bhagwat katha in hindi book भागवत कथा-7 (श्रीमद्भागवत महापुराण का संक्षिप्त हिंदी अनुवाद)
यह
सुनकर श्री भक्ति देवी ने श्री नारद जी को प्रणाम किया। इस प्रकार भक्ति देवी के
प्रणाम करने पर श्री नारद जी ने कहा कि-
वृथा
खेदयसे बाले अहो चिन्तातुराकथम्, श्रीकृष्णचराणाम्भोजं
स्मर दुःखम् गमिष्यति ।। ( श्रीमद् भा० मा० २ / १ )
हे बाले
! तुम व्यर्थ ही खेद क्यों करती हो एवं चिन्ता से व्याकुल क्यों हो रही हो ? वह भगवान् आज भी हैं अतः उन प्रभु के श्रीचरणों का स्मरण करो उन्हीं
श्रीकृष्ण की कृपा से तुम्हारा दुःख दूर हो जाएगा।
हे
भक्ति देवी ! तुमको परमात्मा ने अपने से मिलाने के लिए प्रकट किया था तथा ज्ञान
वैराग्य को तुम्हारा पुत्र बनाकर इस जगत् में भेजा एवम् मुक्ति देवी को भी
तुम्हारी दासी बनाकर भेजा था। परन्तु कलियुग के प्रभाव से मुक्ति देवी तो वैकुण्ठ
में चली गई अब केवल तुम ही यहाँ दिखाई देती हो। अतः मैंने भक्तों के घर-घर में एवं
हृदय में भक्ति का प्रचार नहीं कर दिया तो मेरा नाम नारद नहीं समझा जाएगा या मैं
सही में भगवान् का भक्त अथवा दास नहीं कहलाऊँगा । इसके बाद श्रीनारद जी ने वेद आदि
का पाठ कर उन ज्ञान वैराग्य को जगाया।
bhagwat katha in hindi book भागवत कथा-7 (श्रीमद्भागवत महापुराण का संक्षिप्त हिंदी अनुवाद)
इसके
बाद भी ज्ञान - वैराग्य को होश नहीं आया। उसी समय नारद जी को सत्कर्म करने की
आकाशवाणी हुई। इस प्रकार सत्कर्म करने की आकाशवाणी को सुनकर नारदजी विस्मित हुए और
वे तीर्थों में घूमते हुए महात्माओं से सत्कर्म के बारे में पूछने लगे, लेकिन उन महात्माओं से संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तथा उनके प्रश्न को सुनकर
ऋषि-मुनि कहते हैं कि जब नारदजी ही सत्कर्म के बारे में नहीं जानते तो इनसे बढ़कर
और कौन ज्ञानी और भक्त होगा जो सत्कर्म के बारे में संतोषजनक उत्तर दे सकें। अन्त
में थक-हारकर तपस्या द्वारा स्वयं सत्कर्म जानने की इच्छा से श्रीनारद जी
बदरिकाश्रम के लिए चल पड़े। क्योंकि-
तपबल रचे प्रपंच विधाता तपबल विश्व सकल जग त्राता
।
तपबल रुद्र करे संघारा तपबल शेष धरे महि भारा
।।
वहाँ
पहुँचकर अभी तप का विचार कर ही रहे थे कि-
"तावद्-ददर्श
पुरतः सनकादीन् मुनीश्वरान",
वहाँ
सनकादि ऋषियों के दर्शन हुए। इस प्रकार श्रीनारदजी ने उन्हें प्रणाम निवेदन किया
और सत्कर्म के बारे में आकाशवाणी की बात बतायी तथा सनकादि ऋषियों से उन्होंने
सत्कर्म के बारे में बताने का अनुरोध किया। श्री सनकादि ऋषियों ने कहा कि आप
चिन्ता न करें। सत्कर्म का साधन अत्यन्त सरल एवं साध्य है। हालाकि सत्कर्म करने के
बहुत से उपाय पूर्व में ऋषियों ने बताया हैं, लेकिन वे सब
बड़े कठिन है एवं परिश्रम के बाद भी स्वल्प फल देनेवाले हैं। श्रीवैकुण्ठ प्राप्त
करानेवाला सत्कर्म तो गोपनीय है। कोई-कोई ज्ञाता बड़े भाग्य से मिलते हैं जो
सत्कर्म को जानने के लिए इच्छुक या प्यासे हों। अतः आप सत्कर्म को सुने-
'सत्कर्मसूचको नूनं ज्ञानयज्ञः स्मृतो बुधैः । श्रीमद्भागवतालापः स तु गीतः
शुकादिभिः ।।
श्रीमद्
भा० मा० २/ ६०
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सत्कर्म
का अर्थ विद्वानों ने ज्ञानयज्ञ कहा है। ज्ञानयज्ञ को ही भागवत कथा कहते हैं।
भागवत कथा की ध्वनि से ही कलि के दोष एवं दैहिक दैविक, भौतिक कष्टों का निवारण हो जाता । भक्ति की प्राप्ति होती है और
ज्ञान-वैराग्य का प्रचार एवं प्रसार होता है। नारदजी द्वारा जिज्ञासा करने पर कि
वेद, उपनिषद्, वेदान्त एवं गीता में भी
भागवत कथा ही वर्णित है, फिर अलग से भागवत कथा क्यों ?
सनकादि ऋषियों ने बताया कि जिस तरह आम्रवृक्ष में आम का रस जड़ से
पत्ते तक विद्यमान रहता है, लेकिन उसका फल ही आम का रस देता
है।
वेदोपनिषदां साराज्जाता भागवती
कथा ।।
उसी तरह वेद, वेदान्त,
उपनिषद् में व्याप्त भक्ति रस आम के वृक्ष के सदृश हैं या दूध में
घी की तरह सार रूप में है। परन्तु यह भागवत आम वृक्ष के फल के समान परम मधुर एवं
लोकोपकारी तथा मुक्तिदायक है। वही भागवत कथा को आप श्रवण करके उन भक्ति देवी के
पुत्रों को स्वस्थ्य कर सकते हैं।
हे ऋषिगण ! अब आपलोग कृपया बतायें कि आयोजन का
स्थान कौन सा हो और यह कितने दिनों तक कथा चलेगी ? नारद जी
की सहज उत्कंठा देखकर शनकादि ऋषियो ने हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर आनन्दवन
नामक स्थान में एक सप्ताह के लिए भागवत कथा आयोजित करने की बात कही। इसके बाद
सनकादि मुनियों के साथ नारदजी हरिद्वार के आनन्द वन में गंगातट पर पहुँचे । इनके
पहुँचते ही तीनों लोकों में चर्चा फैल गयी।
भगवान् के भक्त भृगु, वसिष्ठ,
गौतम, च्यवन, विव्यास
इत्यादि सभी ऋषि महर्षि अपनी सन्ततियों के साथ वहाँ आ गये। वेद वेदांत मंत्र
यंत्र तंत्र 17 पुराण गंगा आदि नदियां और समस्त तीर्थ मूर्तिमान होकर कथा सुनने के
लिए प्रकट हो गए क्योंकि----
तत्रैव गगां यमुना त्रिवेणी गोदावरी सिन्धु
सरस्वती च ।
वसन्ति सर्वाणि तीर्थानि तत्र यत्राच्युतो
दार कथा प्रसंगः ।।
जहां भगवान
श्री हरि की कथा होती है वहां गंगा आदि नदियां समस्त तीर्थ है मूर्तिमान होकर प्रकट
हो जाते हैं, आनन्दवन में भागवत कथा पारायण का आयोजन किया गया,
मंडप बनाया गया। चारों दिशाओं में भागवत कथा समारोह आयोजन की चर्चा
होने लगी ।