F राम कथा हिंदी में लिखी हुई- 13 ram katha hindi iskcon - bhagwat kathanak
राम कथा हिंदी में लिखी हुई- 13 ram katha hindi iskcon

bhagwat katha sikhe

राम कथा हिंदी में लिखी हुई- 13 ram katha hindi iskcon

राम कथा हिंदी में लिखी हुई- 13 ram katha hindi iskcon

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राम कथा हिंदी में लिखी हुई- 13 ram katha hindi iskcon

पूर्ण विश्वास गुरु चरणों में है कि उन्हीं के पूजने से सब कुछ मिल सकता है। उन्हीं के चरणों में जाकर विनती की अपना दुख सुख गुरु जी को सुनाया। सुनकर वशिष्ठ जी ने अनेक विधि से समझाया कि धैर्य धारण करो-

धरहुं धीर होइहहिं सुत चारी। त्रिभुवन बिदित भगत भय हारी।।

आपके चार बेटे होंगे उनकी ख्याति तीनों लोकों में होगी। वह भक्तों का भय हरण करने वाले होंगे। यज्ञ से पुत्र होना कहकर दिव्या जन्म कहा और त्रिभुवन विदित भगत भयहारी' कहकर दिव्य कर्म कहा। इस भांति स्पष्ट कह दिया कि तुम्हारे यहां अवतार होगा। वशिष्ठ जी ने श्रृंगी ऋषि को बुलाया और पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। श्रृंगी ऋषि कौन हैं?

रामायण काल के श्रृंगी ऋषि : इन्हें ऋष्यशृंग भी कहा जाता है। प्रभु श्रीराम की एक मात्र बड़ी बहन थीं शां‍ता। यह सुमित्रा की पुत्री थी। शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र श्रृंगी ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था जिसके फलस्वरूप श्रृंगी ऋषि का जन्म हुआ था। एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फसल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपाद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। अपने भक्‍त की बेइज्‍जती पर गुस्‍साए इंद्रदेव ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया।

तब राजा ने श्रृंगी ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में आनंद का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ श्रृंगी ऋषि को देने का फैसला किया। यज्ञ से संतुष्ट होकर यज्ञनारायण भगवान स्वयं चरु प्रसाद लेकर प्रकट हुए।

बोलिए यज्ञनारायण भगवान की जय

उन्होंने कहा हे राजन इस चरु को ले जाकर रानियों में यथायोग्य बांट लो। राजा ने पायस का आधा भाग कौशल्या को दे दिया और शेष आधे के दो भाग किए। उनमें से एक भाग राजा ने कैकेयी को दिया। जो शेष बचा रहा उसके फिर दो भाग हुए और राजा ने उनको कौशल्या और कैकेयी के हाथ पर रखकर उनकी अनुमति लेकर सुमित्रा को दे दिया। इस प्रकार सभी रानियां गर्भवती हुई, वह हृदय में बहुत हर्षित हुई। सज्जनों जिस दिन से हरि लीला से ही गर्भ में आए सब लोकों में सुख और संपत्ति छा गई।

जा दिन तें हरि गर्भहिं आए। सकल लोक सुख संपति छाये।।
मंदिर महँ सब राजहिं रानीं। सोभा सील तेज की खानी।।

शोभा सील और तेज की खान बनी हुई सब रानियां महल में सुशोभित हुई। अयोध्या में सृष्टि ने अपना नियम बदल दिया। किसी ने पूछा कि क्यों रे सृष्टि तूने क्यों अपना नियम बदल दिया? तो सृष्टि मुस्कुराई और कहने लगी स्रष्टा ही जब नियम बदलने को तैयार है। जब बाप ही बेटा बनने को आज तैयार है। जब सागर ही सरिता से मिलने को तैयार है। तो हमसे पूछ रहे हो। भगवान के आने के पावन अवसर पर अयोध्या के गलियों में साधु संत कीर्तन करते हुए नाचने लगे। सारे लोग आनंदित हो गए। सज्जनो अब वह अवसर आया जब प्रभु प्रकट होते हैं। योग, लग्न, ग्रह, दिन और तिथि सभी अनुकूल हो गए। हमारे रामलला सरकार जब अवतरित होते हैं तब कौन सी तिथि थी?

नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।
मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा।।

नवमी तिथि, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, भगवान को प्रिय लगने वाला अभिजित मुहूर्त, मध्यान का समय ना धूप ना सीत, शीतल मंद सुगंध वायु बह रही है। देवता हर्षित थे। संतों के मन में आनंद था। वन में तरह-तरह के वृक्षों के फूल फूले हुए थे। पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे। सारी नदियां अमृत की धारा बहा रहीं थी। बंधु माताओं कौशल्या माता भवन से बाहर निकलना बंद कर दीं गर्भ के स्पष्ट संकेत। आज प्रातः काल माता कौशल्या सरजू में स्नान करके लौटी। मा ने श्वेत परिधान धारण किया है। मा ने केश खुले रखे हैं। मां अपने भवन में प्रवेश की हैं, सेवक सेविकाओं से कहा है जाओ हमको आज विशेष पूजा करनी है।

सेवक सेबिका कहीं नहीं गए सब छुप-छुप कर बैठ गए। कौशल्या मैया आज चतुर्भुज नारायण के प्रतिमा के सामने गहरे ध्यान में बैठ गई हैं। मां गहरी ध्यान में डूबती चली जा रही हैं। कौशल्या माता प्रतिदिन से ज्यादा आज तेजस्विनी लग रही है। मां के चेहरे पर एक दिव्य तेज प्रकट हो गया है। माता के चारों ओर एक दिव्य आभामंडल जागृत हो गया है। मां को लगता है कि कोई दिव्य वस्तु उनके शरीर से बाहर आना चाहती है। और जैसे ही घड़ी में ठीक 12:00 बजे।

बोलिए चतुर्भुज नारायण की जय

कौशल्या माता के सामने रामलला सरकार चतुर्भुज रूप में प्रकट हो गए।

भए प्रगट कृपाला परम दयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मनहारी अदभुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता॥
करुना सुखसागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता॥
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै॥
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसु लीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते प परहिं भवकूपा॥

प्रभु के अद्भुत स्वरूप को देखकर के माता बड़ी प्रसन्न हो गई। माता कहने लगी कि हे प्रभु बेटा बनकर के आए हो या बाप बनाकर के आए हो? भगवान कहने लगे मैया मैं तो बेटा बनने के लिए ही आया हूं! मैया ने कहा तो जन्म लेने वाले बेटा इतने बड़े नहीं होते, छोटे बन जाइए। भगवान छोटे रूप में हो गए। कौशल्या मैया ने कहा अरे प्रभु यहां संसार में सब मनुष्य दो हांथ वाले ही होते हैं। ये चार हाथ वालों को देखेंगे तब तो संसार क्या कहेगा? दो हाथों वाले बन जाइए। भगवान ने कहा ठीक है मैया, भगवान दो हाथों के हो गए। कौशल्या मैया ने कहा कि अब आप रोइए भी। भगवान मुस्कुरा कर कहने लगे अरे मैया रोना भी पड़ेगा?

कौशल्या मैया ने कहा क्यों प्रभू जब आपको भक्त रो-रो करके पुकारते हैं तो क्या आज आप अपने भक्तों के लिए नहीं रो सकते हैं। कृपा के सागर माता के इस भाव से रीझ गए-

सुनि वचन सुजाना रोदन ठाना।

भगवान प्राकृत शिशु रूप धारण करके रोना प्रारंभ कर दिए। जैसे ही भगवान ने रोना प्रारंभ किया चारों तरफ रोने की अवाज गूंज गई।

सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आई सब रानी।।

बच्चे की रोने की आवाज सुनकर उत्कंठा युक्त हो सभी रानियां चली आई। दासी आनंदित होकर जहां-तहां दौड़ चली एवं नगर निकासी आनंद में मग्न हो गए। महाराज दशरथ ने दासियों से पूछा है अरे क्या हुआ? दासियों ने कहा अरे महाराज कुछ नहीं। महाराज ने कहा बताओ? दासियों ने कहा ऐसे नहीं बताएंगे पहले बोलिए बधाई मिलेगी? महाराज दशरथ ने कहा कि हां बधाई मिलेगी? दासियों ने कहा कि महाराज कौशल्या मैया के गोद में सुंदर सा राजकुमार- लल्ला हुआ है। दशरथ जी ने जैसे ही अपने कानों से यह सुना उनके आनंद का उत्साह का प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा।

दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहुँ ब्रह्मानंद समाना।।
परमानंद पूरि मन राजा। कहा बोलाइ बजावहु बाजा।।

सुमंत्र जी से महाराज दशरथ ने कहा है कि बाजे वालों को बुलवाओ और बाजा बजवाओ। तो सज्जनों यह यह जन्म का उत्सव पर बाजे बजाने की प्रथा बहुत पुरानी है त्रेता युग में भी महराज दशरथ जी ने सुमंत जी से कहा की बाजे वालों को बुलवाओ। आज तो समाज में बड़ी विकट परिस्थिति देखी जाती है बेटा होता है तो बाजा बजवाया जाता है और बेटी होती है तो सबका मुंह बन जाता है। यह कहां से आ गई। आज भी बेटा और बेटी में भेद देखा जाता है। यह बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि जिस देश में बेटियों को देवी माना जाता है, वेद पुराणों में यह लिखा है कि जहां पर स्त्री का सम्मान होता है वहीं देवताओं का वास होता है।

समाज में यह बेटा और बेटी में भेदभाव देखना यह बड़ा निकृष्ट है हम सब को इस गलत विचारधारा को त्यागना होगा और यह मानना होगा की बेटी और बेटा में कोई भेद नहीं। सज्जनो बेटी तो वह होती है कि एक बार माता-पिता की सेवा बेटा नहीं करेगा लेकिन बेटी जरूर करेगी। गुरु वशिष्ट जी के पास बुलावा गया वे ब्राह्मणों को साथ लिए राजद्वार पर आए हैं। उन्होंने जाकर जब राघवेंद्र सरकार, रामलला सरकार को देखा है। उनके रूप सौंदर्य को देखा है तो बड़े मगन हो गए। क्योंकि आज उन्होंने उन प्रभु को देखा जिनके गुण कहने से समाप्त नहीं होते हैं।

महाराज दशरथ ने नांदी मुखश्राद्ध आदि करके सब जातकर्म संस्कार आदि किया और ब्राह्मणों को बहुत दान दिया है। सोना, गौ, वस्त्र और मणियों का दान। सज्जनों महाराज दशरथ ने इतना दान लुटाया है, इतना दान किया है कि दान लेने वाले भी उसको अपने पास नहीं रखे उन्होंने भी उसे लुटा दिया। घर-घर मंगलमय बधावा बजने लगा क्योंकि शोभा के मूल भगवान प्रकट हुए हैं। नगर के स्त्री पुरुषों के झुंड के झुंड जहां-तहां आनंद मग्न हो रहे हैं। कैकई और सुमित्रा इन दोनों ने भी सुंदर पुत्रों को जन्म दिया। उस सुख संपत्ति समय और समाज का वर्णन सरस्वती और सर्पों के राजा शेष भी अपने हजारों मुखों से नहीं कर सकते। ऐसे आनंद उत्सव में भगवान सूर्य नारायण भी अपनी गति भूल गए और एक महीने का दिन हुआ। लेकिन किसी ने भी इस गति को, इस रहस्य को जाना नहीं। क्योंकि राम जन्म के उत्साह के कारण उमंग के कारण किसी को पता ही नहीं चला।

आइए हम भी अयोध्या के उसी उत्सव में शामिल होते हैं, सारे अयोध्या वासी बधाई गीत गा रहे हैं। नृत्य कर रहे हैं उत्सव कर रहे हैं।

बधाई गीत-
जन्मे है राम रघुरैया,अवधपुर में बाजे बधैया,
बाजे बधैया बाजे बधैया,जन्में है राम रघुरैया,
अवधपुर में बाजे बधैया ॥
राजा दशरथ गैया लुटावे, राजा दशरथ गैया लुटावे,
कंगना लुटावे तीनो मैया,अवधपुर में बाजे बधैया,
जन्में है राम रघुरैया,अवधपुर में बाजे बधैया ॥
राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न,राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न,
गोदी में खेले चारो भैया,अवधपुर में बाजे बधैया,
जन्में है राम रघुरैया,अवधपुर में बाजे बधैया ॥
सारी अयोध्या में धूम मची है,सारी अयोध्या में धूम मची है,
भारी है भीड़ अंगनैया,अवधपुर में बाजे बधैया,
जन्में है राम रघुरैया,
अवधपुर में बाजे बधैया ॥
माधव’ कहे शिव डमरू बजावे,
माधव’ कहे शिव डमरू बजावे,
आशीष देवे गौरी मैया,
अवधपुर में बाजे बधैया,
जन्में है राम रघुरैया,
अवधपुर में बाजे बधैया ॥
जन्मे है राम रघुरैया,अवधपुर में बाजे बधैया,
बाजे बधैया बाजे बधैया,जन्में है राम रघुरैया,
अवधपुर में बाजे बधैया ॥

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई- 13 ram katha hindi iskcon

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