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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-3 shri ram katha hindi

bhagwat katha sikhe

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-3 shri ram katha hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-3 shri ram katha hindi

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-3 shri ram katha hindi

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-3 shri ram katha hindi

इसीलिए कथा सुनना चाहिए। गाना चाहिए । गृहस्थियों ने कहा की ठीक है कथा सुन लें लेकिन गाए क्यों? सज्जनो अगर हमारे मन में भी यह विचार उठता है की कथा क्यों गाये? तो जिनके मन में ऐसा विचार आता है उनके लिए एक प्रमाण है। कि दुनिया के सबसे बड़े गृहस्थी इस कथा को गाए हैं इसलिए सबको गाना चाहिए। संसार के सबसे बड़े गृहस्ती कौन है?

गावत संतत शंभु भवानी। अरु घट संभव मुनि विग्यानी।।

भगवान शंकर और मैया पार्वती से बढ़कर के गृहस्थी संसार में कोई नहीं हुआ। तो उन्होंने भी इस कथा को गाया है। यह जो राम कथा है यह प्रारंभ होती है शिव कथा से समान बुद्धि से विचार करेंगे तो यह बात सबके समझ में आने वाली नहीं है। क्योंकि मान लीजिए अगर आपको कोई बुलाए की आइय आप रोटी सब्जी खा लीजिए और आपके आने पर वह आपको दाल चावल परोस दे तो आप कहेंगे अरे दाल चावल खिलाना था तो दाल चावल ही बता देते रोटी सब्जी क्यों बोले। सज्जनो बाबा तुलसी ने इस ग्रंथ का नाम लिखा है श्री रामचरितमानस। इसका मूल विषय क्या है भगवान राम।

राम चरित मानस एहि नामा। सुनत श्रवन पावइ विश्रामा।।

जो इस कथा को श्रवण करता है उसको विश्राम मिल जाता है। संसार में सबके पास सब कुछ है लेकिन विश्राम नहीं है । मन को आराम नहीं है। मन में शांति नहीं है। तो मन में शांति होना ही यहां पर विश्राम कहा गया है और वह विश्राम केवल भगवान राम की कथा से मिलने वाला है। अच्छा अब एक मन में प्रश्न यह उठता है कि यह कथा सुनने के बाद फल का परिणाम कब मिलेगा। तो यह बिल्कुल भी नहीं सोचना है कि फल कब मिलेगा।
जैसे कोई दवाई खाता है तो पूछता है कि यह फायदा कब तक में करेगी तो उसी प्रकार यह कथा सुनेंगे तो उसका फल कब तक में मिलेगा यह विचार नहीं करना है क्योंकि-

मज्जन फल पेखिय ततकाला। काग होइ पिक बकहु मराला।

तो यह भगवान की कथा तत्काल ही प्रसन्नता देने वाली है विश्राम देने वाली है। इस कथा के प्रभाव से कौवा भी कोयल हो जाता है, बकुला भी हंस हो जाता है ऐसा है इस राम कथा का दिव्य प्रभाव। तो यह रामचरितमानस राम कथा है। राम कथा का मूल विषय है भगवान श्री राम और याग्यवल्क ऋषि ने शिव कथा सुनाना प्रारंभ कर दिया। मन में जिज्ञासा हो सकती है कि भाई राम कथा में राम कथा सुनाओ शिव कथा क्यों?

तो इसका उत्तर देते हुए कहने लगे कि बिना शिव कथा सुनाएं राम कथा में प्रवेश नहीं होगा। अगर उदाहरण के रूप में समझे तो जैसे किसी अच्छे विद्यालय पर एडमिशन लेना है तो उसके लिए एंट्रेंस एग्जाम होता है उसको पास करना पड़ता है। उसके परिणाम से यह ज्ञात होता है कि आप उस विद्यालय पर दाखिला लेने के लिए पात्रता रखते हैं कि नहीं। तो राम कथा सुनने की पात्रता है भगवान शंकर की कथा सुनकर भगवान शंकर को हृदय पर धारण करना। मंगलाचरण के एक श्लोक को हम समझते हैं तो हमको पता चलेगा की राम कथा का प्रवेश द्वार क्या है राम कथा की प्रवेश परीक्षा क्या है।

भनानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिध्दा शान्तास्थमीश्वरम्।।

भगवान शंकर और माता पार्वती कौन है श्रद्धा और विश्वास। जीवन में जब तक श्रद्धा और विश्वास का प्राकट्य नहीं होगा तब तक राम कथा के अधिकारी ही हम नहीं होंगे। राम कथा के अधिकारी बनने का लक्षण है कि हमारे अंदर श्रद्धा और विश्वास दोनों का वास हो।
भगवान शंकर और मैया पार्वती की कथा प्रारंभ में इसीलिए गाई गयी है कि बिना श्रद्धा और विश्वास के हम राम कथा में प्रवेश ही नहीं पा सकते और बिना श्रद्धा विश्वास के भगवान और भक्ति से मिलन संभव ही नहीं है। श्री राम भगवान है मैया जानकी भक्ति हैं। इनसे मिलने के लिए हृदय पर श्रद्धा विश्वास का होना अति आवश्यक है। सज्जनो भगवान शंकर ही राम कथा के रचयिता हैं-

रचि महेश निज मानस राखा।

और भगवान शंकर आज राम कथा सुनना चाह रहे हैं।

एक बार त्रेता जुग माहीं। शंभु गये कुंभज ऋषि पाहीं।।
संग सती जग जननि भवानी। पूजे ऋषि अखिलेश्वर जानी।।
राम कथा मुनि बरज बखानी। सुनि महेश परम सुख मानी।।

एक बात यहां पर फिर से ध्यान देने की है यहाँ फिर से कथा सुनने की महिमा है। भगवान शंकर मुनि से कथा सुनी और सुख नहीं परम सुख उनको प्राप्त हुआ तो यह भगवान की कथा परम सुख प्रदान करने वाली है। इस संसार में सबसे कठिन है सुनना। कोई सुनना नहीं चाहता सब सुनाना चाहते हैं। बाप परेशान है बेटे से की बेटा सुनता नहीं है, बेटा परेशान है बाप से की बाबूजी सुनते नहीं है। पत्नी परेशान है पति से कि वह सुनते नहीं हैं। पति परेशानी पत्नी से कि वह सुनती नहीं है।

जो नहीं सुनता है उसको सुख नहीं मिलता है। जो नहीं सुने वह सब देव रह गए। जिन्होंने कथा नहीं सुन पाई वह देवता योनि में रहे तो लेकिन सब देवता ही रह गए और जिन्होंने कथा सुन ली वह देवों के देव महादेव हो गए। बंधु माताओं जो कथा सुनता है वह परम सुख को प्राप्त करता है।

भजन- राम का गुणगान करिए
राम का गुणगान करिए
राम का गुणगान करिए
राम प्रभु की भद्रता का
सभ्यता का ध्यान धरिये, ध्यान धरिये
राम का गुणगान करिए
राम का गुणगान करिए
राम प्रभु की भद्रता का
सभ्यता का ध्यान धरिये, ध्यान धरिये

राम के गुण गुणचिरंतन
राम के गुण गुणचिरंतन
राम.. राम.. राम.. राम..
हो राम के गुण गुणचिरंतन
राम गुण सुमिरन रतन धन
मनुजता को कर विभूषित
मनुज को धनवान करिए, ध्यान धरिये

राम का गुणगान करिए
राम का गुणगान करिए..

सगुण ब्रह्म स्वरुप सुन्दर
सगुण ब्रह्म स्वरुप सुन्दर
सुजन रंजन रूप सुखकर
हो सुजन रंजन रूप सुखकर
राम आत्माराम
आत्माराम का सम्मान करिए, ध्यान धरिये

राम का गुणगान करिए
राम का गुणगान करिए
राम प्रभु की भद्रता का
सभ्यता का ध्यान धरिये, ध्यान धरिये

भगवान शंकर त्रेता युग में कुंभज ऋषि के यहां गए अकेले नहीं गए मैया को साथ में लेकर के गए।

संग सती जग जननि भवानी।

सती जी को साथ में लेकर के गए। क्यों ? इसीलिए वह सबसे बड़े गृहस्ती कहे गए। सती जी ने कहा वाह रे प्रभु आपको और कोई कथा वाचक नहीं मिला अब आप कुम्भज से कथा सुनेंगे। कुम्भज यानी- कुम्भात जायते इति कुम्भजः। कुंभ से जो प्रकट होता है वह कुंभज कहलाता है। कुंभ यानी घड़ा।

भगवान शंकर जब कुंभज ऋषि के यहां गए तो अखिलेश्वर समझ कर कुंभज ऋषि ने उनका पूजन किया। कुंभज ऋषि वक्ता हैं। भोलेनाथ श्रोता हैं, तो वक्ता ही श्रोता की पूजा करने लगे तो यह देखकर सती जी आश्चर्यचकित हो गई। उनके मन में यह आ गया कि अरे यह कथा क्या सुन पाएंगे। पता नहीं मेरे नाथ कैसे कथा वाचक के पास लेकर के आ गए हैं। भगवान शंकर ने कुंभज ऋषि से श्री रामजी की कथा बड़े प्रेम के साथ सुनी और उनको बहुत सुख मिला।

सज्जनों असली कथा वाचक तो घड़ा ही होता है क्यों क्योंकि राम कथा समुद्र के समान है इसको किसी में भरा नहीं जा सकता है। रघुवीर चरित्र अपार है इसका कोई पार नहीं पा सकता और समुद्र की जब कोई थाह ही नहीं पा सकता है तो समुद्र का लाभ उसको मिलेगा कैसे? भगवान शंकर की दृष्टि में तो यह है की असली कथा वाचक तो घडा़ ही हो सकता है जो राम कथा रूपी सागर को घडे़ में भर के हमको पिला दिया।

कथा सुनने के बाद भगवान शंकर के मन में यह इच्छा प्रकट हुई कि अब अगर मेरे ईस्ट प्रभु श्री राम का दर्शन हो जाता तो बहुत अच्छा होता। इसीलिए यह त्रेता युग की कथा है। सज्जनों एक समय में दो कथा चल रही हैं भगवान शंकर श्री राम कथा सुनकर कुंभज ऋषि के द्वारा निकल रहे हैं और श्री रामचंद्र जी स्वयं वनवास के दौरान माता सीता को रावण द्वारा हर ले जाने पर विलाप करते हुए एक वन से दूसरे वन उनको ढूंढ रहे हैं लीला करते हुए।

भगवान शंकर ने जैसे ही प्रभु श्री रामचंद्र जी को देखा वैसे ही तुरंत उनको दूर से ही प्रणाम किया। पास में नहीं गए उसके कई कारण है। जिनमें से प्रधान कारण यह है कि प्रभु इस समय लीला कर रहे हैं अगर मैं वहां जाऊंगा तो सारा भेद खुल जाएगा। इसलिए भगवान शंकर ने दूर से ही प्रभु श्री रामचंद्र जी को प्रणाम करते हुए उनकी जय जयकार करने लगे-

जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कह चले मनोज नसावन।।

सती जी ने कहा कि यह कौन है जिनकी आप जय जयकार कर रहे हैं ? भगवान शंकर ने कहा देवी यही मेरे ईस्ट हैं, यही रघुवीर हैं, यही श्री रामचंद्र जी हैं। यही अखिल कोटि ब्रह्मांड का नायक हैं, यही सच्चिदानंद हैं, इनको प्रणाम करिए । सती जी ने कहा यह सच्चिदानंद है? भोलेनाथ ने कहा हां। सती ने कहा नहीं यह सच्चिदानंद नहीं हो सकते। जो अपनी पत्नी के वियोग में आंसू बहा रहे हैं वह सच्चिदानंद कैसे हो सकते हैं। भगवान राम वन में नर लीला कर रहे हैं पत्नी वियोग में बड़े दुखी हैं-

हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम देखी सीता मृग नयनी।।

भगवान श्री राम वन में वृक्षों लताओं से पूछ रहे हैं कि क्या आपने मेरी सीता को देखा है और प्रभु की यह लीला को देखकर सती जी के अन्दर संदेह हो गया। भगवान शंकर समझ गए की सती के अंदर संदेह हो गया है और उनके संदेह को मैं दूर करूं यह संभव नहीं है क्योंकि मेरे समझाने पर इनका संदेह दूर नहीं होने वाला। तब भगवान शंकर ने कहा कि देवी-

जो तुम्हरे मन अति संदेहू। तो किमि जाइ परीक्षा लेहू।।

जो तुम्हारे मन में संदेह है तो जाइए देवी आप परीक्षा लेकर के आइये। सती ने कहा कि प्रभु चलिए आप भी चलिए। 

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