कबीर दास के पद Pad of Kabir

 कबीर दास के पद Pad of Kabir


कबीरदासजी महाराजकी वाणीमें आता है-

साधो सहज समाधि भली ।
गुरु-प्रताप जा दिन तैं उपजी, दिन-दिन अधिक चली ॥ 
जहँ-जहँ डोलों सोइ परिकरमा, जो कुछ करौं सो सेवा । 
जब सोवों तब करौं दण्डवत, पूजों और न देवा ॥
कहों सो नाम, सुनों सो सुमिरन, खाँव-पियों सो पूजा । 
गिरह उजाड़ एक सम लेखों, भाव न राखों दूजा || 
आँख न मूँदों, कान न रूँधों, तनिक कष्ट नहिं धारौं । 
खुले नैन पहिचानों हँसि-हँसि, सुन्दर रूप निहारौं । 
सबद निरंतर से मन लागा, मलिन वासना त्यागी । 
ऊठत-बैठत कबहुँ न छूटै, ऐसी तारी लागी । 
कह कबीर यह उनमनि रहनी, सो परगट करि भाई । 
दुख-सुख से कोई परे परमपद, तेहि पद रहा समाई ।।


ऐसी सहजावस्थाकी प्राप्तिका उपाय है - बाहर भीतरसे चुप हो जाना अर्थात् कुछ न करना । कुछ न करनेसे सब कुछ हो जाता है।

कबीर दास के पद Pad of Kabir

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