ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि / bhagavad gita shloka

ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि / bhagavad gita shloka

ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि / bhagavad gita shloka

ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते ।
अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ॥
(गीता १३ । १२)

इस श्लोकके पहले चरणमें वे ज्ञेय-तत्त्वको बतलानेकी प्रतिज्ञा करते हैं, दूसरे चरणमें उसके जाननेका फल अमृतकी प्राप्ति बतलाते हैं, तीसरे चरणमें उसका नाम लक्षणके साथ बतलाते हैं और चौथे चरणमें उस ज्ञेय-तत्त्वकी अलौकिकताका कथन करते हैं कि वह न सत् कहा जा सकता है न असत् ! इस प्रकार इस श्लोकके द्वारा परमात्माके निर्गुण-निराकार रूपका वर्णन करते हैं। 

ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि / bhagavad gita shloka

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close