शिव पुराण कथा हिंदी में pdf -17

शिव पुराण कथा हिंदी में pdf

शिव पुराण कथा हिंदी में pdf

जब राजा ने नारदजी को आते देखा तो उन्हें सादर प्रणाम करके स्वर्ण सिंहासन पर बैठा कर उनकी पूजा की और अपनी देव सुंदरी कन्या को बुलाकर उनके चरणों में प्रणाम करवाया और बोला हे मुनिराज आप सर्वश्रेष्ठ त्रिकालज्ञ हैं, अतः आप अपने हृदय में विचार कर इस कन्या के गुण एवं दोषों को कहिए ?

राजा के ऐसे वचन सुनकर नारदजी बोले- हे राजन् आपकी कन्या भगवती है । इसका पति तो त्रिलोकीनाथ, तीनों लोकों में विजय पाने वाला, शिवजी के समान वीर, कामदेव को जीतने वाला महा यशस्वी होगा। शिव पुराण कथा हिंदी में pdf 

यह कहकर नारद जी चलने लगे परंतु शिव माया से मोहित होकर के कामासक्त होने के कारण रुक गए । तब उनके मन में विचार आया कि यह कन्या मुझे प्राप्त हो जाए तो अच्छा है। परंतु मुझे इसको पाने के लिए क्या उपाय करना चाहिए ? क्योंकि इन राजाओं के सामने यह कन्या भला स्वयंवर में मुझे किस प्रकार वरेगी।

हां एक उपाय है- मैं विष्णु भगवान का रूप लेकर जाऊं तो अवश्य कार्य सिद्ध हो जाएगा। यह विचार कर नारद जी-
विष्णुलोकं जगामाशु नारदः स्मरविह्वलः।
विष्णुलोक में जा पहुंचे और विष्णु भगवान को नमस्कार कर बोले- हे भगवन राजा शीलनिधि की कन्या अत्यंत सुंदरी है , उसका स्वयंवर हो रहा है मेरी इच्छा है कि उसका विवाह मेरे साथ हो जाए। इसलिए आप कृपा करके अपना रूप मुझे प्रदान कर दीजिए।
आपन रूप देहु प्रभु मोहीं। आन भांति नहिं पावौं ओही।।
जेहि विधि नाथ होइ हित मोरा। करहुँ सो बेगि दास मैं तोरा।।
निज माया बल देखि बिसाला। हिंय हरि बोले दीन दयाला।।
विष्णु भगवान बोले- हे नारद आप वहां अवश्य ही जाइए मैं उसी तरह आपका हित साधन करूंगा जैसे- श्रेष्ठ वैद्य अत्यंत पीड़ित रोगी का हित करता है, क्योंकि आप मुझे विशेष प्रिय हैं । शिव पुराण कथा हिंदी में pdf 
कुपथ मागरुज व्याकुल रोगी। बैद न देइ सुनहुं मुनि जोगी।।
एहि बिधि हित तुम्हार मै ठयऊ। कहि अस अंत रहित प्रभु भयऊ।।
ऐसा कह कर भगवान विष्णु ने नारद मुनि को मुख तो वानर का दे दिया और शेष अंगों में अपने जैसा स्वरूप देकर के वहां से अंतर्ध्यान हो गए। बंदर का एक नाम हरि भी है ।

तब तो नारद जी अत्यंत प्रसन्न होते हुए अपने को परम सुंदर समझते हुए शीघ्रातिशीघ्र स्वयंवर में आ गए और अपने आप को सभा में बैठे हुए इंद्र के समान शोभा युक्त समझने लगे । शिव पुराण कथा हिंदी में pdf 
उस सभा में रुद्रगण ब्राह्मण के रूप में बैठे हुए थे वे इस भेद को भलीभांति जानते थे । नारद जी का बानर रूप केवल कन्या को ही दिखाई दे रहा था बाकी सब नारद जी का वास्तविक रूप देख रहे थे।

हे ऋषियों जब वह कन्या हाथ में जयमाला लिए अपनी सखियों के साथ स्वम्बर में आई तो नारद जी के बानर रूप को देखकर वह अत्यंत क्रोधित हुई। वह कन्या नारद जी की ओर तो भूलकर भी नहीं गई और जब उसे अपने योग्य कोई भी वर दिखाई नहीं दिया तो वह बहुत ही उदास हो गई।
थोड़ी देर बाद स्वयं विष्णु भगवान भी वहां आ पहुंचे परंतु उनका विष्णु रूप किसी को दिखाई नहीं दिया, तब कन्या प्रसन्न होकर जयमाला भगवान के गले में डाल दी और विष्णु भगवान भी तुरंत उस कन्या को लेकर अपने लोक को चले गए । शिव पुराण कथा हिंदी में pdf 

तब सारे राजा भी नारद जी सहित निराश होकर वहां से उठ गए। उस समय ब्राम्हण रूप धारी उन दोनों रूद्र गणों ने आकर कहा- नारद जी आप कामदेव की माया से मोहित हो इसी कारण आप कन्या को बरने की व्यर्थ अभिलाषा कर रहे हो।

आपका वानर जैसा भयंकर मुख है जरा उसको तो देखो! यह सुनते ही नारद जी ने दर्पण में अपना मुख देखा तो अपना वानर जैसा रूप देखकर एकदम क्रोध में भर गए । शिव पुराण कथा हिंदी में pdf 

अपने सामने खड़े हुए दोनों रुद्रगणों को शाप दे डाला, कि तुम दोनों ने ब्राह्मण रूप होकर मेरी हंसी उड़ाई है इसलिए तुम ब्राह्मण कुल में पैदा होकर राक्षस बन जाओ । रूद्र गणों ने श्राप को शिरोधार्य कर लिया और नारद जी से कुछ भी नहीं कहा।

( नारद जी का विष्णु को शाप देना )
ऋषि बोले- हे सूतजी रूद्र गणों के चले जाने पर कामासक्त नारद जी कहां गए और क्या किया?
सूतजी बोले- हे ऋषियों नारदजी क्रोधित होते हुए तालाब पर आए और वहां जल में अपनी परछाई देखी तो उन्हें पूरी वानर जैसी आकृति दिखाई दी । तब तो नाराज हो अत्यंत क्रोध में भरकर सीधे विष्णु भगवान से बोले-
हे हरे त्वं महादुष्टः कपटी विश्वमोहनः।
परोत्साहं न सहसे मायावी मलिनाशनः।। रु•सृ•4-6

हे हरि तुम बड़े दुष्ट हो अपने कपट से विश्वभर को मोहने वाले तुम दूसरों को सुखी होता नहीं देख सकते , तभी तो तुमने सिंधु मंथन के समय मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों से अमृत का कलश छीन लिया था और उन्हें अमृत की जगह वारुणी मदिरा पिला कर पागल बना दिया था।

यदि उस समय शंकर भगवान दया करके विषपान ना करते तो तुम्हारा सारा कपट जाल प्रकट हो जाता। शिव पुराण कथा हिंदी में pdf 

देखिए वेद ब्राह्मणों को उच्च कहते हैं इस बात को आज मैं प्रत्यक्ष करके दिखा दूंगा। जिससे तुम फिर कभी ब्राह्मणों को ना सता सकोगे।

हे विष्णु तुमने स्त्री क्लेश से मुझे दुखित किया है और स्वयं ने कपट से राजा का रूप धारण किया था। अतएव जाओ तुम इसी रूप में मनुष्य राजा होवोगे और इसी तरह-
त्वं स्त्री वियोगजं दुःखं लभस्व पर दुःखदः।
मनुष्यगतिकः प्रायो भवाज्ञान विमोहितः।। रु•सृ• 4-17
तुम भी स्त्री वियोग भागोगे जिस तरह मैं भोग रहा हूं । तुमने बानरों जैसे मेरी आकृति की है, वे बानर ही आकर तुम्हारी सहायता करेंगे और तुम मनुष्यों की तरह स्त्री वियोग में दुखित रहोगे।
इस प्रकार का श्राप सुनकर विष्णु भगवान ने श्राप को अगींकार कर लिया और विष्णु भगवान के साथ जो राजकुमारी ( माया ) दिखाई दे रही थी वह अदृश्य हो गई। तब तो विष्णु जी और नारद जी दोनों अपने वास्तविक रूप में आ गए। इस प्रकार से नारद जी की माया से लुप्त हुआ ज्ञान फिर से आ गया ।

तब तो नारद जी बहुत पछताने लगे और अपने को धिक्कारते हुए भगवान के चरणों में गिरकर कहने लगे - हे भगवन मुझे क्षमा कर दो मैंने जो अज्ञान बस आप को श्राप दिया है वह मिथ्या हो जाए, नहीं तो मैं घोर नरक में पडूंगा । शिव पुराण कथा हिंदी में pdf 

हे भगवान कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे मैं इस पाप से मुक्त हो जाऊं। क्योंकि मैं आपका दास ही हूं, मुझे इस नरक यातना से बचा लो ।
तब विष्णु भगवान ने चरणों में पड़े हुए नारदजी को उठाकर गले से लगाते हुए कहा- हे नारद चिंता मत करो, तुम परम धन्य हो। तुमने अहंकार वस शिव की आज्ञा का पालन नहीं किया था , इसलिए उन्होंने ही तुम्हारा गर्व नष्ट किया है, यह मेरे वचन सत्य समझो। शिव पुराण कथा हिंदी में pdf 

क्योंकि वह परम ब्रम्ह सच्चिदानंद सत रज तम से परे तथा निर्गुण और निर्विकार हैं। हे नारद जी वह ब्रह्मा विष्णु और रूद्र इन तीनों रूपों में अपनी माया द्वारा ही प्रकट होते हैं।
न खेदं कुरु मे भक्त वरस्त्वं नात्र संशयः।
इसलिए अब आप सब शोक एवं संदेहों को त्यागकर केवल उन्हीं शिव का गुणगान करो-
जपहुं जाइ संकर सत नामा। होइहिं हृदय तुरत विश्रामा।।
और उन्हीं के शतनाम स्तोत्र का पाठ करो इससे तुरंत ही तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगे । शिव पुराण कथा हिंदी में pdf 
सूतजी बोले-
अन्तर्हिते हरौ विप्रा नारदो मुनि सत्तमः।
विचचार महीं पश्यन शिवलिङ्गानि भक्तितः।। रु•सृ• 5-1

महर्षियों भगवान श्री हरि के अंतर्ध्यान हो जाने पर मुनिश्रेष्ठ नारद जी शिवलिंगो का भक्ति पूर्वक दर्शन करते हुए पृथ्वी पर बिचरने लगे। भक्ति मुक्ति देने वाले अनेकों शिवलिंग के दर्शन किए।

संपूर्ण शिव कथानक की सूची देखें

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