प्रकाशं च प्रवृत्तिं च bhagavad gita in hindi shlok

 प्रकाशं च प्रवृत्तिं च bhagavad gita in hindi shlok

प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव । 
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति ॥ 
उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचायते । 
गुणा वर्तन्त इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गत्ते ॥ 
समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः । 
तुल्यप्रियात्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः ॥ 
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः ।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीत: स उच्यते ॥ 
(गीता १४ । २२ – २५ ) 

अर्थात् हे अर्जुन ! जो पुरुष सत्त्वगुणके कार्यरूप प्रकाशको, रजोगुणके कार्यरूप प्रवृत्तिको तथा तमोगुणके कार्यरूप मोहको भी न तो प्रवृत्त होनेपर बुरा मानता है और न निवृत्त होनेपर उनकी आकाङ्क्षा करता है; जो मनुष्य उदासीन (साक्षी) के समान स्थित हुआ गुणोंके द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता तथा गुण ही गुणोंमें बर्तते हैं' –यों समझकर जो सच्चिदानन्दघन परमात्मामें एकीभाव स्थित रहता है एवं उस स्थितिसे चलायमान नहीं होता; जो निरन्तर आत्मभावमें स्थित हुआ सुख-दुःखको समान समझता है तथा मिट्टी, पत्थर और स्वर्णमें समान भाव रखता है, धैर्यवान् है, प्रिय और अप्रियको समान देखता है तथा अपनी निन्दा और स्तुतिमें भी समान भाववाला है; जो मान और अपमानको समान समझता है, मित्र और शत्रुके पक्षमें समभाव रखता है, वह सम्पूर्ण आरम्भोंमें कर्तापनके अभिमानसे रहित पुरुष गुणातीत कहलाता है।

प्रकाशं च प्रवृत्तिं च bhagavad gita in hindi shlok

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close