शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमां suklam bram vichar
सरस्वती
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमां, आद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां,जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं, पद्मासने संस्थिताम्,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं, बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥ 16 ॥
अर्थात् जो शुक्लवर्ण वाली, ब्रह्म विचार ( वेदों का ज्ञान) के सार स्वरूप, अत्यधिक
श्रेष्ठ, आद्यशक्ति, जगत् में (
सर्वत्र ) व याप्तर हनेवाली, वीणाअौर पुस्तक
धारण करने वाली, अभयदान देने वाली, अज्ञानान्धकार
को दूर करने वाली, हाथ में स्फटिक की माला धारण करने वाली,
(श्वेत) कमल के आसन पर विराजमान तथा सद्बुद्धि प्रदान करने वाली हैं,
उन परमेश्वरी (सर्वसमर्थ) भगवती (ऐश्वर्य शालिनी) देवी सरस्वती को
नमस्कार है ।
एक टिप्पणी भेजें
आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |