असंयतात्मना योगो दुष्प्राप bhagavad gita in hindi shlok

 असंयतात्मना योगो दुष्प्राप bhagavad gita in hindi shlok


असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः । 
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्सुमुपायतः ॥
(६ | ३६)
जिसका मन वशमें नहीं है, उच्छृङ्खल है अर्थात् सांसारिक भोगोंमें जिसकी रुचि है, उसके द्वारा योग प्राप्त करना कठिन है। परंतु जिसका मन वशमें है, ऐसे यत्न करनेवाले साधकको योग प्राप्त हो सकता है।' मनको वशमें करनेका अर्थ यह नहीं है कि मनको मैं पकड़ लूँ, एकाग्र कर लूँ। मनके वशमें न होना ही मनको वशमें करना है। 

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप bhagavad gita in hindi shlok

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