपने को ईश्वर मान लिया था उसे नष्ट करने के लिए ही मैं युद्ध भूमि में आया था । अतः तुम अहंकार त्याग कर मेरी आराधना करो, मैं ही परम ब्रह्म हूँ और मेरी ही सब कलाएँ हैं। Shiv Puran Katha sikhen  शिव पुराण कथा

मुझ गुरुदेव के वाक्य ही तुम्हारे लिए सदा प्रमाण है यह मैंने तुम्हारी प्रीति देख कर के ही कहा है । पहले मेरी ब्रह्म रूपता का बोध कराने के लिए निष्कल लिंग प्रकट हुआ था फिर तुम दोनों को अज्ञात ईश्वरत्व का स्पष्ट साक्षात्कार कराने के लिए मैं साक्षात जगदीश्वर ही शकल रूप में तत्काल प्रगट हो गया ।

अतः मुझ में जो ईशत्व है उसे ही मेरा शकल रूप जानना चाहिए तथा जो यह मेरा निष्कल स्तंभ है वह मेरे ब्रह्म स्वरूप का बोध कराने वाला है । Shiv Puran Katha sikhen  शिव पुराण कथा

हे पुत्रों लिंग लक्षण युक्त होने के कारण ये मेरा ही लिंग चिन्ह है, तुम लोगों को यहां रहकर प्रतिदिन इस का पूजन करना चाहिए। यह मेरा ही स्वरूप है और मेरे समीप्य की प्राप्ति कराने वाला है।

महत्पूज्यमिदं नित्यमभेदा ल्लिङलिग्ङिनोः।। वि-9-43
लिंग और लिंगी में नित्य अभेद होने के कारण मेरे इस लिंग का महान पुरुषों को भी पूजन करना चाहिए। जहां जहां जिस किसी ने मेरे लिंग को स्थापित कर लिया वहां मैं अप्रतिष्ठित होने पर भी प्रतिष्ठित हो जाता हूं।

मेरे लिंग की स्थापना करने का फल मेरी समानता की प्राप्ति बताया गया है । एक के बाद दूसरे शिवलिंग की स्थापना कर दी गई तब फल रूप से मेरे साथ एकत्व ( सायुज्य मोक्ष ) रूप फल प्राप्त होता है । Shiv Puran Katha sikhen  शिव पुराण कथा

प्रधानतया शिवलिंग की ही स्थापना करनी चाहिए । मूर्ति की स्थापना उसकी अपेक्षा गौण है। शिवलिंग के अभाव में सब ओर से मूर्ति युक्त होने पर भी वह स्थान क्षेत्र नहीं कहलाता।

( सृष्टि, स्थिति आदि पांच कृत्यों का प्रतिपादन)

ब्रह्मा और विष्णु बोले-
सर्गादिपञ्चकृत्यस्य लक्षणं ब्रूहि नौ प्रभो। वि-10-1
हे प्रभो हम दोनों को सृष्टि आदि पांच कृत्यों का लक्षण बताइए ?
शिवजी बोले- हे पुत्रों सुनो 1-सृष्टि 2-स्थिति 3-संघार 4-तिरोभाव 5-अनुग्रह यह मेरे पांच कृत्य संसार में नित्य सिद्ध हैं।

इसमें जगत के आरंभ का नाम सर्ग, उसको रखने का नाम स्थिति, नष्ट करने का नाम संघार, अदल बदल करने का नाम तिरोभाव और संसार को सर्ग से मुक्त होने का नाम अनुग्रह है । Shiv Puran Katha sikhen  शिव पुराण कथा

इन्हीं कर्मों के द्वारा मैं संसार का संचालन करता हूं। मेरे भक्तजन इन पांचों कृत्यों को पांचो भूतों में देखते हैं । सृष्टि भूतल में ,स्थिति जल में ,संघार अग्नि में ,तिरोभाव वायु में और अनुग्रह आकाश में स्थित है ।

पृथ्वी से सब की सृष्टि होती है, जल से सब की वृद्धि होती है, आग सब को जला देती है, वायु सब को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती है और आकाश सब को अनुग्रहित करता है यह विद्वान पुरुषों को जानना चाहिए ।

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