कथा सुनने के कुछ नियम ये हैं katha sunne ke niyam
पुराण का वक्ता कैसा होना चाहिए ? पहली शर्त है पुराणज्ञ उसको पुराण का ज्ञान होना चाहिए। उसके जीवन में पवित्रता होनी चाहिए। उसके जीवन में प्रवीणता होनी चाहिए। वह अशांत और क्रोधी ना हो।
उसकी वाणी प्रकट होनी चाहिए वाचाल नहीं होना चाहिए। वाणी में अलंकार होना चाहिए। ऐसे वक्ता से हमें कथा सुननी चाहिए।
धूर्त से गिरे हुए चरित्र वाले से कुटिल व्यक्ति से कथा नहीं सुननी चाहिए। कथा के आरंभ में गणेश जी का पूजन करना चाहिए। जै
कथा के बीच में उठ बैठ नहीं करना चाहिए ऐसा लिखा है। बड़ी कठोर और एक अच्छी बात कही गई कथा के बीच में जो उठकर जाते हैं उनके जीवन से उनकी शांति उनकी लक्ष्मी उनकी संपत्ति और उनका सौभाग्य भी चला जाता है।
महाराज बात समझ में आ गई कथा के बीच में कभी उठ बैठ मत करना। अब दूसरी बात सुन लो कथा सुनते समय कभी मुंह में तंबाकू मत रखना, कभी मुह में गुटका- पान मत रखना।
तांबूल भक्षण करते हुए कथा नहीं सुननी चाहिए। जो लोग पान खाते हुए कथा सुनते हैं वह नरक में जाते हैं। तीसरी बात कथा में लेट कर कथा मत सुनना। यदि शरीर में कोई रोग नहीं है तो जो लोग लेटकर कथा सुनते हैं वह मरने के बाद अजगर बनते हैं।
जो लोग कथा में बैठकर किसी की निंदा करते हैं। दूसरे की बुराई करते हैं चुगली करते हैं। व लोग 100 जन्मों तक कुत्ता बनते हैं ऐसा लिखा है। बात समझ में आ गई इसलिए बैठ कर के काना फुसी में किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए।
यज्ञ में आओ और संकल्प लेकर के जाओ अब तक मैंने भले जीवन को बर्बाद किया लेकिन अब आज के बाद हम कुछ भी गलत नहीं करेंगे। ऐसा संकल्प लेकर जाना।
वक्ता से ऊपर आसन बैठ के भी कथा नहीं सुननी चाहिए। जो कथा के बीच में विघ्न डालते हैं वो ग्राम सूकर बनते हैं बड़ी कठोर बात कही है। इसलिए देखो भैया आ रहे हो पुण्य करने तो कथा में विक्षेप करना कथा में विघ्न डालना श्रोता भक्त के बीच से दौड़ना और भी उपद्रव उत्पाद करना सब नहीं चाहिए।
जो लोग नियम पूर्वक कथा श्रवण करते हैं उनके जीवन में जितने ग्रह विपरीत होते हैं वह सही हो जाते हैं। उनके जीवन के जितने पाप है वह नष्ट हो जाते हैं। भगवत प्राप्ति में जो प्रतिबंधक दोष है अशुभ कर्म है उसका नाश हो जाता और आप भगवान को पाने की पात्रता प्राप्त कर लेते हो।
क्या खा पीकर कथा सुने ? आपके मन में बात आती होगी कि हम यज्ञ में आ रहे क्या खाना पीना चाहिए ? तो यहां तो पहले लिखा कि भाई उपवास करके सुनो। तो आज के युग में संभव नहीं है। क्या आप नौ दिन शिव पुराण उपवास करके सुन लो।
फिर लिखा घृता पानम घी पी के सुनो। आप कहेंगे महाराज ये भी संभव नहीं है। पय पानम दूध पी सुनो। ये भी संभव नहीं है तो ऐसा करो दिन में घर में फलहार कर लेना और कथा सुनकर यज्ञ से जाना तो रात में आहार करना ऐसा तो कर सकते हो ?
किसी ने कहा कि फलहार करके आएंगे तो मन यही कहेगा जल्दी से कथा पूरी हो जाए घर जाकर आहार ले तो यहां पर लिखा है। देखो यदि मन भोजन में लगे तो जितना मन उतना बढ़िया बढ़िया खा पी के आना लेकिन कथा बिल्कुल मत छोड़ना क्योंकि ऐसा अवसर फिर मिलने वाला नहीं है।
विकारों का त्याग करके कथा में आना ध्यान से सुनना चीजों को छोड़कर कथा में आना। निंदा, चुगली, राग, किसी की निंदा करना, बैठ कर के किसी का दोष देखना ये सब छोड़ कर के कथा में आना।
लेकर के भी कुछ आना है कथा में और जो लाना हो तो लाना ही यज्ञ में जो देना हो लेकिन अपने हृदय में श्रद्धा जरूर लेकर के आना। बात आ गई समझ में एक चीज लेकर जरूर आनी है हृदय में श्रद्धा तब आप सच्चे अर्थों में कथा के अधिकारी होगे।
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