तिलक धारण मन्त्र tilak lagane ka mantra
तिलक-धारण-प्रकार-
गङ्गा, मृत्तिका या गोपी- चन्दनसे
ऊर्ध्वपुण्ड्र, भस्मसे
त्रिपुण्ड्र और श्रीखण्डचन्दनसे दोनों प्रकारका तिलक कर सकते हैं। किंतु उत्सवकी
रात्रिमें सर्वांगमें चन्दन लगाना चाहिये ।
- - भस्मादि-तिलक-विधि –
तिलकके बिना सत्कर्म सफल नहीं हो
पाते' । तिलक
बैठकर लगाना चाहिये । अपने-अपने आचारके अनुसार मिट्टी, चन्दन और भस्म
- इनमें से किसीके द्वारा तिलक लगाना चाहिये। किंतु भगवान्पर चढ़ानेसे बचे हुए
चन्दनको ही लगाना चाहिये। अपने लिये न घिसे।
तिलक धारण मन्त्र tilak lagane ka mantra
अँगूठेसे नीचेसे ऊपरकी ओर
ऊर्ध्वपुण्ड्र लगाकर तब त्रिपुण्ड्र लगाना चाहिये। दोपहरसे पहले जल मिलाकर भस्म
लगाना चाहिये।
दोपहरके बाद जल न मिलावे । मध्याह्नमें चन्दन मिलाकर और शामको सूखा ही भस्म लगाना
चाहिये । जलसे भी तिलक लगाया जाता है। ।
अँगूठेसे ऊर्ध्वपुण्ड्र करनेके बाद
मध्यमा और अनामिकासे बायीं ओरसे प्रारम्भ कर दाहिनी ओर भस्म लगावे । इसके बाद
अँगूठेसे दाहिनी ओरसे प्रारम्भ कर बायीं ओर लगावे । इस प्रकार तीन रेखाएँ खिंच
जाती हैं। तीनों अँगुलियोंके मध्यका स्थान रिक्त रखें ।
नेत्र रेखाओंकी सीमा हैं, अर्थात् बायें
नेत्रसे दाहिने नेत्रतक ही भस्मकी रेखाएँ हों। इससे अधिक लम्बी और छोटी होना भी
हानिकर है । इस प्रकार रेखाओंकी लम्बाई छ: अंगुल होती है। यह विधि ब्राह्मणों के
लिये है'।
क्षत्रियोंको चार अंगुल, वैश्योंको
दो अंगुल और शूद्रोंको एक ही अंगुल लगाना चाहिये ।
तिलक धारण मन्त्र tilak lagane ka mantra
( क ) भस्मका अभिमन्त्रण – भस्म
लगानेसे पहले भस्मको अभिमन्त्रित कर लेना चाहिये । भस्मको बायीं हथेलीपर रखकर
जलादि मिलाकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़े-
ॐ अग्निरिति भस्म । ॐ वायुरिति भस्म
। ॐ जलमिति भस्म । ॐ स्थलमिति भस्म । ॐ व्योमेति भस्म । ॐ सर्वं ह वा इदं भस्म । ॐ
मन एतानि चक्षूंषि भस्मानीति ।
- (ख) भस्म लगानेका मन्त्र – इसके
बाद 'ॐ नमः
शिवाय " मन्त्र बोलते हुए ललाट, ग्रीवा, भुजाओं और हृदयमें भस्म लगाये । अथवा निम्नलिखित
भिन्न-भिन्न मन्त्र बोलते हुए भिन्न-भिन्न स्थानों में भस्म लगाये-
ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेरिति ललाटे । ॐ
कश्यपस्य त्र्यायुषमिति ग्रीवायाम् । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति भुजायाम् । ॐ
तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदये |