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शिव पुराण कथा ऑनलाइन shiv puran katha online -16

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शिव पुराण कथा ऑनलाइन shiv puran katha online -16

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 शिव पुराण कथा ऑनलाइन shiv puran katha online

शिव पुराण कथा ऑनलाइन shiv puran katha online

अत्रैव शम्भुनाकारि सुतपश्च स्मरारिणा।
अत्रैव दग्धस्तेनाशु कामो मुनितपोपहः।। रु•सृ•2-18
पहले उसी स्थान पर काम शत्रु भगवान शिव ने उत्तम तपस्या की थी और वहीं पर उन्होंने मुनियों की तपस्या का नाश करने वाले कामदेव को शीघ्र ही भस्म कर डाला था।

वैसे भी कामदेव की माया इस स्थान पर नहीं चल सकती थी क्योंकि जब सदा शिव ने कामदेव को भस्म किया था तो उसकी पत्नी रति ने पति के जीवित होने के लिए प्रार्थना की थी, देवताओं ने भी श्री महादेव जी से प्रार्थना की तब महादेव जी ने कहा था-
जब यदुवंश कृष्ण अवतारा, होइहिं हरण महा महिभारा।
कृष्ण तनय होइहिं पति तोरा, बचन अन्यथा होहिं न मोरा।।
कि कामदेव कुछ काल पर्यंत जीवित हो जाएगा किंतु इस स्थान पर और इसके अलावा जहां तक यह भस्म होता दिखाई देता है वहां तक कि पृथ्वी में इसकी माया एवं कामबांण सफल नहीं हो सकेंगे। शिव पुराण कथा ऑनलाइन shiv puran katha online

जब इधर कामदेव का अपना प्रभाव मिथ्या सिद्ध हुआ वह शीघ्र ही स्वर्ग लोक में इंद्र के पास लौट आए, वहां कामदेव ने अपना सारा वृत्तांत और मुनि का प्रभाव कह दिया तत्पश्चात इंद्र की आज्ञा से वे वसंत के साथ अपने स्थान को लौट गए ।

उस समय देवराज इन्द्र को बड़ा विस्मय हुआ, उन्होंने नारद जी की भूरि भूरि प्रशंसा की, परंतु शिव की माया से मोहित होने के कारण वे उस पूर्व वृतांत का स्मरण ना कर सके।
दुर्ज्ञेया शाम्भवी माया सर्वेषांप्राणिनामिह।
भक्तं विनार्पितात्मानं तया सम्मोह्यते जगत्।। रु•सृ•2-25
वास्तव में इस संसार में सभी प्राणियों के लिए शंभू की माया को जानना अत्यंत कठिन है । जिसने अपने आपको शिव को समर्पित कर दिया है उस भक्त को छोड़कर संपूर्ण जगत उनकी माया से मोहित हो जाता है । शिव पुराण कथा ऑनलाइन shiv puran katha online

सदाशिव की कृपा से नारद जी ने बहुत काल तक तपस्या की अपने तप को पूर्ण हुआ समझकर नारद जी उठे तो उन्हें कामदेव पर विजय प्राप्त करने का ध्यान आया।
तब उन्हें अपने मन में अभिमान हो गया कि मैं कामदेव को जीत लिया हूं। इस प्रकार के अभिमान से उनका ज्ञान नष्ट हो गया तभी वे अपने काम विजय की कथा श्री महादेव जी को सुनाने के लिए शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर जा पहुंचे।

वहां जाकर नारद जी ने शिव जी को प्रणाम करके अपनी तपस्या की सफलता का समाचार तथा कामदेव पर विजय पाने का सब समाचार कह सुनाया।
मार चरित संकरहि सुनाए। अतिप्रिय जानि महेश सिखाए।।
बार बार बिनवउँ मुनि तोही। जिमि यह कथा सुनायहु मोही।।
तिमि जनि हरिहिं सुनावहु कबहूँ। चलेहुँ प्रसंग दुराएहु तबहूं।।

तब भक्तवत्सल महादेव जी ने नारद जी की प्रशंसा करते हुए कहा हे नारद जी तुम धन्य हो। परंतु मेरी एक बात याद रखना कि यह सब समाचार अन्य किसी भी देवता को ना सुनाना अर्थात विशेषकर विष्णु भगवान से इस बात को भूल कर ना कहना।

शिवजी के इस प्रकार समझाने पर भी होनहार वश नारद जी ने वह बात श्री विष्णु जी भगवान से जाकर कह सुनाई।
संभु दीन्ह उपदेश हित नहिं नारदहिं सोहान।
भरद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान।।
भगवान शिव के मना करने के बाद भी नारद जी ब्रह्मलोक पहुंचे और वहां ब्रह्मा जी को नमस्कार कर के अपने तपोबल से कामदेव पर विजय प्राप्ति का समाचार कह सुनाया ।

ब्रह्मा जी ने भी शिव का स्मरण करके सब कुछ जान लिया और कहा हे पुत्र इस बात को किसी से मत कहना। परंतु नारद जी ने ब्रह्मा जी के वचनों पर भी कोई ध्यान नहीं दिया यह सब सदाशिव की ही माया का प्रभाव था ।
नारदोथ ययौ शीघ्रं विष्णुलोकं विनष्टधीः।
मदाङ्कुरमना वृत्तं गदितुं स्वं तदग्रतः।। रु•सृ•2-41
अभिमान से बुद्धि विपरीत होने के कारण नारद जी अपना सारा वृत्तांत गर्व पूर्वक भगवान विष्णु के सामने कहने के लिए वहां से शीघ्र ही विष्णु लोक में गए। शिव पुराण कथा ऑनलाइन shiv puran katha online

नारद मुनि को आते देखकर भगवान विष्णु बड़े आदर से उठकर शीघ्र ही आगे बढ़े और उन्होंने मुनि को हृदय से लगा लिया।
छीर सिंधु गवने मुनि नाथा। जहं बस श्री निवास श्रुतिमाथा।।
हरषि मिले उठि रमा निकेता। बैठे आसन रिषिहिं समेता।।
बोले बिहसि चराचर राया। बहुते दिनन कीन्हि मुनिदाया।।
काम चरित नारद सब भाषे। जद्यपि प्रथम बरजि सिव राखे।।
अति प्रचंड रघुपति कै माया। जेहि न मोह अस को जग जाया।।

भगवान श्री हरि नारद जी को अपने आसन पर बिठाया और भगवान शिव का ध्यान कर हरी ने उनसे यथार्थ गर्वनाशक वचन कहने लगे - हे तात आप कहां से आ रहे हैं ? यहां किस लिए आपका आगमन हुआ है ? हे मुनि श्रेष्ठ आप धन्य हैं आपके शुभागमन से मैं पवित्र हो गया।

भगवान विष्णु के यह वचन सुनकर गर्व से भरे हुए नारद मुनि ने मद से कहा- कि किस प्रकार मैंने काम पर विजय प्राप्त की सारा वृत्तांत कह सुनाया ।
विश्व पालक हरि शिव जी द्वारा जो होना था उसे हृदय से जानकर शिव के आज्ञानुसार मुनि श्रेष्ठ नारद जी से कहने लगे-
धन्यस्त्वं मुनिशार्दूल तपोनिधि रूदारधीः।
भक्तित्रिकं न यस्यास्ति काममोहादयो मुने।। रु•सृ•2-51

हे मुनि श्रेष्ठ! आप धन्य हैं ; आप तपस्या के भंडार हैं और आपका हृदय भी बड़ा उदार है। हे मुने जिसके भीतर भक्ति ज्ञान और वैराग्य नहीं होते उसी के मन में समस्त दुखों को देने वाले काम, मोह आदि विकार शीघ्र उत्पन्न होते हैं।

आप तो नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं और सदा ज्ञान वैराग्य से युक्त रहते हैं फिर आप में काम विकार कैसे आ सकता है । आप तो जन्म से निर्विकार तथा शुद्ध बुद्धि वाले हैं । शिव पुराण कथा ऑनलाइन shiv puran katha online

श्रीहरि की कही हुई बहुत सी बातें सुनकर मुनि शिरोमणि नारदजी जोर-जोर हंसने लगे और मन ही मन भगवान को प्रणाम करके इस प्रकार कहने लगे- हे स्वामी यदि मुझ पर आपकी कृपा है तो कामदेव का मेरे ऊपर क्या प्रभाव हो सकता है । ऐसा कहकर भगवान के चरणों में मस्तक झुकाकर इच्छानुसार बिचरने वाले नारद मुनि वहां से चले गए।

सूत जी बोले- हे द्विजवरों नारद जी के चले जाने पर शिव की इच्छा से विष्णु भगवान ने एक अद्भुत माया रची जिस ओर नारद जी जा रहे थे उसी मार्ग मे एक सुंदर नगर बना दिया ।
भगवान ने उसे अपने बैकुंठ लोक से भी अधिक रमणीय बनाया था, नाना प्रकार की वस्तुएं उस नगर की शोभा बढ़ा रही थीं। वहां स्त्रियों और पुरुषों के लिए बहुत से बिहार स्थल थे । वह नगर चारों वर्णों के लोगों से युक्त था ।
तत्र राजा शीलनिधिर्नामैश्वर्य समन्वितः।
सुतास्वयम्बरोद्युक्तो महोत्सव समन्वितः।। रु•सृ•3-7
वहां शीलनिधि नामक ऐश्वर्यशाली राजा राज्य करते थे। वह अपनी पुत्री का स्वयंवर करने के लिए उद्यत थे। अतः उन्होंने महान उत्सव का आयोजन किया था , उनकी कन्या का वरण करने के लिए उत्सुक हो चारों दिशाओं से बहुत से राजकुमार आए थे।

जो नाना प्रकार की वेशभूषा तथा सुंदर शोभा से प्रकाशित हो रहे थे, उन राजकुमारों से वह नगर भरा पड़ा दिखाई देता था । ऐसे राजनगर को देख नारद जी मोहित हो गए । शिव पुराण कथा ऑनलाइन shiv puran katha online

जब राजा ने नारदजी को आते देखा तो उन्हें सादर प्रणाम करके स्वर्ण सिंहासन पर बैठा कर उनकी पूजा की और अपनी देव सुंदरी कन्या को बुलाकर उनके चरणों में प्रणाम करवाया और बोला हे मुनिराज आप सर्वश्रेष्ठ त्रिकालज्ञ हैं, अतः आप अपने हृदय में विचार कर इस कन्या के गुण एवं दोषों को कहिए ?

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