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रुद्राक्ष
माहात्म्य- सूत जी बोले हे सौनक जी रुद्राक्ष
शंकर जी को अति प्रिय है, इसके द्वारा जप करने
से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इसकी महिमा तो सदाशिव ने स्वयं लोक के कल्याणार्थ
श्री पार्वती जी को सुनाई है ।
सदा शिव ने पार्वती जी से कहा हे देवी मैंने पूर्व काल में दिव्य
सहस्त्र वर्ष पर्यंत तपस्या की थी, एक दिन मेरा मन छुब्द हुआ
और उस समय मैंने लीलावश अपने दोनों नेत्र खोले-
पुटाभ्यां चारुचक्षुर्भ्यां पतिता जलबिन्दवः।
तत्राश्रुबिन्दुतो जाता वृक्षा रुद्राक्ष संज्ञकाः।। वि-25-7
नेत्र खोलते ही मेरे मनोहर नेत्रों से कुछ जल की
बूंदे गिरी। आंसू की उन बूंदों से वहां रुद्राक्ष नामक वृक्ष पैदा हो गए। गौड़ देश
से लेकर मथुरा, अयोध्या, काशी,
लंका, मलयाचल, सह्यगिरि
आदि देशों में रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो गए । shiv puran pdf शिव पुराण बुक
तभी से इसका महत्व इसकी माला समस्त पापों का नाश करके भुक्ति मुक्ति
देने वाली है। जिन रुद्राक्षों में छेंद बना हुआ हो वह उत्तम है और जिनके छेंद
मनुष्य द्वारा बनाए हुए हों वह मध्यम है ।
साढ़े पांच सौ रुद्राक्षों का मुकुट, तीन
लड़ीदार तीन सौ साठ रुद्राक्ष का यज्ञोपवीत, एक सौ एक
रुद्राक्ष की माला, तीन रुद्राक्ष सिखा में, छः छः रुद्राक्ष कानों में, ग्यारह-ग्यारह रुद्राक्ष
दोनों कोहनियों में तथा इतने ही दोनों मणिबंध में , तीन जनेऊ
में , पांच कमर में इस प्रकार कुल ग्यारह सौ रुद्राक्ष धारी
मनुष्य साक्षात् शिव रूप है।
तीन मुख वाला रुद्राक्ष साधन सिद्ध करता है ,यह
प्रमुख विधाओं में निपुण कर देता है। चार मुख वाला रुद्राक्ष ब्रम्हरूप है इसके
दर्शन एवं पूजन से हत्या का भी पाप छूट जाता है। चारों पुरुषार्थ का फल प्रदान
करता है। shiv puran pdf शिव पुराण बुक
कालाग्नि नामक पंचमुखी रुद्राक्ष रुद्र रूप है, यह सब कामनाएं पूर्ण कर मोक्ष प्रदान करता है। छः मुखी रुद्राक्ष स्वामी
कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे दक्षिण हाथ में बांधने से ब्रह्महत्यादि के दोष निवृत
हो जाते हैं ।
सप्तमुखी रुद्राक्ष के अनेक नाम है, इसके धारण
करने से धन प्राप्त होता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरव का रूप है इसके
धारण से दीर्घायु प्राप्त होती है और मरने पर शिव स्वरूप हो जाता है।
नव मुखी रुद्राक्ष भैरव तथा कपिला रूपा है, इसकी
अधिष्ठात्री नौ स्वरूपा अंबादेवी हैं, इसे वामांग में धारण
करने से समस्त वैभव प्राप्त होते हैं । shiv puran pdf शिव पुराण बुक
दस मुखी रुद्राक्ष विष्णु रूप है इसके धारण करने से सर्व मनोरथ सफल
हो जाते हैं। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष आदित्य रूप है इसे मस्तक पर धारण करने से सब
मनोरथ सफल हो जाते हैं और उसका तेज द्वादश सूर्यों के समान हो जाता है ।
तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। चौदह
मुख वाला रुद्राक्ष परम शिवरूप है।
पार्वती अब मैं तुम्हें रुद्राक्ष धारण के मंत्र सुनाता हूं-
1- ॐ ह्रीं नमः, 2- ॐ नमः, 3- ॐ
क्लीं नमः, 4- ॐ ह्रीं नमः, 5- ॐ हीं
नमः, 6- ॐ ह्रीं हुं नमः, 7- ॐ हुं नमः,
8- ॐ हुं नमः, 9- ॐ ह्रीं हुं नमः, 10-
ॐ ह्रीं नमः, 11- ॐ ह्रीं हुं नमः, 12-
ॐ क्रौं क्षौं रौं नमः, 13- ॐ ह्रीं नमः,
14- ॐ नमः।
इन चौदह मंत्रों को क्रमशः एक से लेकर चौदह मुख वाले रुद्राक्ष को
धारण करने का विधान है।
विना मन्त्रेण यो धत्ते रुद्राक्षं भुवि मानवः।
स याति नरकं घोरं यावदिन्द्राश्चतुर्दश।। वि-25-83
इस पृथ्वी पर जो मनुष्य मंत्र के द्वारा अभिमंत्रित किए बिना ही रुद्राक्ष
धारण करता है , वह क्रमशः चौदह इन्द्रों के काल पर्यंत घोर नरक को जाता है ।
भष्म रुद्राक्षधारी यः शिवभक्तः स उच्यते।
पञ्चाक्षर जपासक्तः परिपूर्णश्च सन्मुखे।। वि-25-90
भष्म रुद्राक्ष धारण करने वाला मनुष्य शिवभक्त कहलाता है , भष्म एवं रुद्राक्ष युक्त होकर जो मनुष्य शिव प्रतिमा के सामने स्थित होकर
ॐ नमः शिवाय इस पंचाक्षर मंत्र का जाप करता है वह पूर्ण भक्त कहलाता है।
जो इस रुद्राक्ष के महत्व को सुनता है उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो
जाती हैं और वह मोक्ष को प्राप्त करता है ,शिवजी का अति
प्रिय हो जाता है । shiv puran pdf शिव पुराण बुक
बोलिए भगवान शंकर की जय
शिव महापुराण की जय
( रूद्र संहिता- सृष्टि खंड )
वन्देन्तरस्थं निजगूढरूपं , शिवं स्वतः स्तष्टुमिदं विचष्टे।
जगन्ति नित्यं परितो भ्रमन्ति, यत्सन्निधौ
चुम्बकलोहवत्तम्।। रु•सृ•1-3
जिस प्रकार लोहा चुंबक के आकर्षित होकर उसके पास ही लटकता रहता है, उसी प्रकार यह समस्त विश्व और सदाशिव जिसके आसपास भ्रमण करते हैं ,
जिन्होंने स्वयं ही उस प्रपंच को रचने की विधि बतलाई, जो सब के अंतः करण में अंतर्यामी रूप से विराजमान हैं तथा जिन का स्वरूप
जानना अत्यंत दुर्लभ है, मैं उन भगवान शंकर जी की आदर सहित
वंदना करता हूं ।
( ऋषिगणों की वार्ता )
ऋषि बोले- हे सूत जी अब आप कृपा करके शिव का प्राकट्य, उमा की उत्पत्ति, शिव उमा का विवाह के अनंत चरित्र
है उन्हें सुनाइए!
सूतजी बोले- हे ऋषियों आप लोगों के प्रश्न ही पतित पावनी श्री गंगा
के समान हैं, ये सुनने कहने व पूछने वालों को तीनों को
पवित्र करने वाले हैं। आपके प्रश्नों के अनुसार ही नारद जी ने अपने पिता श्री
ब्रह्मा जी से प्रश्न किया था ,तब ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर
शिवचरित्र सुनाया था।
एकस्मिन्समये विप्रा नारदो मुनिसत्तमः।
ब्रह्मपुत्रो विनीतात्मा तपोर्थं मन आदधे।। रु•सृ•2-1
हे मुनिवर एक समय की बात है ब्रह्मा जी के पुत्र मुनि शिरोमणि विनीत चित्त
नारद जी ने तपस्या के लिए मन में विचार किया। हिमालय पर्वत में कोई एक परम शोभा
संपन्न गुफा थी जिसके निकट देव नदी गंगा निरंतर बहती थी।
वहां एक महान दिव्य आश्रम था जो नाना प्रकार की शोभा से सुशोभित था,
वे दिव्यदर्शी नारद जी तपस्या करने के लिए वहां गए। हिमालय पर्वत की
एक गुफा में मौन होकर बैठे बहुत दिनों में पूर्ण होने वाला तप कर रहे थे। shiv puran pdf शिव पुराण बुक
उनके उग्र तप को देखकर इन्द्र डर गया और विचार करने लगा कहीं ऐसा ना
हो कि मेरे राज सिंहासन को पाने के लिए यह तप कर रहे हों। यह विचार कर इन्द्र ने
कामदेव को बुलाया और कहने लगा हे कामदेव तुम मेरे परम मित्र एवं हितैषी हो। देखो
नारद हिमालय पर्वत पर गुफा में बैठकर दृढ़ासन से तप कर रहा है कहीं ऐसा ना हो कि
वह वरदान में ब्रह्मा जी से मेरा राज्य सिंहासन ही मांग बैठे। shiv puran pdf शिव पुराण बुक
अतः तुम आज ही वहां जाकर उसके तप को भंग कर दो इंद्र की आज्ञा पाते
ही कामदेव वहां पहुंच गया। उसने नारद जी का मन विचलित करने के लिए अनेक प्रयत्न
किए परंतु नारद जी पर कोई असर नहीं पड़ा, यह तो सदाशिव की
कृपा ही थी क्योंकि-
अत्रैव शम्भुनाकारि सुतपश्च स्मरारिणा।
अत्रैव दग्धस्तेनाशु कामो मुनितपोपहः।। रु•सृ•2-18
पहले उसी स्थान पर काम शत्रु भगवान शिव ने उत्तम तपस्या की थी और वहीं पर
उन्होंने मुनियों की तपस्या का नाश करने वाले कामदेव को शीघ्र ही भस्म कर डाला था।