जासु सत्यता ते जड़ माया। ramcharitmanas prasidh chaupai

 जासु सत्यता ते जड़ माया।  ramcharitmanas prasidh chaupai

जासु सत्यता ते जड़ माया।  ramcharitmanas prasidh chaupai

जासु सत्यता ते जड़ माया। भास सत्य इव मोह सहाया ॥
(मानस १ । ११७।४) 
कितनी सुन्दर बात कही छोटे-से रूपमें ! जिसकी सत्यतासे यह जड़ माया मूढ़ताके कारण सत्यकी तरह दीखती है, वही सत्य है। 

जैसे चनेके आटेकी बूँदी बनायी जाय, बिलकुल फीकी, तो उसे चीनीमें डालनेसे वह मीठी हो जाती है। चनेका फीका आटा भी मीठा लगने लगता है, तो यह मिठास उसकी नहीं है। उन मीठी बुँदियोंको मुँहमें थोड़ी देर चूसते जाओ, तो वे फीकी हो जायँगी, क्योंकि वे तो फीकी ही थीं। 

तो बताओ कि चीनी मीठी हुई कि बूँदी मीठी हुई ? जो फीकेको भी मीठा करके दिखा दे, वह स्वयं मीठा है ही। ऐसे जो असत्यको भी सत्यकी तरह दिखा दे, वह सत्य है ही।

जासु सत्यता ते जड़ माया।  ramcharitmanas prasidh chaupai

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