दातव्यमिति यद्दानं दीयते bhagavad gita in hindi shlok

 दातव्यमिति यद्दानं दीयते bhagavad gita in hindi shlok

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे । 
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ॥ 
(१७।२०)
'दान देना कर्तव्य है— ऐसे भावसे जो दान देश, काल और पात्रके प्राप्त होनेपर अनुपकारीको दिया जाता है, वह दान सात्त्विक कहा गया है।'

- इस श्लोकमें व्याकरणकी एक आश्चर्यकी बात आयी है। भगवान्ने 'अनुपकारिणे' पदमें चतुर्थी विभक्ति दी है और 'देशे काले च पात्रे च' पदोंमें सप्तमी विभक्ति दी है।

 कम-से-कम 'पात्रे च' में तो सप्तमी नहीं कहनी चाहिये थी, 'पात्राय' कहना चाहिये था । वहाँ सप्तमी कैसे हो गयी ? इसका तात्पर्य क्या है, पूरा तो भगवान् जानें और व्यासजी महाराज जानें, अपनेको तो पता नहीं। 

हम कोई विद्वान् तो हैं नहीं, परंतु हमारी धारणामें 'देशे काले च पात्रे च' का अर्थ है- 'देश, काल और पात्रकी प्राप्ति होनेपर ( प्राप्ते सति ) ' । 'अनुपकारिणे' का अर्थ यह नहीं है कि उपकार करनेवालेको दान मत दो, प्रत्युत जिसने हमारा उपकार किया है, उसको देनेमें दान मत मानो। 

'अनुपकारी' का अर्थ है- जिसने पहले कभी हमारा उपकार नहीं किया, अभी भी उपकार नहीं करता है और भविष्यमें भी उससे किञ्चिन्मात्र भी उपकार की आशा नहीं है, ऐसे अनुपकारीको निष्कामभावसे दान देना 'सात्त्विक दान' है । 
तात्पर्य यह हुआ कि देश, काल और पात्रके प्राप्त होनेपर अपना सम्बन्ध न रखते हुए दान दिया जाय। अगर उपकारीको दान दिया जायगा, तो दानके साथ सम्बन्ध जुड़नेसे वह 'राजस दान' हो जायगा - 'यत्तु प्रत्युपकारार्थं.....तद्दानं | राजसं स्मृतम् ॥' (१७ | २१) | 

दातव्यमिति यद्दानं दीयते bhagavad gita in hindi shlok

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