वासांसि जीर्णानि यथा विहाय bhagavad gita in hindi shlok
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
'मनुष्य जैसे पुराने कपड़ोंको छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही जीवात्मा पुराने शरीरोंको छोड़कर दूसरे नये शरीरोंमें चला जाता है'।
कपड़े बदलनेसे क्या मनुष्य दर्जीका हो जाता है ? ऐसे ही आपने मनुष्यके, पशुके, वृक्षके कई कपड़े पहन लिये कई शरीर धारण कर लिये, पर रहे तो भगवान्के ही। सच्ची बात है। सच्ची बातको भी नहीं मानोगे तो किसको मानोगे ? सच्ची बात कहनेवालोंमें भी भगवान् और उनके भक्त – इन दोनों की बहुत इज्जत है
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