शिव पुराण कथा हिंदी में-1 shiv puran katha hindi
* मंगलाचरण के श्लोक*
अस्मद गुरुभ्यो नमः , अस्मत परम गुरुभ्यो नमः, अस्मत
सर्व गुरुभ्यो नमः , श्री राधा कृष्णाभ्याम्
नमः, श्रीमते रामानुजाय नमः
लम्बोदरं
परम सुन्दर एकदन्तं,
पीताम्बरं
त्रिनयनं परमंपवित्रम् ।
उद्यद्धिवाकर
निभोज्ज्वल कान्ति कान्तं,
विध्नेश्वरं
सकल विघ्नहरं नमामि।।१।।
शरीरं स्वरूपं
ततो कलत्रं
यशश्चारु चित्रं
धनं मेरु तुल्यं।
मनश्चै न लग्नं
श्री गुरु रङ्घ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं
ततः किं ततः किम्।।२।।
नारायणं
नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।
देवीं
सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ।।३।।
जयतु जयतु देवो
देवकीनन्दनोऽयं
जयतु जयतु कृष्णो
वृष्णिवंशप्रदीपः ।
जयतु जयतु
मेघश्यामलः कोमलाङ्गः
जयतु जयतु
पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः॥४।।
कृष्ण
त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्तं
अद्यैव
मे विशतु मानसराजहंसः ।
प्राणप्रयाणसमये
कफवातपित्तैः
कण्ठावरोधनविधौ
स्मरणं कुतस्ते ॥ऽ।।
बर्हापीडं
नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं
बिभ्रद् वासः
कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् ।
रन्ध्रान्
वेणोरधरसुधया पूरयन गोपवृन्दैः
वृन्दारण्यं
स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः ।।६।।
ध्यायेन्नित्यं
महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं,
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं
परशुमृग वराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं
समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं
विश्वबीजं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।।।७।।
रामाय रामभद्राय
रामचंद्राय वेधसे
रघुनाथाय नाथाय
सीताया पतये नम:।। ८।।
अंजना
नंदनं वीरं जानकी शोक नाशनं!
कपीश
मक्ष हंतारं – वंदे लंका भयंकरं!!९।।
मूकं करोति
वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिं ।
यत्कृपा तमहं
वन्दे परमानन्द माधवम् ॥१०।।
भक्त भक्ति भगवंत गुरु चतुर नाम बपु एक।
इनके पद वंदन कीएँ नासत विध्न अनेक ।।
श्री शिव महापुराण कथा – भूमिका
परम मंगलमय परात्पर परब्रह्मा परमपिता परमात्मा अकारण करुणा वरूणालय
अकारण करुणा कारक अचिंत कल्याण गुण गुण निधान सर्वेश्वर सर्वाधिक पति श्रेष्ठ
आचरणवान प्रजा के सुख दाता एवं संघार कर्ता पार्वतीनाथ प्रथमादि गणों के स्वामिन
आकाश आदि अष्टमूर्तियों वाले विश्वरूप विज्ञान के पूर्ण ज्ञाता देवाधिदेव
त्रिनेत्र धारी दुःस्वप्न नाशक पंचतत्वोत्पादक विश्वेश्वर मंगल कर्ता आदि अंत रहित
सब के कारण श्री सांब सदाशिव भगवान के चरणो में कोटिशः नमन नतमस्तक वंदन एवं
अभिनंदन। परांबा भगवती जगदीश्वरी शंकर शिव प्राण वल्लभा आदि जगत में व्याप्त रहने
वाली जगत की आधारभूता परम शक्ति श्री जगदंबा मां पार्वती के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम
।
समस्त भूतादिक - सीयराम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोर जुग पानी । समुपस्थित भगवत भक्त शिवकथा अनुरागी सज्जनों भक्ति मई मातृ शक्ति भगनी
बांधवों भगवतचरण चंञ्चरीक भगवत पादारविंद मकरन्द रस पिपासु सुधी जन भूवि भावुक
रसिक बृंदजन।
हम सबका यह परम सौभाग्य ही है कि भगवान शंभु शिवाय कि यह सुंदर कथा
पर सम्मिलित होकर इस शिव कथा मंदाकिनी पर गोता लगाने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है,
जीवन में ऐसा क्षण बड़े ही पुन्य से मिलने वाला होता है । श्री शिव
महापुराण की कथा बड़ी दिव्य और विलक्षण है इसी कथा का अनुसंधान कर बारहों आदित्य
अपना कार्य करते हैं।
श्री शिव महापुराण का शब्दार्थ- शिव यानी कल्याण ( कल्याण करने वाला
) जो कीर्ति ज्ञान सहित धर्म अर्थ काम मोक्ष को विस्तार से संतुष्ट और पुष्ट करता
है और हमेशा हमेशा के लिए अपने चरणों में भक्ति प्राप्त कराता है वह है शिव
कल्याण।
आगे महापुराण शब्द का अर्थ है- महा माने सभी प्रकार से और सभी में
श्रेष्ठ जो हो वह महा कहलाता है एवं पुराण का मतलब है जो लेखनी ग्रंथ कला के रूप
में प्राचीन हो या जो लेखनी ग्रंथ कथा के रूप में पुराना हो परंतु जगत के जीवो को
हमेशा नया ज्ञान शांति एवं आनंद देते हुए नया या सरल जीवन का उपदेश देते हुए सनातन
प्रभु से संबंध जोड़ता है वह है पुराण।
कथा का मतलब होता है कि- परमात्मा के सानिध्य में निवास के सुख की
अनुभूति की स्थापना करा दे या परमात्मा के तत्व का ज्ञान कराकर परमात्मा से संबंध
जोड़ दें एवं शरीर त्यागने पर उन परमात्मा के दिव्य सानिध्य में पहुंचाकर परमात्मा
की सायुज्य मुक्ति यानी प्रभु के चरणों में विलय करा दे उसे कथा कहते हैं ।
श्री शिव महापुराण श्री वैष्णव भक्ति का उद्गम ग्रंथ है। वेदों एवं
उपनिषदों का सार है । भगवत शिव रस सिंधु है। ज्ञान बैराग और भक्ति का घर या
प्रसूति है। शिव तत्व को प्रकाशित करने वाला अलौकिक प्रकाश पुंज है । मृत्यु को भी
मंगलमय बनाने वाला है। विशुद्ध ज्ञान शास्त्र है । मानव जीवन को सुखमय बनाने वाला
है। व्यक्ति को व्यक्ति एवं समाज को सभ्यता संस्कृति संस्कार देने वाला है । आध्यात्मिक
रस वितरण का प्याऊ है । परम सत्य की अनुभूति कराने वाला है काल या मृत्यु के भय से
मुक्त करने वाला है ।
यह
श्री शिव महापुराण कथा शिव स्वरूप है यह कल्याण प्रद है । यह शिव महापुराण में
एकादश खंड है तथा विश्वेश्वर ,रुद्र आदि सात सहितायें हैं । शिव महापुराण के
प्रारंभ में महात्म्य का वर्णन किया गया है जो सात अध्यायों में है, प्रारंभ के दो अध्याय में श्री शिव महापुराण की महिमा व देवराज को देवलोक
की प्राप्ति । मध्य के तीन अध्यायों में चंचुला बैराग्य, चंचुला
को शिव पद की प्राप्ति और बिंदुग का उद्धार । अंतिम के दो अध्याय में श्री शिव
पुराण श्रवण विधि व श्रोताओं के पालन करने योग्य नियम बताए गए हैं। महात्म्य का
अर्थ होता है- महिमा= महात्म्य ज्ञान पूर्वकम् श्रद्धा भवति।
महिमा
के ज्ञान के पश्चात ही उसमें श्रद्धा उत्पन्न होती है ।
जाने बिनु न होत परतीति। बिनु परतीति होत नहीं प्रीति ।।
आइए
शिव जी का ध्यान करते हुए हम माहात्म्य की कथा में प्रवेश करें-
सच्चिदानन्द रूपाय भक्तानुग्रह कारिणे। माया निर्मित
विश्वाय माहेश्वराय नमो नमः।।
सत + चित + आनंद= सच्चिदानंद, सत् का मतलब
त्रिकालावधी जिसका अस्तित्व सत्य हो। चित् माने प्रकाश होता है, अर्थात जो स्वयं प्रकाश वाला है और अपने प्रकाश से सब को प्रकाशित करने
वाला है । आनंद माने आनंद होता है जो स्वयं आनंद स्वरूप होकर समस्त जगत को आनंद
प्राप्त कराता है ,इस प्रकार ऐसे कार्यों को करने वाले को
सच्चिदानंद कहते हैं।
वे
सच्चिदानंद कल्याण स्वरूप आदिशिव ही हैं। अर्थात सत् भी शिव हैं। चित भी शिव हैं
और आनंद भी शिव हैं। तथा जिनका आदि मध्य और अंत तीनों ही सत्य है ,तथा सत्य
था एवं सत्य रहेगा । ऐसे शाश्वत सनातन श्री शिव को ही सच्चिदानंद कहते हैं । रूपाय
,माने ऐसे गुण या धर्म या रूप वाले । भक्तानुग्रह कारिणे-
अपने भक्तों पर अनुग्रह करने वाले।
माया निर्मित विश्वाय- वह अपनी माया से ही विश्व का निर्माण करते
हैं ,पालन व संघार करते हैं। माहेश्वराय नमो नमः - ऐसे देवों
के देव महादेव महेश्वर के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं।
शौनक जी के साधन विषयक प्रश्न करने पर सूत जी का उन्हें शिव
महापुराण की महिमा सुनाना-
हे हे सूत महाप्राज्ञ सर्वसिद्धान्तवित् प्रभो।
आख्याहि मे कथासारं पुराणानां विशेषतः।। मा-1-1
शौनक जी ने पूंछा- कि हे सूत जी, ज्ञान और
वैराग्य के सहित भक्ति से प्राप्त होने वाली विवेक बुद्धि कैसे होती है? साधु पुरुष किस काम, क्रोध आदि विकारों का निवारण
करते हैं।
जीवाश्चासुरतां प्राप्ताः प्रायो घोरे कलाविह।
मा-1-3
कलयुग में जीव असुर स्वभाव के हो गए हैं उन्हें शुद्ध बनाने का उपाय
क्या है? आप मुझे कोई ऐसा साधन बताइए जो कल्याणकारी वस्तुओं
में श्रेष्ठ हो । जिसके करने से शीघ्र ही अंतःकरण की शुद्धि हो जावे तथा निर्मल
पुरुष को सदा के लिए शिवजी की प्राप्ति हो जावे । श्री सूत जी बोले-
धन्यस्त्वं मुनिशार्दूल श्रवण प्रति लालसः।
अतो विचार्य सुधिया वच्मि शास्त्रं महोत्तमम्।। मा-1-6
हे ऋषि वृन्द आप धन्य हो, आप में कथा सुनने की
उत्सुकता है तो सुनिए ,मैं एक अति उत्तम शास्त्र का वर्णन
करता हूं । यह शास्त्र भक्ति उत्पन्न करने वाला है, शिवजी को
प्रसन्न करने वाला है, काल रूपी सर्प का नाश करने वाला रसायन
स्वरूप है ।
सर्वप्रथम इस शास्त्र को शिवजी ने अपने श्री मुख से श्री सनत कुमार
जी से कहा था इसीलिए इसका नाम शिव महापुराण है ।
श्री सनत कुमार जी ने महर्षि वेदव्यास जी से इस शास्त्र का वर्णन
किया । व्यास जी ने लोक कल्याणार्थ इसे संक्षेप में कहा। इस शास्त्र के श्रवण,
पठन एवं मनन करने से कलियुगी जीवो का मन शुद्ध होता है और अंत में
शिव पद प्राप्त करते हैं ।
इसके श्रवण मात्र से प्राणी को मुक्ति मुक्ति तथा राजसूय यज्ञों का
फल प्राप्त हो जाता है । इसके श्रोता गण शिव रूप होते हैं। यदि प्रतिदिन ना सुन
सके तो, दो घड़ी ही बैठकर के सुने चाहे एक मुहूर्त अथवा आधा
क्षण ही सही लेकिन इस पुराण को अवश्य श्रवण करें।
