अपि चेत्सुदुराचारो भजते bhagavad gita in hindi shlok
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥
(गीता ९।३०)
'अगर कोई दुराचारी-से-दुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिये, क्योंकि उसने निश्चय बहुत अच्छी तरह कर लिया है।'
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