shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में
शिव पुराण कथा भाग-2
आइए
शिव जी का ध्यान करते हुए हम माहात्म्य की कथा में प्रवेश करें-
सच्चिदानन्द रूपाय भक्तानुग्रह कारिणे। माया
निर्मित विश्वाय माहेश्वराय नमो नमः।।
सत + चित + आनंद= सच्चिदानंद, सत् का मतलब
त्रिकालावधी जिसका अस्तित्व सत्य हो। चित् माने प्रकाश होता है, अर्थात जो स्वयं प्रकाश वाला है और अपने प्रकाश से सब को प्रकाशित करने वाला
है । आनंद माने आनंद होता है जो स्वयं आनंद स्वरूप होकर समस्त जगत को आनंद प्राप्त
कराता है ,इस प्रकार ऐसे कार्यों को करने वाले को सच्चिदानंद
कहते हैं।
वे सच्चिदानंद कल्याण स्वरूप आदिशिव ही हैं। अर्थात सत् भी शिव हैं।
चित भी शिव हैं और आनंद भी शिव हैं। तथा जिनका आदि मध्य और अंत तीनों ही सत्य है ,तथा सत्य था एवं सत्य रहेगा । ऐसे शाश्वत सनातन श्री शिव को ही सच्चिदानंद
कहते हैं । रूपाय ,माने ऐसे गुण या धर्म या रूप वाले ।
भक्तानुग्रह कारिणे- अपने भक्तों पर अनुग्रह करने वाले।
माया निर्मित विश्वाय- वह अपनी माया से ही विश्व का निर्माण करते
हैं ,पालन व संघार करते हैं। माहेश्वराय नमो नमः - ऐसे देवों
के देव महादेव महेश्वर के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं।
शौनक जी के साधन विषयक प्रश्न करने पर सूत जी का उन्हें शिव
महापुराण की महिमा सुनाना-
हे हे सूत महाप्राज्ञ सर्वसिद्धान्तवित् प्रभो।
आख्याहि मे कथासारं पुराणानां विशेषतः।। मा-1-1
शौनक जी ने पूंछा- कि हे सूत जी, ज्ञान और
वैराग्य के सहित भक्ति से प्राप्त होने वाली विवेक बुद्धि कैसे होती है? साधु पुरुष किस काम, क्रोध आदि विकारों का निवारण
करते हैं।
जीवाश्चासुरतां प्राप्ताः प्रायो घोरे कलाविह।
मा-1-3
कलयुग में जीव असुर स्वभाव के हो गए हैं उन्हें शुद्ध बनाने का उपाय
क्या है? आप मुझे कोई ऐसा साधन बताइए जो कल्याणकारी वस्तुओं
में श्रेष्ठ हो । जिसके करने से शीघ्र ही अंतःकरण की शुद्धि हो जावे तथा निर्मल
पुरुष को सदा के लिए शिवजी की प्राप्ति हो जावे । श्री सूत जी बोले-
धन्यस्त्वं मुनिशार्दूल श्रवण प्रति लालसः।
अतो विचार्य सुधिया वच्मि शास्त्रं महोत्तमम्।। मा-1-6
हे ऋषि वृन्द आप धन्य हो, आप में कथा सुनने की
उत्सुकता है तो सुनिए ,मैं एक अति उत्तम शास्त्र का वर्णन
करता हूं । यह शास्त्र भक्ति उत्पन्न करने वाला है, शिवजी को
प्रसन्न करने वाला है, काल रूपी सर्प का नाश करने वाला रसायन
स्वरूप है ।
सर्वप्रथम इस शास्त्र को शिवजी ने अपने श्री मुख से श्री सनत कुमार
जी से कहा था इसीलिए इसका नाम शिव महापुराण है ।
श्री सनत कुमार जी ने महर्षि वेदव्यास जी से इस शास्त्र का वर्णन
किया । व्यास जी ने लोक कल्याणार्थ इसे संक्षेप में कहा। इस शास्त्र के श्रवण,
पठन एवं मनन करने से कलियुगी जीवो का मन शुद्ध होता है और अंत में
शिव पद प्राप्त करते हैं ।
इसके श्रवण मात्र से प्राणी को मुक्ति मुक्ति तथा राजसूय यज्ञों का
फल प्राप्त हो जाता है । इसके श्रोता गण शिव रूप होते हैं। यदि प्रतिदिन ना सुन
सके तो, दो घड़ी ही बैठकर के सुने चाहे एक मुहूर्त अथवा आधा
क्षण ही सही लेकिन इस पुराण को अवश्य श्रवण करें।
हे महर्षियों सर्व प्रकार के दान एवं यज्ञो के करने से जिस फल की
प्राप्ति होती है ,वह फल इसके श्रोता को स्वयं ही प्राप्त हो
जाते हैं।
एकोजरामरः स्याद्वै पिबन्नेवामृतं पुमान्।
शम्भोः कथामृतं कुर्यात् कुलमेवाजरामरम्।। मा-1-28
अमृत
पान करने से तो केवल अमृत पान करने वाला ही अमर होता है, किंतु
भगवान शिव का यह कथामृत संपूर्ण कुल को ही अजर अमर कर देता है ।
श्री शिवपुराण की सात सहिंता है, चौबीस हजार
श्लोक हैं। यह सातों संहिता-1- विश्वेश्वर संहिता, 2-रूद्र संहिता, 3-शत रुद्री संहिता, 4-कोटी रुद्री संहिता, 5-उमा संहिता ,6-कैलाश संहिता, 7-वायु संहिता। यह सात संहिता वाला
शिव महापुराण परम दिव्य है, सर्वोपरि ब्रह्म तुल्य है ,शुभ गति देने वाला है ,इन सातों संहिता वाले शिव
पुराण को जो पढ़ लेता है अथवा सुन लेता है उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
शैवं
पुराणमिद मात्मविदां वरिष्ठं
सेव्यं सदा परमवस्तु सता
समर्च्यम्।
तापत्रयाभिशमनं सुखदं सदैव
प्राणप्रियं विधिहरीश
मुखामराणाम्।। मा-1-50
यह शिवपुराण आत्म तत्वज्ञों के लिए सदा सेवनीय है, सत पुरुषों के लिए पूजनीय है, तीनों प्रकार के तापों
का शमन करने वाला है, सुख प्रदान करने वाला है तथा ब्रह्मा
विष्णु महेश आदि देवताओं को प्राणों के समान प्रिय है ।
सूत जी बोले कि-
सूत सूत महाभाग धन्यस्त्वं परमार्थ वित्। मा-2-1
हे सूत जी आप परम धन्य हैं वह अद्भुत कथा सुनाई है जो पापों का नाश
करने वाली ,मन को पवित्र करने वाली और भगवान शिव को प्रसन्न
करने वाली है।
( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )
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