सर्वतः पाणिपादं तत् - bhagavad gita in hindi
परमात्माके सगुण-निराकार रूपका वर्णन करते हैं-
सर्वतः पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥
(गीता १३ । १३)
'सब जगह उनके हाथ-पैर हैं, सब जगह उनकी आँखें, सिर और मुँह हैं और सब जगह वे कानवाले हैं तथा सबको घेरकर वे स्थित हैं।'
जैसे सोनेके ढेलेमें सब जगह सब गहने हैं, जैसे रंगमें सब चित्र होते हैं, जैसे स्याहीमें सब लिपियाँ होती हैं, जैसे बिजलीके एक होनेपर भी उससे होनेवाले विभिन्न कार्य यन्त्रोंकी विभिन्नतासे विभिन्न रूप धारण करते हैं— एक ही बिजली बर्फ जमाती है, अँगीठी जलाती है, लिफ्टको चढ़ाती-उतारती है, ट्राम तथा रेलको चलाती हैं, शब्दको प्रसारित करती तथा रेकार्डमें भर देती है, पंखा चलाती हैं तथा प्रकाश करती है-इस प्रकार उससे अनेकों परस्पर विरुद्ध और विचित्र कार्य होते देखे जाते हैं।
इसी प्रकार संसारकी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय आदि अनेक परस्पर विरुद्ध और विचित्र कर्म एक ही परमात्मासे होते हैं; पर वे परमेश्वर एक ही हैं- इस तत्त्वको न समझनेके कारण ही लोग कहते हैं कि जब परमात्मा एक है, तब संसारमें कोई सुखी और कोई दुःखी क्यों है? उन्हें पता नहीं कि जो ब्रह्म निर्गुण, निराकार तथा मन-वाणी और बुद्धिका अविषय है, वही सृष्टिकी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करनेवाला सगुण-निराकार परमेश्वर है।
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