शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha -14

 शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha

शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha

पृथ्वी पर भगवान शिव के अनेकों लिंग है जिनका पूजन दर्शन समस्त पापों को हरने वाला है ।
पृथ्वी पर सदा शिव के पांच लिंग विशेष हैं- 1-स्वयंभू लिंग, 2-बिंदु लिंग, 3-प्रतिष्ठित लिंग, 4-चर लिंग, 5-गुरु लिंग । गृहस्थ को चाहिए कि स्नान नैवेद्य द्वारा प्रतिदिन शिवलिंग की आराधना करें।
भस्म धारण- स्त्री हो या पुरुष शिव भक्तों को सदैव भस्म धारण करनी चाहिए। जो भष्म त्रिपुंड्र धारण कर शिव पूजा करता है उसे पूर्ण फल की प्राप्ति होती है । शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha
पार्थिव लिंग- हे ऋषियों सब लिगों में पार्थिव लिंग सर्वश्रेष्ठ है , जिसके पूजन से बहुत से लोग सिद्ध हो गए हैं। ब्रह्मा विष्णु और कितने ही ऋषि-मुनियों को पार्थिव लिंग के पूजन से उनके मनोरथ सिद्ध हो चुके हैं ।
कृते रत्नमयं लिगं त्रेतायां हेमसम्भवम्।
द्वापरे पारदं श्रेष्ठं पार्थिवं तु कलौ युगे।। वि-19-7
सतयुग में मणि लिंग, त्रेता में शिवलिंग, द्वापर में पारद लिंग और कलयुग में पार्थिव लिंग को श्रेष्ठ कहा गया है।
यथा नदीषु सर्वासु ज्येष्ठा श्रेष्ठा सुरापगा।
तथा सर्वेषु लिङ्गेषु पार्थिवं श्रेष्ठ मुच्यते।। वि-19-10
जैसे- सभी नदियों में गंगा ज्येष्ठ और श्रेष्ठ कही जाती है वैसे ही सभी लिंग मूर्तियों में पार्थिव लिंग श्रेष्ठ कहा जाता है । जो पार्थिव लिंग बनाकर जीवन पर्यंत शिव जी का नित्य प्रति पूजन करता है वह परलोक का भागी होता है । अनंत काल तक शिवलोक में रहकर वह भरतखंड का राजा होता है । शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha

ऋषिगण बोले-
अग्राह्यं शिवनैवेद्यमिति पूर्वं श्रुतं वचः।
हे महामुनि हमने पहले सुना है कि भगवान शिव को अर्पित किया गया नैवेद्य अग्राह्य होता है , अतएव नैवेद्य के विषय में निर्णय कर और बेलपत्र का महत्व भी कहिए ।

सूत जी बोले- हे मुनियों जो शिव भक्त हैं उसे शिव नैवेद्य अवश्य ग्रहण करना चाहिए अग्राह्य भावना का त्याग कर देना चाहिए । जो शिव दीक्षित भक्त हैं वह समस्त शिवलिंग के लिए समर्पित नैवेद्य खा सकते हैं ।
अन्यदीक्षायुजां नृणां शिवभक्तिरतात्मनाम्।
जिन मनुष्यों ने अन्य देवों की दीक्षा ली है और जो शिव जी के भक्ति में अनुरक्त हैं, उनके लिए नैवेद्य के भक्षण में निर्णय किया गया है। जहां चण्ड का अधिकार हो वहां शिवलिंग के लिए समर्पित नैवेद्य का भक्षण नहीं करना चाहिए। शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha

जहां चण्ड का अधिकार ना हो वहां भक्ति पूर्वक नैवेद्य भक्षण करना चाहिए । बांण लिंग, लौह लिंग, सिद्ध लिंग, स्वयंभू लिंग और अन्य समस्त प्रतिमाओं पर चण्ड का अधिकार नहीं होता । चण्ड के द्वारा अधिकृत होने के कारण अग्राह्य शिव नैवेद्य, पत्र, पुष्प, फल और जल यह सब शालिग्राम शिला के स्पर्श से पवित्र हो जाता है ।


बिल्व पत्र महिमा-
महादेवस्वरुपोयं बिल्वो देवैरपि स्तुत:।
बिल्व वृक्ष तो महादेव स्वरूप है , देवों के द्वारा भी इसकी स्तुति की गई है। संसार में जितने भी प्रसिद्ध क्षेत्र तीर्थ हैं वे सब बिल्व के मूल में निवास करते हैं । जो भक्ति सहित बिल्व की जड़ में दीपक जलाता है वह सब पापों से छूट जाता है। बिल्व वृक्ष के नीचे जो शिव भक्तों को भोजन कराता है उसे एक ब्राह्मण को खिलाने से एक करोड़ ब्राह्मण भोजन का फल मिलता है । शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha

( शिव नाम महिमा )
जिसके शरीर पर भस्म , रुद्राक्ष और मुख में शिव नाम यह तीनों नित्य विद्यमान रहते हैं उसका पाप विनाशक दर्शन संसार में दुर्लभ है । भगवान शिव का नाम गंगा है, विभूति जमुना है तथा रुद्राक्ष को सरस्वती कहा गया है । इन तीनों की संयुक्त त्रिवेणी समस्त पापों का नाश करने वाली है ।

बहुत पहले की बात है हितकर ब्रह्मा जी ने जिसके शरीर में उक्त तीनों त्रिपुंड रुद्राक्ष और शिव नाम संयुक्त रूप से विद्यमान थे उनके फल को तराजू के एक पडले में रखकर त्रिवेणी में स्नान करने से उत्पन्न फल को दूसरी ओर के पडले में रखा और तुलना की तो दोनों बराबर ही उतरे। अतएव विद्वानों को चाहिए कि इन तीनों को सदा अपने शरीर पर धारण करें। शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha
शिवेति नामदावाग्नेर्महापातकपर्वताः।
भष्मी भवन्त्य नायासात्सत्यं सत्यं न संशयः।। वि-23-23
शिव इस नाम रूपी दावानल से महान पातक रूपी पर्वत अनायास ही भस्म हो जाता है- यह सत्य है, सत्य है इसमें संशय नहीं है। भगवान शंकर के एक नाम में भी पाप हरण की जितनी सकती है उतना पातक मनुष्य कभी कर ही नहीं सकता । शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha

हे मुने पूर्व काल में महा पापी राजा इंद्रद्युम्न ने शिव नाम के प्रभाव से उत्तम सद्गति प्राप्त की थी। भगवान नाम की महिमा बहुत बड़ी है बाबा जी भी लिखते हैं-
कलयुग जोग न जग्य ना ज्ञाना। एक आधार राम गुण गाना।।

सब भरोस तजि जो भज रामहिं । प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहिं।।
सोई भव तर कछु संशय नाहीं। नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं।।

( रामचरितमानस, उत्तरकांड )

कलयुग में सबसे अधिक नाम महिमा है भागवत पुराण में भी श्री सुखदेव भगवान कहते हैं-
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महानगुणः।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्त सङ्गः परं व्रजेत।। भा-13-3-51
परीक्षित यह कलयुग तो दोषों का खजाना है, परंतु इसमें एक बहुत बड़ा गुण है वह गुण यही है कि कलयुग में केवल भगवान हरि का संकीर्तन करने मात्र से ही सारी आसक्तियां छूट जाती है और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है ।

भष्म महात्म्य- सूत जी बोले हे महर्षियों संपूर्ण मगंलों को देने वाला तथा उत्तम है, उसके दो भेद बताए गए हैं। मैं उन दोनों भेदों का वर्णन करता हूं आप लोग सावधान होकर सुनिए।
एकं ज्ञेयं महाभष्म द्वितीयं स्वल्प संज्ञकम्।
एक को महाभष्म जानना चाहिए और दूसरे को स्वल्प भष्म। महाभष्म के भी अनेक भेद हैं। वह तीन प्रकार का कहा गया- श्रौत, स्मार्त और लौकिक। स्वल्प भष्म के भी बहुत से भेदों का वर्णन किया गया है । शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha
श्रौत, स्मार्त भष्म को केवल द्विजों के ही उपयोग आने के योग्य कहा गया है। तीसरा जो लौकिक भष्म है वह अन्य लोगों के भी उपयोग में आ सकता है।


श्रेष्ठ महर्षियों ने बताया है कि द्विजों को वैदिक मंत्र के उच्चारण पूर्वक भस्म धारण करना चाहिए । दूसरे लोगों को बिना मंत्र के धारण करने का विधान है। सारे उपनिषदों का यही सार है कि भस्म तथा त्रिपुंड धारण करना श्रेयस्कर है। इनकी निंदा करने वाले लोग ब्रह्मा की आयु पर्यंत घोर नरक में पड़े रहकर अनेक यातनाएं भोगते हैं ।

जो भस्म तथा त्रिपुंड ( तिलक ) धारण कर श्रद्धा, यज्ञ, तप, जप, होम पूजन आदि करते हैं उनकी आत्मा शुद्ध हो जाती है।

संपूर्ण शिव कथानक की सूची देखें

 शिव पुराण इन हिंदी Shiv Puran Katha


0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close