राम कथा हिंदी में लिखी हुई 4 bal ram katha hindi
भगवान शंकर ने कहा नहीं आप जाइए हम
इसी वटवृक्ष के नीचे बैठे हैं आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। भगवान शंकर को इसलिए
विश्वास का प्रतीक कहा गया है। इसीलिए वह वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। वटवृक्ष क्या
है मानस में-
बटु
बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा॥
वट वृक्ष विश्वास का प्रतीक है।
भगवान शंकर उसी वटवृक्ष के नीचे बैठ गए क्यों बैठ गए? क्योंकि
वह जानते हैं क्या- देवी जा तो रही हो लेकिन-
होइहिं
सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढावहिं साखा।।
भगवान शंकर जानते हैं होगा वही जो
राम जी चाहते हैं।
भजन- इस संसार की गतिविधियों
पर
इस संसार की गतिविधियों पर नही
अधिकार किसी का है
जिसको हम परमात्मा कहते ये सब खेल उसी का है
राम सिया राम राम सिया राम राम सिया राम.
छणभर को भी नहीं छोड़ता सदा हमारे साथ में हैं
काया की स्वासा डोरी का तार उसी के हाथ में है
हंसना-रोना जीना मरना सब उसकी मर्जी का है
जिसको हम परमात्मा कहते यह सब खेल उसी का है
राम सिया राम राम सिया राम राम सिया राम.
निर्धन धनी धनी हो निर्धन ग्यानी मूढ मूरख ग्यानी,
सब कुछ अदल बदल देने में कोई नहीं उसका सानी
समझदार भी समझ सके ना ऐसा अजब तरीका है
जिसको हम परमात्मा कहते यह सब खेल उसी का है
राम सिया राम राम सिया राम राम सिया राम.
मिट्टी काली पीली हरे बन् आसमान का रंग नीला
सूर्य सुनहरा चन्द्रमा शीतल सब कुछ उसकी ही लीला
सबके भीतर स्वयं छिप गया सृजनहार सृष्टि का है
जिसको हम परमात्मा कहते यह सब खेल उसी का है
राम सिया राम राम सिया राम राम सिया राम.
राजेश्वर आनंद अगर सुख चाहो तो मानो शिक्षा
तज अभिमान मिला दो उसकी इच्छा में अपनी इच्छा
यही भक्ति का भाव है प्यारे सूत्र यही मुक्ती का है
जिसको हम परमात्मा कहते यह सब खेल उसी का है
राम सिया राम राम सिया राम राम सिया राम.
सज्जनो भगवान शंकर वट वृक्ष के नीचे बैठकर प्रतीक्षा करने लगे। माता
सती गई परीक्षा लेने के लिए और परीक्षा ऐसी कठोर कि उन्होंने मां जानकी का झूठा
बेस नकली भेष धारण कर लिया और राम जी के आगे आगे चलने लगी। नकल में भी थोड़ी अकल
लगाना चाहिए लेकिन यहां पर माता सती जानकी का भेज दो नकली धारण कर ली है लेकिन वह
राम जी के पीछे चलने के बजाय आगे आगे चलने लगी तभी लक्ष्मण जी की दृष्टि पड़ी तो
वह चौंक गए।
लक्ष्मण
दीखि उमा कृत भेषा।
जब श्री राम जी ने मैया उमा की तरफ
देखा उनको कोई संदेह नहीं हुआ क्योंकि वह परब्रह्म हैं। उन्होंने माता सती से कहा-
जोरि
पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू। पिता समेत लीन निज नामू।।
कहेउ बहोरि कहाँ वृषकेतु। विपिन अकेलि फिरहुं केहि हेतू।।
पहले तो हाथ जोड़कर के प्रभु ने माता
सती को प्रणाम किया और महाराज दशरथ का पुत्र मैं राम हूं इस प्रकार अपना परिचय
प्रभु ने दिया। उसके बाद उन्होंने पूछा हे देवी आप इस जंगल में अकेले कहां घूम रही
हैं? और भोलेनाथ कहां है। आपको तो उनके साथ होना चाहिए। माता सती सीता का रूप
धारण करके राम जी की परीक्षा लेने गई थी लेकिन वह तो सीता रूप में देखे ही नहीं
उनको वह सती रूप में दिखाई दी यह देखते ही माता सती तुरंत उल्टे पांव भोलेनाथ के
पास आती हैं।
माता सती बहुत सोच में पड़ गई कि अब
मैं जाकर अपने स्वामी के सामने क्या उत्तर दूंगी उनसे मैं क्या बोलूंगी। सज्जनो
माता सती को जिन राम पर भरोसा नहीं था, जिन राम के ब्रह्मत्व पर,
जिन राम के देवत्व पर, जिन राम के रामत्व पर।
आज वही राम-
जहँ
चितवहिं तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना।।
वही राम सर्वत्र इनको दिख रहे हैं
जहां पर देखते हैं वहीं पर श्री राम जी दिख रहे हैं। जिनकी सेवा बड़े-बड़े देवता
सिद्ध मुनि लोग कर रहे हैं। यहां माता सती भगवान शंकर के समीप पहुंच गई। भगवान
शंकर ने कहा देवी आइये आपने परीक्षा ले लिया ? माता सती न हां कर रही है
ना ना कर रही हैं। अब जो की हैं वह बताते नहीं बनता।
सती
जी भय के कारण शिवजी से झूठ ही कह दिया क्या?
कछु ना परीक्षा लीन्ह गोसाइँ। कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाईं।।
हे प्रभु मैंने कोई परीक्षा नहीं ली
है जिस प्रकार अपने प्रणाम किया था। उसी तरह मैं भी उनको प्रणाम करके आपके पास आ
गई। भगवान शंकर को बहुत आश्चर्य लगा कि जब मैं इनसे कह रहा था यह भगवान हैं तब यह
मान नहीं रहीं थी और अब कह रही है कि मैं आपकी ही तरह प्रणाम करके आई हूं। भगवान
शंकर को भरोसा नहीं हुआ क्योंकि वह जानते हैं कि जरूर कोई ना कोई लीला हुई है तो
उन्होंने नेत्र बंद करके ध्यान किया है।
तब
संकर देखेउ धरि ध्याना। सतीं जो कीन्ह चरित सब जाना।।
भगवान शंकर ध्यान के माध्यम से सती
जी ने जो चरित्र किया वह सब जान गए। तब भगवान शंकर के मन में बहुत छोभ हुआ है।
उनके मन में बहुत कष्ट दुख हुआ है कि मेरे ईस्ट मेरे प्रभु के साथ इतनी कठोर
परीक्षा। उन्होंने यह भी जान लिया की परीक्षा लेने के लिए सती ने मेरी माता सीता
का रूप धारण किया तब उनके हृदय में अत्यंत वेदना हुई।
सती
कीन्ह सीता कर बेषा। सिव उर भयउ बिषाद बिसेषा।।
जौं अब करउँ सती सन प्रीती। मिटइ भगति पथु होइ अनीती।।
भोलेनाथ ने विचार किया कि मेरी माता
सीता का रूप धारण करने के बाद भी अगर मैं सती के साथ प्रीति करूंगा तो मेरी भक्ति
मिट जाएगी। उसी समय भगवान शंकर मन से ही सती माता का त्याग कर दिया कि हे देवी अब
इस शरीर के द्वारा हमारा मिलन नहीं होगा।
एहि
तन सतिहि भेट मोहि नाहीं। सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं।।
भगवान शंकर ने संकल्प लिया कि हमारा
तुम्हारा मिलन अब संभव नहीं है इस तन से। सज्जनों इस त्याग का परिणाम बड़ा भयावह
है। जब भगवान शंकर ने सती त्याग की प्रतिज्ञा किया उसी समय देवताओं ने आकाशवाणी के
द्वारा भगवान शंकर की जय जयकार किया की हे महेश्वर ऐसी प्रतिज्ञा केवल आप ही कर
सकते हैं और कोई नहीं।
आकाशवाणी को सुनकर सति के हृदय पर
चिंता घर कर गई उन्होंने पूछा संकोच बस की हे नाथ आपने ऐसी कौन सी प्रतिज्ञा किया
है? मुझे बतलाइए? सती ने अनेक भांति से पूछा लेकिन भगवान
शंकर उस समय यह बात उनसे नहीं कहे। लेकिन माता सती के हृदय में यह बात आ गई कि
मेरे नाथ तो सर्वज्ञ हैं वह तो सब कुछ जानते हैं मैं उनसे झूठ बोलकर के बहुत अनर्थ
की हूं इस प्रकार माता सोचकर दुख से व्यथित हो जाती हैं।
सतिहि
ससोच जानि बृषकेतु। कहीं कथा सुदंर सुख हेतू।
बरनत पंथ विविध इतिहासा। विश्वनाथ पहुंचे कैलासा।।
भगवान शंकर ने जब माता सती के हृदय
के पीड़ा को दिखा तो वह कई प्रकार की कथाओं को कहते हुए उनका दुख दूर करने का
प्रयास करने लगे। भगवान शंकर कैलाश पहुंचकर बट वृक्ष के नीचे बैठकर समाधि लगा लेते
हैं। सज्जनो इधर दक्ष प्रजापति को ब्रह्मा जी ने प्रजापतियों का प्रशासक नियुक्त
कर दिया और दक्ष को जब इतना बड़ा पद मिला तो उसका अभिमान सातवें आसमान पर चला गया।
नहिं
कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं।।
ऐसा कौन है इस धरती पर जिनको पद मिले
और उसको मद ना आए और दक्ष को भी मद आ गया। उसने एक बड़े यज्ञ की रचना किया उसने
सबको बुलाया किसको नहीं बुलाया आपने ही बेटी दामाद को नहीं बुलाया। अहंकार का स्तर
देखिए अपने ही बेटी दामाद को नहीं बुलाया। जिनको बुलाया वह भी कम करामाती नहीं
हैं। जिन देवी देवताओं को निमंत्रण मिला वह सब अपने-अपने विमान को कैलाश के ऊपर से
उड़ा कर ले जा रहे हैं। सती जी ने देखा तो विचार करने लगी कि यह सब लोग कहां को जा
रहे हैं।
माता सती ने भगवान शंकर से जो पूछा तो उन्होंने कहा कि यह सब देवता
आपके पिता के घर जा रहे हैं। माता सती ने कहा पिता के घर, मेरे
पिता के घर क्यों ? तब भगवान शंकर ने कहा कि आपके दक्ष ने
बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया है। तब माता सती कुछ प्रसन्न हुई पिता के घर यज्ञ की
बात सुनकर की चलो मैं कुछ दिन पिता के घर में जाकर रहूंगी अगर भगवान शंभू नाथ
आज्ञा देंगे। क्योंकि उनके हृदय में बहुत वेदना है कि मेरे पति ने मेरा त्याग कर
दिया है।
और माता सती अपने पिता के घर जाने के लिए तैयार हो गई निमंत्रण नहीं
आया, बुलावा नहीं आया तब भी वह जाने के लिए तैयार है।
उन्होंने कहां कि पिता के घर बिना बुलाए भी चले जाना चाहिए कोई अनुचित नहीं है। क्योंकि
शास्त्रों में कहा गया है भगवान के मंदिर में, गुरु के घर,
पति के घर, पिता के घर बिना बुलाए भी चले जाना
चाहिए।
भगवान शंकर ने कहा कि देवी आपका वचन सत्य है कि इन स्थानों पर बिना
बुलाए भी जाना चाहिए। लेकिन जहां पर बैर मानकर ना बुलाया गया हो वहां पर जाना उचित
नहीं है वहां जाने से कल्याण नहीं होता। आज भगवान शंकर ने माता सती से वह सारी
बातें बताई की दक्ष उनसे किस कारण द्वेष और बैर रखता है।
दच्छ
सकल निज सुता बोलाई। हमरें बयर तुम्हउ बिसराई।।
सती माता ने कहा कि हे प्रभु आपसे
बैर। अरे आप तो उनके दामाद हैं उनके पूज्य हैं फिर आपसे वह बैर क्यों करेंगे। तब
भगवान शंकर ने संक्षेप में वह सारी कथा सुनाई जब ब्रह्मा जी के सभा में दक्ष के
आने पर भगवान शंकर खड़े नहीं हुये तो दक्ष ने किस प्रकार उनका अपमान किया था। भगवान
शंकर ने कहा कि है देवी आपने जो कहा माता-पिता गुरु के यहां भी ना बुलाए भी चले
जाना चाहिए यह बात आपकी सत्य है लेकिन जहां पर विरोध मां करके ना बुलाया जाए वहां
पर जाने से कल्याण नहीं होता।
