संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में
( पंचाक्षर मंत्र की महिमा )
श्री कृष्ण जी बोले- महर्षि अब कृपा करके पंचाक्षर
मंत्र की महिमा सुनाइए ? उपमन्यु बोले- हे कृष्ण जी वेदों
में तथा दिव्य शास्त्रों में ओंकार के साथ पंचाक्षर मंत्र की बड़ी महिमा कही गई है
। यह मंत्र भक्तों की सभी कामनाओं को पूर्ण करता है , इसके
अक्षर तो थोड़े हैं किंतु वेदों का स्वरूप होने के कारण इसमें अर्थ सिद्धि बहुत
है। मुक्तिदाता सभी सिद्धियाँ इसी में विद्यमान हैं। जिसके हृदय में ओम नमः शिवाय
यह षडक्षर मंत्र प्रतिष्ठित है, उसे दूसरे बहु संख्यक मंत्रो
और अनेक विस्तृत शास्त्रों से क्या प्रयोजन । जिसने ओम नमः शिवाय इस मंत्र का जप
दृढ़ता पूर्वक अपना लिया है। उसने संपूर्ण शास्त्र पढ़ लिया है और समस्त शुभ
कृत्यों का अनुष्ठान पूरा कर लिया है।
अंत्यजो वाधमो वापि मूर्खो वा पंडितोऽपि
वा।
पञ्चाक्षर जपे निष्ठो मुच्यते
पापपञ्जरात्।।
पंचाक्षर मंत्र के जप में लगा हुआ पुरुष यदि पंडित
मूर्ख अन्त्यज अथवा अधम भी हो तो वह पाप पंजर से मुक्त हो जाता है ।
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( मानसिक पूजा )
उपमन्यु बोले- हे श्री कृष्ण अगन्यास आदि कृत्य तक
पूर्ण विधि करें। उसके बाद अपने मन द्वारा पूजन सामग्री की कल्पना करें उससे विधि
पूर्वक गणेश पूजन करके दक्षिण तथा उत्तर में क्रमशः नंदीश्वर और सुयशा की आराधना
करके विद्वान पुरुष मन से उत्तम आसन की कल्पना करें। सिंहासन योगासन अथवा तीनों
तत्वों से युक्त निर्मल पद्मासन की भावना करें । उसके ऊपर सर्व मनोहर साम्ब शिव का
ध्यान करें-
कर्पूरगौरं करुणा वतारं ससांर सारं
भुजगेन्द्र हारम।
सदा वसन्तं हृदयार्वृन्दे भवं भवानी
सहितं नमामि।।
भावनामय सामग्री साधन से भक्ति के साथ माता
पार्वती के साथ सदाशिव का पूजन करें। भावना में पुष्प चढ़ावें, बिलों पत्र चढ़ावें, इस प्रकार मानसिक पूजा से भगवान
शिव बहुत प्रसन्न होते हैं।
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( आवरण पूजन की विधि )
उपमन्यु कहते हैं- यदुनंदन पहले शिवा और शिव के
दाएं और बाएं भाग में क्रमशः गणेश और कार्तिकेय का गंध आदि पांच उपचारों द्वारा
पूजन करें फिर इन सब के चारों ओर ईशान से लेकर सद्योजात पर्यंत पांच ब्रह्म
मूर्तियों का शक्ति सहित क्रमशः पूजन करें । यह प्रथम आवरण में किया जाने वाला
पूजन है ,
उसी आवरण में हृदय आदि छ अंगों तथा शिव और शिवा का अग्नि कोण से
लेकर पूर्व दिशा पर्यंत आठ दिशाओं में क्रमशः पूजन करें। वहीं वामा आदि शक्तियों
के साथ वाम आदि आठ रुद्रों की पूर्वादि दिशाओं में क्रमशः पूजन करें। यह पूजन
वैकल्पिक है।
उपमन्यु बोले- यदुनंदन यह मैंने तुमसे प्रथम आवरण
का वर्णन किया है।
द्वितीयावरणं प्रीत्या प्रोच्यते
श्रद्धया शृणु।
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अब प्रेम पूर्वक दूसरे आवरण का वर्णन किया जाता
है। श्रद्धापूर्वक सुनिए- पूर्व दिशा वाले दल में अनंत का और उनके वाम भाग में
उनकी शक्तियों का पूजन करें। दक्षिण दिशा वाले दल में शक्ति सहित सूक्ष्म देव की
पूजा करें । पश्चिम दिशा के दल में शक्ति सहित शिवोत्तम का, उत्तर दिशा वाले दल में शक्तियुक्त एकनेत्र का, ईशान
कोण वाले दल में एक रुद्र और उनकी शक्ति का। अग्नि कोण वाले दल में त्रिमूर्ति और
उनकी शक्ति का, नैऋत्य कोण वाले दल में श्री कण्ठ और उनकी
शक्ति का तथा वायव्य कोण वाले दल में शक्ति सहित शिखंडीश का पूजन करें । समस्त
चक्रवर्तियों की भी द्वितीय आवरण में ही पूजा करनी चाहिए।
तृतीया वरणे पूज्याः शक्ति भिश्चाष्ट
मूर्तयः।
तृतीय आवरण में शक्तियों सहित अष्ट मूर्तियों का
पूर्वादि आठों दिशाओं में क्रमशः पूजन करें।
भवः शर्वस्तथेशानो रुद्रः पशुपतिस्ततः।
उग्रो भीमो महादेव इत्यष्टौ मूर्तयः
क्रमात्।।
भव, शर्व, ईसान, रूद्र ,पशुपति ,उग्र ,भीम और महादेव यह क्रमशः आठ मूर्तियां हैं।
इसके बाद उसी आवरण में शक्तियों सहित महादेव आदि ग्यारह मूर्तियों की पूजा करनी
चाहिए। महादेव, शिव, रूद्र, शंकर, नील, लोहित, ईशान, विजय, भीम, देवदेव, भवोद्भव तथा कपर्दीश या कपालीश ये ग्यारह
मूर्तियां है। उनका अग्नि कोण वाले दल से लेकर पूर्व दिशा पर्यंत आठ दिशाओं में
पूजन करना चाहिए। उसी आवरण में वृषेंद्र को पूजें,नंदी को
दक्षिण में, महाकाल को उत्तर में ,शास्त्रों
को अग्नि कोण में, मातृकाओं को दक्षिण दिशा में पूजें।
गणपति को नैऋत्य में पूजें, कार्तिक स्वामी को पश्चिम दिशा में, जेष्ठा को
वायव्य में ,गोरी को उत्तर में ,चण्ड
को ईशान कोण में पूजें।
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फिर चौथे आवरण में ब्रह्मा को पूज कर दक्षिण तथा
पश्चिम में आवरण के साथ रूद्र को पूजें फिर क्रम से हर एक देव आचार्य गुरु आदि को
पूजें। पांचवें आवरण में सब तरफ से देव योनियां पूजे। इस प्रकार देव देवियों को
आवरण पूर्वक पूजकर विच्छेप शांत्यर्थ फिर देवेश को पूजें। पंचाक्षर मंत्र भी बोलते
रहें,
उसके बाद शंकर पार्वती के अमृत के तुल्य अनेक शाक व्यंजन आदि अर्पित
करें
इस प्रकार पूजन करके स्तुति गायन करें फिर
पंचाक्षरी मंत्र एक सौ आठ बार जपें। क्रमानुसार गुरुदेव पूजन करके श्रद्धा से
सदस्यों को पूजें फिर सभी आवरणों के साथ देव विसर्जन करें।
( उपसंहार )
व्यास जी कहते हैं-
एतच्छिव पुराणं हि समाप्तं हितमादरात्।
पठितव्यं प्रयत्नेन श्रोतव्यं च तथैव
हि।। वा-पू-30-41
यह शिव पुराण पूरा हुआ, इस हितकर पुराण को बड़े आदर एवं प्रयत्न से पढ़ना तथा सुनना चाहिए। इसका
एकबार श्रवण से ही सारा पाप भस्म हो जाता है, भक्तिहीन भक्ति पाता है और भक्त भक्ति की समृद्धि का भागी होता है। जो
मनुष्य भक्ति परायण हो इसका श्रवण करेगा वह भी इह लोक में संपूर्ण भोगों को उपभोग
करके अंत में मोक्ष प्राप्त करेगा। यह श्रेष्ठ शिव पुराण भगवान शिव को अत्यंत
प्रिय है, इसी कारण कलिकाल में मोक्षाभिलाषी जन निरंतर ही इस
शिव पुराण की कथाएं सुनते रहे क्योंकि इस पुराण की कथाओं द्वारा ब्राह्मण क्षत्रिय
वैश्य शूद्र आदि भक्ति एवं मुक्ति पाते हैं ।
बोलिए शिव महापुराण की जय