ज्ञान देने वाली कहानी
हम गङ्गाजीके किनारे खड़े हैं। बहुत-से सिलपट (लकड़ीके टुकड़े) बहते हुए आ गये और हमारे पास से होकर निकले तो हम खिलखिलाकर हँस पड़े कि आज तो आनन्द हो गया ! दूसरे दिन हम वहीं खड़े रहे, पर एक भी सिलपट हमारे पाससे होकर नहीं निकला, सब उधरसे बहते हुए निकल गये तो हम जोर-जोरसे रोने लगे।
कोई पूछे कि भाई, रोते क्यों हो? तो हम बोले कि आज एक भी सिलपट हमारे पाससे नहीं निकला। आप विचार करें, सिलपट हमारे पाससे निकले अथवा दूरसे बह जाय, उससे हमारेपर क्या फर्क पड़ा ? हम सिलपटको छूते ही नहीं।
सिलपट हमारे पास रहता ही नहीं, वह तो बहता है और हम एक जगह खड़े हैं। परंतु वह पाससे होकर बह गया तो राजी हो गये और दूरसे होकर बह गया तो रोने लगे- यह मूर्खता ही तो हुई ! ऐसे ही आपके यहाँ बेटा हुआ तो आप राजी हो गये और बेटा मर गया तो रोने लग गये।
किसी दूसरे आदमींके यहाँ भी लड़का हुआ और मर गया, पर तब आप रोते नहीं। उसके यहाँ धन आया और चला गया, पर आप नहीं रोते। आपके यहाँ धन आकर चला जाय तो आप रोते हो।
आपके पास पहले था नहीं, बीचमें हो गया, फिर चला गया तो आप जैसे पहले थे, वैसे ही रहे, फिर रोना किस बातका ? आप अपनेमें स्थित रहोगे तो रोओगे नहीं। परंतु आने-जानेवाली वस्तुओंके साथ चिपकोगे तो रोओगे मुफ्तमें।
संसारका दुःख आपने मुफ्तमें पकड़कर लिया हुआ है। वास्तवमें दुःख हैं नहीं। भगवान्ने दुःख पैदा किया ही नहीं। आप ही दुःख पैदा कर लेते हो।
आपको क्या शौक लगा है, पता नहीं ! आप बदलनेवालेके साथ मिलो मत। मिलोगे तो दुःखी होना पड़ेगा। मैं बदलनेवालेसे अलग हूँ—ऐसा देखते रहो। उनसे अलगावका साफ अनुभव होते ही सब दुःख, विकार मिट जायेंगे।
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