यज्ञोपवीत धारण मन्त्र - विधि yagyopavit mantra
यज्ञोपवीत धारण करनेकी आवश्यकता-
- उपनयनके समय पिता तथा आचार्यद्वारा त्रैवर्णिक
वटुओंको जो यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है, ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ – तीनों आश्रम उसे अनिवार्यतः
अखण्डरूपमें धारण किये रहनेका शास्त्रोंका आदेश है। किंतु धारण किया हुआ यज्ञोपवीत
अवस्था - विशेषमें बदलकर नवीन यज्ञोपवीत धारण करना पड़ता है।
यज्ञोपवीत कब बदलें ?
– यदि यज्ञोपवीत कंधेसे सरककर बायें हाथके नीचे आ
जाय, गिर
जाय', कोई
धागा' टूट
जाय, शौच
आदिके समय कानपर डालना भूल जाय और अस्पृश्यसे स्पर्श हो जाय तो नया यज्ञोपवीत धारण
करना चाहिये । गृहस्थ और वानप्रस्थ - आश्रमवालेको दो यज्ञोपवीत पहनना आवश्यक
है" । ब्रह्मचारी एक जनेऊ पहन सकता है । चादर और गमछेके लिये एक यज्ञोपवीत और
धारण करे । चार महीने बीतनेपर नया यज्ञोपवीत पहन लें'। इसी तरह उपाकर्ममें, जननाशौच और
मरणाशौचमें, श्राद्धमें, यज्ञ आदिमें, चन्द्रग्रहण
एवं सूर्यग्रहणके उपरान्त भी नये यज्ञोपवीतको धारण करना अपेक्षित है । यज्ञोपवीत
कमरतक रहे ।
यज्ञोपवीत धारण मन्त्र - विधि yagyopavit mantra
जैसे पत्थर ही भगवान् नहीं होता, प्रत्युत
मन्त्रोंसे भगवान्को उसमें प्रतिष्ठित किया जाता है, वैसे ही
यज्ञोपवीत धागामात्र नहीं होता । प्रत्युत निर्माणके समयसे ही यज्ञोपवीतमें
संस्कारोंका आधान होने लगता है । बन जानेपर इसकी ग्रन्थियोंमें और नवों तन्तुओंमें
ओंकार, अग्नि
आदि भिन्न-भिन्न देवताओंके आवाहन आदि कर्म होते हैं। लोग सुविधाके लिये एक वर्षके
लिये श्रावणीमें यज्ञोपवीतको अभिमन्त्रित कर रख लेते हैं और आवश्यकता पड़नेपर
धारणविधिसे इसे पहन लेते हैं। यदि श्रावणीका यज्ञोपवीत न हो तो निम्नलिखित विधिसे
उसे संस्कृत कर लें ।
यज्ञोपवीत धारण मन्त्र - विधि yagyopavit mantra
यज्ञोपवीत संस्कार एवं धारणकी विधि-
यज्ञोपवीतमें देवताओंके आवाहनकी विधि
- यज्ञोपवीतको पलाश आदिके पत्तेपर रखकर जलसे प्रक्षालित करे, फिर निम्नलिखित
एक- एक मन्त्र पढ़कर चावल अथवा एक-एक फूलको यज्ञोपवीतपर छोड़ता जाय-
प्रथमतन्तौ ॐ ओंकारमावाहयामि ।
द्वितीयतन्तौ ॐ अग्निमावाहयामि । तृतीयतन्तौ ॐ सर्पानावाहयामि । चतुर्थतन्तौ ॐ । ॐ
सोममावाहयामि । पञ्चमतन्तौ ॐ पितॄनावाहयामि । षष्ठतन्तौ ॐ प्रजापतिमावाहयामि ।
सप्तमतन्तौ ॐ अनिलमावाहयामि । अष्टमतन्तौ ॐ सूर्यमावाहयामि । नवमतन्तौ ॐ विश्वान्
ॐ देवानावाहयामि । प्रथमग्रन्थौ ॐ ब्रह्मणे नमः, ब्रह्माणमावाहयामि
। द्वितीयग्रन्थौ ॐ विष्णवे नमः, विष्णुमावाहयामि । तृतीयग्रन्थौ ॐ
रुद्राय नमः, रुद्रमावाहयामि
।
इसके बाद 'प्रणवाद्यावाहितदेवताभ्यो
नमः ' – इस मन्त्रसे 'यथास्थानं न्यसामि' कहकर उन-उन तन्तुओंमें न्यास कर
चन्दन आदिसे पूजा करे । फिर जनेऊको दस बार गायत्रीसे अभिमन्त्रित करे ।
यज्ञोपवीत धारण - विधि - इसके
बाद नूतन यज्ञोपवीत धारणका संकल्पकर निम्नलिखित विनियोग पढ़कर जल गिराये । फिर
मन्त्र पढ़कर एक जनेऊ पहने,
इसके
बाद आचमन करे । फिर दूसरा यज्ञोपवीत धारण करे । एक-एक कर यज्ञोपवीत पहनना चाहिये ।
- -
विनियोग – ॐ यज्ञोपवीतमिति मन्त्रस्य परमेष्ठी ऋषिः, लिङ्गोक्ता देवताः, त्रिष्टुप् छन्दः, यज्ञोपवीतधारणे विनियोगः ।
निम्नलिखित मन्त्रसे जनेऊ पहने-
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं
प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च
शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ॥
ॐ यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा
यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ।
यज्ञोपवीत धारण मन्त्र - विधि yagyopavit mantra
जीर्ण यज्ञोपवीतका त्याग – इसके
बाद निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर पुराने जनेऊको कण्ठी- जैसा बनाकर सिरपरसे पीठकी ओर - निकालकर उसे
जलमें प्रवाहित कर दे -
एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म
त्वं त्वं धारितं मया ।
जीर्णत्वात्
त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम् ॥
इसके बाद यथाशक्ति गायत्री मन्त्रका
जप करे और आगेका वाक्य - बोलकर भगवान्को अर्पित कर दे - ॐ तत्सत्
श्रीब्रह्मार्पणमस्तु । फिर हाथ जोड़कर भगवान्का स्मरण करे ।
नित्यकर्म- स्तुति पूजन मंत्र स्तोत्र की संपूर्ण सूची देखें