कबीर दास के पद Pad of Kabir
कबीरदासजी महाराजकी वाणीमें आता है-
साधो सहज समाधि भली ।गुरु-प्रताप जा दिन तैं उपजी, दिन-दिन अधिक चली ॥ जहँ-जहँ डोलों सोइ परिकरमा, जो कुछ करौं सो सेवा । जब सोवों तब करौं दण्डवत, पूजों और न देवा ॥कहों सो नाम, सुनों सो सुमिरन, खाँव-पियों सो पूजा । गिरह उजाड़ एक सम लेखों, भाव न राखों दूजा || आँख न मूँदों, कान न रूँधों, तनिक कष्ट नहिं धारौं । खुले नैन पहिचानों हँसि-हँसि, सुन्दर रूप निहारौं । सबद निरंतर से मन लागा, मलिन वासना त्यागी । ऊठत-बैठत कबहुँ न छूटै, ऐसी तारी लागी । कह कबीर यह उनमनि रहनी, सो परगट करि भाई । दुख-सुख से कोई परे परमपद, तेहि पद रहा समाई ।।
ऐसी सहजावस्थाकी प्राप्तिका उपाय है - बाहर भीतरसे चुप हो जाना अर्थात् कुछ न करना । कुछ न करनेसे सब कुछ हो जाता है।
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