हास्य कथा - हमारी ओर से गुप्त दान - Rajeshwaranand ji maharaj hasya katha
एक बार सभा में घोषणा हुई की दान करो, गुप्त दान की बड़ी महिमा है। तो एक सज्जन बोले हमारी ओर से गुप्त दान। आयोजक ने घोसणा नहीं की तो मन नहीं माना।
तो आयोजक से बोले कह दो की एक सज्जन ने गुप्त दान दिया है। कह दिया उसने फिर भी संतोष नहीं हुआ तो बोला कह दो जिन्होंने गुप्त दान दिया वो मंच पे ही बैठे हैं।
उसने कहा मंच पर बैठे हैं ऐसे नहीं यह बोलो मंच के बायीं और तीसरे नंबर पर बैठे हैं। यह है गुप्त दान। खैर घोषणा करके दूसरे दिन लोग उनके घर गए उन्होंने चेक दे दिया हा जाओ।
बैंक में गए बैंक वाले ने माना किया पैसा मिल ही नहीं सकता क्यों की इसमें हस्ताक्षर तो है ही नहीं। तो लौट कर आये सब बोले की आपने हस्ताक्षर नहीं किया।
तो वह बोलै गुप्त दान में कहीं नाम लिखा जाता है।
हास्य कथा - हमारी ओर से गुप्त दान - Rajeshwaranand ji maharaj hasya katha
एक आदमी से कहा की तुम भी दान करो ? तो उसने कहा हमारा अभी देना कोई जरूरी है क्या ? अभी कौन सा मर हैं। मरने लगेंगे तब दान करेंगे।
मरने लगेंगे तब दान करेंगे तब के लिए क्यों बैठे हो इसलिए तब दान करेंगे इधर दिया उधर पहुंचे अभी से दे दें हिसाब किताब गड़बड़ हो जाए, फाइल इधर की उधर हो जाए उसी समय ठीक रहेगा।
लोग हंसते बोले तब दे पाओगे ? क्यों नहीं इतना तो हमने अपने हाथ में कर रखा है। अच्छा कई लोग कहते वो तो हमारे हाथ में उनकी चिंता मत करो - यह तो हमारे हाथ में।
मैं कहता हूं भगवान की कृपा से आपके हाथ में सब कुछ रहे लेकिन कभी आपने सोचा क्या आपका हाथ आपके हाथ में है। उस व्यक्ति ने मकान की दीवाल में धन रखवा दिया ऊपर से सीमेंट कर दिया।
जब मौका लगेगा निकालकर दान दे देंगे। एक दिन भगवान की ऐसी लीला- ऐसी बीमारी हुई उसे- न हाथ चले , न मुँह से आवाज निकले।
मित्रों ने कहा बड़े दुख की बात है। कहां है वह धन तुम्हारे हाथ से दान कर दें। सो वह दीवाल की तरफ ऐसे इशारा करें। उसका मतलब दीवाल से खोद कर निकालो और दान कर दो।
बेटों से पूछा की ये दीवाल तरफ क्या करते हैं ? बेटों ने सोचा की बाप तो जा ही रहा है धन कहे को जाए ?
सब रुवासे से होकर बोले की पिताजी यह कह रहे हैं की देने के लिए बचा कहां है ? जो था सब इसमें लग गया। इसमें लग गया मतलब घर बनवाने में। तो देखो वह उसका धन उसी काम नहीं आ सका।
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