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शिव पुराण कथा हिंदी में-4 shiv puran katha book in hindi

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शिव पुराण कथा हिंदी में-4 shiv puran katha book in hindi

शिव पुराण कथा हिंदी में-4 shiv puran katha book in hindi

 शिव पुराण कथा हिंदी में-4 shiv puran katha book in hindi

शिव पुराण कथा हिंदी में-4 shiv puran katha book in hindi

जो पुराण की पूजा यथाशक्ति भेंटों के द्वारा ना करके इस कथा को सुनते हैं वह मूर्ख दरिद्री होते हैं।  जो वक्ता को प्रणाम किए बिना बैठ जाते हैं कथा सुनने के लिए वे-

असम्प्रणम्य वक्तारं कथां शृण्वन्ति ये नराः।

भुक्त्वा ते नरकान सर्वांस्ततः काका भवन्ति हि।। मा-6-46

वे सब घोर नरक भोगने के बाद अर्जुन वृक्ष बनते हैं । 

 

तथा श्रोता को चाहिए कि उच्च आसन पर बैठकर कथा श्रवण ना करें। जो जन इस पवित्र कथा को अपने जीवन में नहीं श्रवण करते वे करोड़ों जन्म तक नरक की यातना भोग कुकर कुकर बनते हैं । 

 

( श्रोताओं के पालन करने योग्य नियम)

शौनक जी बोले- हे सूत जी! आपने यह परम पवित्र और अद्भुत कथा तो सुना दी अब आप कृपा करके लोक कल्याणार्थ शिवपुराण के श्रोताओं के नियम सुनाइए ?

 

सूत जी बोले- हे शौनक जी! दीक्षा रहित लोगों को कथा श्रवण करने का अधिकार नहीं है ,इसलिए श्रोताओं को पहले वक्ता से दीक्षा लेनी चाहिए। 

श्रौतुकामैरतो वक्तुर्दीक्षा ग्राह्य च तैर्मुने। मा-7-4

 

कथा वृती को ब्रम्हचर्य, भूमि पर शयन करना चाहिए, शुद्ध होकर भक्ति पूर्वक शिवपुराण सुनते हुए उपवास करके एक ही समय भोजन करें ।

घृतपान, दुग्धपान अथवा फलाहार करते हुए कथा अवधि तक एक बार ही भोजन करें और तामसी वस्तु खाना वर्जित है । 

 

श्रोता को चाहिए कि नित्य प्रति कथा मंडप पर बने सभी मंडल वेदियों का पूजन करे, शिव पुराण का पूजन करे, पुराण वक्ता एवं कथा में वर्णित सभी आचार्य का पूजन करके यथाशक्ति दक्षिणा प्रदान कर प्रणाम करे। 

 

शिवपुराण की कथा पूर्ण होने पर विरक्त है तो गीता का पाठ करे, श्रोता यदि गृहस्ती है तो शुद्ध हवि के द्वारा हवन करे। यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन कराए एवं शिव पुराण सब पुराण में शिरोमणि है । 

 

जो प्राणी इस जगत में सदाशिव का ध्यान करते हैं और उनकी वाणी सदैव उनकी स्तुति करती रहती है, वे इस अपार भव सागर से सहज ही तर जाते हैं । 

( बोलिए शिव महापुराण की जय )

सांब सदाशिव भगवान की जय

 

विश्वेश्वर संहिता

तीर्थराज प्रयाग में मुनियों का समागम-

 व्यास जी बोले- 

धर्मक्षेत्रे महाक्षेत्रे गंगा कालिन्दि सगंमे।

प्रयागे परमे पुण्ये ब्रह्म लोकस्य वर्त्मनि।। वि-1-1

माघ मकर गत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आन सब कोई।। 

एक समय गंगा और यमुना के संगम प्रयाग में जब मुनियों ने एक विराट सम्मेलन किया, तब परम पौराणिक सूत जी के आने पर सभी लोगों ने अपने अपने आसनों से उठकर उनकी यथोचित अभ्यर्थना की पूजा सत्कार किया। 

 

और सभी ने हाथ जोड़कर यह प्रार्थना की- हे मुनीश्वर कलयुग में सभी प्राणी पाप, ताप से पीड़ित हो सत कर्मों से रहित, पर निंदक, चोर,परस्त्रीगामी, दूसरों की हत्या करने वाले, देहाभिमानी, आत्मज्ञान से रहित, नास्तिक, माता-पिता के द्वेषी और स्त्रियों के दास हो जाएंगे। 

 

चारों वर्णों के लोग अपना अपना धर्म भूल जाएंगे, पथभ्रष्ट हो जाएंगे प्रायः इस प्रकार स्त्रियों में भी धर्म का नाश हो जायेगा। वे तमोगुणी, पति से विमुखी, भक्ति से रहित हो जाएंगी। हे सूत जी-

एतेषां नष्ट बुद्धीनां स्वधर्म त्यागशीलिनाम्।

परलोके पीह लोके कथं सूत गतिर्भवेत्।। वि-1-35

 

इस प्रकार जिनकी बुद्धि नष्ट हो गई है और जिन्होंने अपने धर्म का परित्याग कर दिया है। ऐसे लोगों को इस लोक और परलोक में उत्तम गति कैसे प्राप्त होगी ?

 

व्यास जी बोले- तब सूत जी ने भगवान शंकर का स्मरण किया और मुनियों से कहने लगे-

साधु पृष्टं साधवो वस्त्रैलोक्य हितकारकम्।

गुरुं स्मृत्वा भवत्स्नेहाद्वक्ष्ये तच्छृणुतादरात।। वि-2-1

हे मुनियों यह आपने त्रिलोक हितकारी सर्वोत्तम प्रश्न किया है ।  मैं गुरुदेव व्यास जी का स्मरण करके आप लोगों से स्नेह वस इस विषय का वर्णन करूंगा आप लोग आदर पूर्वक सुनें। 

तदपि जथा श्रुति जस मति मोरी।  कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी।।

सबसे उत्तम है वह है शिव महापुराण की पावन कथा जो वेदांत का सार सर्वस्व है । 

 

वेदान्त सार सर्वस्वं पुराणं चैव मुत्तमम्।

सर्वाघौघोद्धारकरं परत्र परमार्थदम्।। वि-2-2

यह पावन शिव कथा वक्ता श्रोता के समस्त पाप राशियों को भस्म भस्म करने वाला है। वेद व्यास के कहे इस पुराण का महत्व बहुत है। इसके कीर्तन और श्रवण का जो फल प्राप्त होता है उसके फल को में नहीं कह सकता , परंतु कुछ महात्म्य आप लोगों से कहता हूं ध्यान देकर सुनिए। 

 

यदि शिव पुराण का एक या आधा श्लोक भी कोई पड़ेगा तो पाप से छूट जाएगा और सावधानी से संपूर्ण शिव पुराण की कथा को सुनेगा तो जीवन मुक्त हो जाएगा । जो इसके कहे अनुसार आचरण करेगा-

दिने दिने अश्वमेधस्य फलं प्राप्नोत्यसंशयम्। वि-2-22

तो निसंदेह एक एक अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है।

 

तावत्कलिमहोत्पाताः सञ्चरिष्यन्ति निर्भयाः।

यावच्छिव पुराणं ही नोदेष्यति जगत्यहो।। वि-2-6

कलयुग के महान उत्पात अभी तक निर्भय होकर विचरेंगे जब तक यहां जगत में शिव पुराण का उदय नहीं होगा । 

जो भैरव जी की प्रतिमा के सामने इसका तीन बार पाठ करता है उसके सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। 

यह शिव महापुराण में चौबीस हजार श्लोक व सात सहिताएं हैं - 1- विद्येश्वर संहिता, 2- रुद्र संहिता, 3- शतरुद्र संहिता, 4- श्री कोटि रूद्र, 5- श्री उमा, 6- कैलाश, 7- वायवीय संहिता । 

जो इस सप्त संहिता से युक्त श्री शिव महापुराण को आदर पूर्वक पड़ेगा या सुनेगा वह जीवन मुक्त हो जाएगा । 

 

( ब्रह्मा जी का उपदेश )

सूत जी बोले- हे ऋषियों अब आप लोग परम दुर्लभ शिव महापुराण की कथा का श्रवण करें। जिसमें भक्ति ज्ञान और वैराग्य तीनों का वर्णन है । 

हे ऋषियों पूर्व काल में जब कल्पों का क्षय होता गया और उसके पश्चात जब इस कल्प का प्रादुर्भाव हुआ तब सृष्टि संबंधी के कार्यों के आरंभ होने पर, षट कुलीन अर्थात छः कर्मों के करने वाले उत्तम कुल के मुनियों में मतभेद उत्पन्न हो गया। 

 

कि यह सब से परे है या नहीं ,तब इसके निर्णय के लिए वे लोग ब्रह्मा जी के पास गए । ब्रह्मा जी ने कहा-

एष देवो महादेवः सर्वज्ञा जगदीश्वरः।

अयं तु परया भक्त्या दृश्यते नान्यथा क्वचित्।। वि-3-12

जो सबसे पूर्व उत्पन्न हुआ, जिसमें मनवाणी की कोई गति नहीं, वह सर्वज्ञ जगदीश्वर शिव हैं, जो परम भक्ति से दिखाई पड़ते हैं । शिव जी की भक्ति और भक्ति से ही उनके प्रसाद की प्राप्ति होती है ।

 

जैसे बीज से अंकुर और अंकुर से बीज की उत्पत्ति होती है। अतः ब्राह्मणों आप लोग महादेव जी की कृपा पाने हेतु एक हजार वर्ष का दीर्घ यज्ञ करें। 

जिसमें शिव जी की कृपा से आपको साध्य और साधन का ज्ञान होगा। इस पर मुनियों ने पूछां साध्य और साधन क्या है

ब्रह्मा जी ने कहा-

साध्यं शिवपदं प्राप्तिः साधनं तस्य सेवनम्।

साधकस्तत्प्रसादाद्यो नित्यादि फल निस्पृहः।। वि-3-18

साध्य शिवपद है और साधन उसकी सेवा है, परंतु उसके इसके लिए साधन को सर्वथा निष्पृह होना चाहिए । 

 

इस संबंध में स्वयं शिव जी ने कई निर्देश दिए हैं - कानों से शिव कथा सुनना, वाणी से कहना और मन से मनन करना भी एक महान साधन है । 

 

क्योंकि वह माहेश्वर सर्वथा ही सुनने कीर्तन और मनन करने योग्य हैं। इसलिए साध्य तक अगर पहुंचना है तो साधन में जुट जाना चाहिए। प्रत्यक्ष का ही विश्वास होता है बुद्धिमान को चाहिए कि पहले गुरु के श्री मुख से श्रवण कर कीर्तन और मनन द्वारा शिव योग्य को प्राप्त होवे। 

 

संभव है कि साधन में पहले कुछ क्लेश प्रतीत हो परंतु अंत में आनंद ही प्राप्त होता है । 

मुनियों ने पूछां कि- हे ब्रह्मा जी श्रवण और मनन क्या है तथा कीर्तन कैसे किया जाता है ?

ब्रह्मा जी ने कहा-

पूजाजपेश गुणरूपविलास नाम्नां

      युक्तिप्रियेण मनसा परिशोधनं यत् । 

तत्सन्ततं मननमीश्वर दृष्टि लभ्यं

      सर्वेषु साधन वरेष्वपि मुख्य मुख्यम्।। वि-4-2

ईश्वर के गुण, रूप, नाम और बिलासों में अपनी रूचि बढ़ाना तथा निरंतर अपने युक्तियों सहित अपने मन को उनके सन्मुख रखना ही मनन है और परम ब्रह्म महादेव जी अथवा शंभू भगवान के नाम का बारंबार जप करना ही कीर्तन है।


तथा दृढ होकर भगवत संबंधी शब्दों को कानों से सुनना और उसे चित्त में स्थित करना ही श्रवण है । जब सत्संग में बैठकर शिव कथा को श्रवण करें फिर उसका मनन करें वही सर्वोत्तम मनन है जिससे आत्मा पवित्र हो जाती है ।


सूत जी बोले - हे मुनीश्वरों मैं साधन संबंधी एक प्राचीन इतिहास आप लोगों को सुनाता हूं।
पुरा मम गुरुर्व्यासः पराशर मुनेः सुतः।
तपश्चचार सम्भ्रान्तः सरस्वत्यास्तटे शुभे।।


एक समय सरस्वती नदी के तट पर मेरे गुरु पाराशर पुत्र वेदव्यास जी तप कर रहे थे तो सनत कुमार जी ने उनके निकट आकर उनसे पूछा। हे भगवन शिवजी तो प्रत्यक्ष सब के सहायक हैं फिर आप ऐसा तप क्यों कर रहे हैं?

व्यास जी ने कहा- मुक्ति के लिए । इस पर सनतकुमार जी ने कहा भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन, मनन यह तीनों महत्तर साधन कहे गए हैं। यह तीनों ही वेद सम्मत हैं।

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