सर्वेन्द्रियगुणाभास - bhagavad gita in hindi shlok
एकताका प्रतिपादन करते हुए ही गीता कहती है—
सर्वेन्द्रियगुणाभास सर्वेन्द्रियविवर्जितम् ।
असक्तं सर्वभृचैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ॥
(१३ । १४)
'सम्पूर्ण इन्द्रियोंसे रहित होते हुए भी वे सम्पूर्ण इन्द्रियोंका कार्य करते हैं और आसक्तिरहित होते हुए भी सबका धारण-पोषण करते हैं। सर्वथा निर्गुण होते हुए भी सम्पूर्ण गुणोंके भोक्ता हैं।'
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