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शिव पुराण कथा हिंदी में PDF -21

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शिव पुराण कथा हिंदी में PDF -21

शिव पुराण कथा हिंदी में PDF -21

 शिव पुराण कथा हिंदी में PDF

   शिव पुराण कथा भाग-21  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

अभी तक उसने नैवेद्य खाया भी नहीं था , कि इतने में यम के दूतों ने आकर उसे बांध लिया परंतु ज्यों ही उसे ले जाना चाहते थे कि दिव्य विमानों में बैठे हुए त्रिशूलधारी शिवजी के पार्षद भी उसे लेने वहां आ गए और बोले- हे यमदूतों अब तुम इस परम धर्मात्मा को छोड़ दो क्योंकि अब इसमें कोई पाप शेष नहीं रहा ।

यम के दूतों ने शिवजी के गणों को नमस्कार करके कहा आप नहीं जानते यह बड़ा पापी है और अपने धर्म कर्म से हीन, कुल के आचरण से हीन, अपने पिता का बड़ा शत्रु है।

देखिए शिवजी का इसने प्रसाद भी चुराया है तब शिव गणों ने कहा हे यमदूतों पापरहित इस यज्ञ पुत्र ने यहां पर जो पुण्य कर्म किया है उसे सावधान होकर सुनो- इसने शिवलिंग के शिखर पर पड़ रही दीपक की छाया को दूर किया और अपने उत्तरीय वस्त्र को फाडकर उससे दीपक की वर्तिका बनाई और फिर उससे दीपक को पुनः जलाकर उस रात्रि में शिव के लिए प्रकाश किया ।

इसके अलावा शिव पूजा के प्रसंग में इसने शिव के नामों का श्रवण किया , स्वयं उनके नामों का उच्चारण भी किया है । भक्तों के द्वारा विधिवत की जा रही पूजा को इसने उपवास रखकर बड़े ही मनोयोग से देखा है।

यह आज ही शिवलोक हमारे साथ जाएगा वहां शिव का अनुगामी बनेगा और उत्तम भोगों का उपभोग करेगा फिर यह अपने पाप रूपी मैल को धोकर कलिंग देश का राजा बनेगा क्योंकि यह श्रेष्ठ ब्राह्मण निश्चित ही शिव का प्रिय हो गया है ।

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हे यमदूतों अब तुम लोग जहां से आए हो वहीं चले जाओ । यमदूतों ने जब इस बृत्तांत को धर्मराज से कहा- तो उन्होंने अपने गणों से कहा-
ये त्रिपुण्ड्र धरा लोके विभूत्या सितया गणाः।
ते सर्वे परिहर्तव्या नाने तव्याः कदाचन।। रु•सृ•18-44
जो इस संसार में श्वेत भष्म से त्रिपुण्ड्र धारण करते हैं ,उन सभी को छोड़ देना और यहां पर कभी मत लाना। जो इस जगत में रुद्राक्ष धारण करने वाले हैं या सिर पर जटा धारण करते हैं उन सब को तुम लोग छोड़ देना। धर्मराज ने यहां तक कह दिया कि-
उपजीवन हेतोश्च शिववेशधरा हि ये।
ते सर्वे परिहर्तव्या नाने तव्याः कदाचन।। रु•सृ•18-48

जिन लोगों ने जीविका के निमित्त ही शिव का भेष धारण किया है, उन सब को भी छोड़ देना और यहां कभी मत लाना । तब यमदूतों ने कहा आपकी जैसी आज्ञा वैसा ही होगा ।

ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार शिव पार्षदों ने यमदूतों से उस ब्राह्मण को छुड़ाया और वह पवित्र मन से युक्त होकर शीघ्र ही उन शिव गणों के साथ शिवलोक को चला गया।

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वहां पर सभी सुखों का उपभोग करके तथा भगवान सदाशिव एवं पार्वती की सेवा करके वह दूसरे जन्म में कलिंग देश का राजा अरिंदम का पुत्र हुआ।

उस शिव पारायण बालक का नाम दम हुआ, छोटी अवस्था होने पर भी शिव भक्ति में लग गया । युवावस्था आते ही उसके पिता का प्राणांत हो गया और वह राजा बन गया । उसने प्रेम पूर्वक अनेकों शिवधर्मों को प्रारंभ में किया।

वह दीपदान को सर्वोत्कृष्ट मानता था, उसने अपने राज्य में आदेश दिया कि सभी शिवालयों में दीप प्रज्वलन की व्यवस्था करनी है, जो यह नहीं करेगा उसको दंड मिलेगा। उसने कहा-
द्वीपदाना च्छिवस्तुष्टो भवतीति श्रुतीरितम्।
दीपदान से भगवान शिव संतुष्ट होते हैं ऐसा श्रुतियों में कहा गया है। इस प्रकार जीवन पर्यंत इसी धर्माचरण के पालन से राजा दम धर्म की महान समृद्धि प्राप्त करके अंत में कालधर्म की गति को प्राप्त हुआ। दीपदान के कारण वह अगले जन्म में अलकापुरी का राजा कुबेर हुआ।
एवं फलति कालेन शिवे ल्पमपि यत्कृतम्।
इति ज्ञात्वा शिवे कार्यं भजनं सुसुखार्थिभिः।। रु•सृ•18-62
इस प्रकार भगवान शंकर के लिए अल्पमात्र भी किया गया धार्मिक कृत्य समय आने पर फल प्रदान करता है। यह जानकर उत्तम सुख चाहने वाले लोगों को शिव का भजन करना चाहिए।

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इस प्रकार यज्ञदत्त के पुत्र गुण निधि के चरित्र का वर्णन कर दिया। जो शिव को प्रसन्न करने वाला है और जिसको सुनने वाले की सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। गुण निधि ने सर्वदेवमय भगवान् सदाशिव से जिस प्रकार मित्रता प्राप्त की अब मैं उसका वर्णन आपसे कर रहा हूं। ब्रह्माजी बोले-
पाद्मे कल्पे मम पुरा ब्रह्मणो मानसात्सुतात्।
पुलस्त्याद्विश्रवणा जज्ञे तस्य वैश्रवणः सुतः।। रु•सृ• 19-1
पहले के पाद्म कल्प की बात है, मुझ ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्त्य से विश्रवा का जन्म हुआ और विश्रवा के पुत्र वैश्रवण कुबेर हुए। उन्होंने अत्यंत उग्र तपस्या के द्वारा त्रिनेत्र धारी महादेव की आराधना की , भगवान शंकर प्रकट हुए और साक्षात दर्शन दिए।

उसने कहा हे शिव जी आपके तेज से मेरे नेत्र बंद हो गए हैं अतः अपने चरण कमलों के दर्शन करने की सामर्थ मेरे नेत्रों को दीजिए- उसकी यह बात सुनकर देवाधिदेव उमापति ने अपने हथेली से उनका स्पर्श करके उन्हें अपने दर्शन की शक्ति प्रदान की ।

देखने की शक्ति मिल जाने पर यज्ञ के पुत्र ने आंखें खोल कर पहले उमा की ओर ही देखना आरंभ किया- वह मन ही मन सोचने लगा भगवान शंकर के समीप यह सर्वांग सुंदरी कौन है ? इसने मेरे तप से भी अधिक कौन सा तप किया है ?

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यह प्रेम ,यह सौभाग्य और यह असीम शोभा सभी अद्भुत है। बार बार जब यही कहता हुआ जब वह क्रूर दृष्टि से उनकी ओर देखने लगा तब पार्वती के अवलोकन से उसकी बाईं आंख फूट गई ।

पार्वती देवी ने महादेव जी से कहा- प्रभु यह दुष्ट बार-बार मुझे क्रूर दृष्टि से देख रहा है। देवी की यह बात सुनकर महादेव जी ने कहा-
उमे त्वदीयः पुत्रोयं न च क्रूरेण चक्षुषा।
हे उमे यह तुम्हारा पुत्र है, यह तुम्हें क्रूर दृष्टि से नहीं देख रहा अपितु तुम्हारी तपः संपत्ति का वर्णन कर रहा है । इसके बाद महादेव जी ने उस ब्राह्मण पुत्र से कहा- हे वत्स मैं तुम्हारी तपस्या से संतुष्ट होकर तुम्हें वर देता हूं कि तुम निधियों के स्वामी और गुह्यकों के राजा हो जाओ और तुम यक्षों, किन्नरों और राजाओं के भी राजा हो जाओ तथा सभी के लिए धन के दाता हो जाओ।
मया सख्यं च ते नित्यं वत्स्यामि च तवान्तिके।
मेरे साथ सदा तुम्हारी मैत्री बनी रहेगी और हे मित्र तुम्हारी प्रीति बढ़ाने के लिए मैं अलकापुरी के पास ही रहूंगा, नित्य तुम्हारे निकट निवास करूंगा।

हे यज्ञदत्त कुमार आओ इन उमादेवी के चरणों में प्रशन्न मन से प्रणाम करो, यह तुम्हारी माता है । जब ब्राह्मण कुमार प्रणाम किया देवी प्रसन्न हो बोली- हे वत्स भगवान शिव में तुम्हारी सदा निर्मल भक्ति बनी रहे ।

हे पुत्र मेरे रूप के प्रति ईर्ष्या करने करण तुम कुबेर नाम से प्रसिद्ध होओ । इस प्रकार कुबेर को वर देकर भगवान महेश्वर पार्वती देवी के साथ अपने वैश्वेश्वर नामक धाम में चले गए।

कुबेर ने भगवान शंकर की मैत्री प्राप्त की और अलकापुरी के पास जो कैलाश पर्वत है, वह भगवान शंकर का निवास स्थान हो गया।

!!सदा शिव भगवान की जय!!

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