छिति जल पावक गगन समीरा ramcharitmanas prasidh chaupai
पाँच तत्त्वोंसे यह शरीर बना है-
छिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित अति अघम सरीरा ॥
(मानस ४ । ११ । २) ।
शरीर हमें संसारकी सेवाके लिये मिला है, अपने लिये नहीं। हमारेको शरीर क्या निहाल करेगा ? शरीर हमारे क्या काम आयेगा ? शरीरको अपना और अपने लिये न मानकर प्रत्युत संसारका और संसारके लिये ही मानकर उसको संसारकी सेवामें लगा दें- यही हमारे काम आयेगा।
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