राम कथा हिंदी में लिखी हुई- 15 hindi ram katha
इधर मैया की आवाज सुनकर के हमारे
रामलला सरकार पालने में बड़े-बड़े गदगद हो गए। खिलखिला कर हंसने लग गए कि आज बाबा
जी फस गए। आज मैया मेरी कौशल्या छोड़ेगी नहीं इनको आशीर्वाद इनको देना ही पड़ेगा।
भगवान राम का इसमें कल्याण हो रहा है क्योंकि वह इनके ईस्ट है। तब भगवान शंकर क्या
करते उनको अपना हाथ राम जी के सर पर रखना पड़ा। अपना हाथ जैसे ही प्रभु राम के सर
पर रखे हैं,
पूरे शरीर मैं रोमांच हो गया, रोम रोम पुलकित
हो गए हृदय गदगद हो गया।
भोलेनाथ मगन होकर अयोध्या की गलियों में नाचते डोल रहे हैं और
साधारण नाच तो नाचते नहीं है बाबा हमारे तांडव ही करते हैं।
( नटराज स्तुति- सतसृष्टि
ताडंव रचयिता )
परमानंद
प्रेम सुख फूले। बीथिन्ह फिरहिं मगन मन भूले।।
यह सुभ चरित जान पै सोई। कृपा राम कै जापर होई।।
भगवान शंकर ने कहा कि देवी परम आनंद
और प्रेम के सुख में फूले हुए हम दोनों मगन मन से गलियों में तन मन की शुद्ध बिसरा
करके मस्ती से डोल रहे थे। वह आनंद हमारे हृदय में था जिसका वर्णन करना संभव नहीं।
महाराज दशरथ ने सबके मन को संतुष्ट किया है। सज्जनों जरा मन में विचार कीजिए कि वह
अनंत कोटि ब्रह्मांड का रचयिता सृजन कर्ता जब बाल रूप में आया होगा तो उसका क्या
रूप माधुर्य रहा होगा। जिसकी रचना इस इतनी सुंदर वह कितना सुंदर होगा।
संसार में ऐसे भी नास्तिक हैं, भगवान
को ना मानने वाले लोग भी पड़े हुए हैं। जो यह मानते ही नहीं है कि भगवान हैं। तो
यहां पर एक बात को समझना होगा कि नारद, व्यास, वशिष्ठ, सुकदेव आदि जिनका संपूर्ण जीवन त्यागमष रहा।
जिन्होंने धन, आराम का त्याग किया तथा जो इतने ज्ञानवान हैं
वह अपने जीवन का अनुभव बता रहे हैं कि भगवान हैं और उनकी प्राप्ति होती है। तब
हमें उनकी बात पर श्रद्धा करनी चाहिए उनके वचनों पर हमें विश्वास करना चाहिए। भगवान
में श्रद्धा करने पर उनकी एक सुंदर कल्पना हमारे मन में आती है। वास्तव में वह
कल्पना नहीं है अपितु वह सत्य है जो हमारी कल्पना से कहीं अधिक है। हम भगवान के
संबंध में उतनी कल्पना कर ही नहीं सकते कि जैसे वह हैं। भगवान जैसे हैं वैसी
कल्पना हमारी बुद्धि में आ ही नहीं सकती। क्योंकि वह बुद्धि से परे हैं तथापि
हमारी बुद्धि में भगवान की जो कल्पना आती है वह इतनी विलक्षण है कि उनमें श्रद्धा
होने पर बरबस शरणागति हो जाती है और हम अनायास अपने को उनके चरणों में छोड़ने को
बाध्य हो जाते हैं।
उमा
राम सुभाउ देहि जाना। ताहि भजनु तजि भाव ना आना।।
संत तुलसीदास जी के शब्दों में-
जिसने राम के स्वभाव को जान लिया वह बरबस भजन करने को बाध्य होगा। क्योंकि वह
स्वभाव ही ऐसा है। राम का भगवान का स्वरूप ही ऐसा है कि उस स्वरूप का परिज्ञान
होने पर उसकी एक झांकी मन मे हो जाने पर मनुष्य अपने को बिना निवेदन किये नहीं रह
सकता।
तुलसी
राम सनेह सील लखि, जो ना भगति उर आई।
और अगर इतने पर भी नहीं करता तो वह
संसार में व्यर्थ ही पैदा हुआ है। उसका तो जीवन ही नरक रूप है।
ते
नर नरक रूप जिवत जग।
यह सब संतो के अनुभव हैं भगवान में
श्रद्धा होने पर,
उनके स्वरूप में, स्वभाव में श्रद्धा होने पर
स्वाभाविक हि शरणागति की प्राप्ति होती है।
एक बात हम सबको स्मरण रखना चाहिए
मनुष्य के पास एक बहुत विलक्षण धन है जो सबको बराबर मिला हुआ है यह धन है मानव
जीवन का समय। यह धन भगवान की अहेतु की कृपा से मिला है अपने पुरुषार्थ से नहीं। इस
धन से हम बहुत चीजों का विद्याओं का कलाओं का संपादन कर सकते हैं। समय से सब कुछ
खरीदा जा सकता है। समय खर्च करके मनुष्य बुद्धिमान, बलवान बन सकता है।
देवलोकों में, ब्रह्म लोक में जा सकता है। तत्व ज्ञान भक्ति
प्राप्त कर सकता है। बात समय के सदुपयोग दुरुपयोग की है। नरकों की प्राप्ति के लिए
भी समय खर्च करना पड़ता है।
नरक
स्वर्ग अपवर्ग निसेनी।
बीमारी के सदुपयोग से भी परमात्मा की
प्राप्ति कर सकते हैं। बीमारी भगवान की दी हुई शुद्ध तपस्या है उसमें एक आनंद आता
है। ऐसे तप से बुद्धि भी विकसित होती है। प्रत्येक परिस्थिति में हमारी दृष्टि
भगवान पर रहनी चाहिए। विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी भगवान की कृपा रहती है।
जो प्रतिकूल परिस्थिति में रोते हैं, वे बालक हैं, बेसमझ हैं। मां बालक को नहलाती है तो वह रोता है परंतु बालक के रोने की
परवाह न करके मां उसको नहलाकर नए कपड़े पहनकर गोदी में ले लेती है। गोदी में लेने
पर मां और बालक दोनों को आनंद होता है। कोई कष्ट आए तो युधिष्ठिर को, द्रोपती को याद करो, भगवान राम को, राजा नल को याद करो उन पर भी कितना कष्ट आया पर वह अपने धर्म से विचलित
नहीं हुए।
( नामकरण
लीला )
इधर सज्जनों दिन के गमनागमन से समय
बीता और चारों भैया कुछ बड़े हो गए। अब नामकरण का समय आ गया। हमारे सनातन धर्म में
16 संस्कार कह गए हैं प्रथम संस्कार गर्भाधान से लेकर सोलहवाँ संस्कार
अंत्येष्टि। गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार,
सीमन्तोन्नयन संस्कार, जातकर्म संस्कार,
नामकरण संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, चूड़ाकर्म संस्कार, विद्यारंभ संस्कार, कर्णवेध संस्कार, यज्ञोपवीत संस्कार, वेदारंभ संस्कार, केशान्त संस्कार, समावर्तन संस्कार, विवाह संस्कार, अन्त्येष्टि संस्कार इन संस्कारों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है जीवन में।
सज्जनो जीवन में नाम का बहुत प्रभाव
रहता है इसलिए कहा गया है- यथा नाम तथा गुण। भजन में भी देखो तो नाम की ही महिमा
है। अगर अपने संतान का जब भी नामकरण करें तो शास्त्र सम्मत नाम हो। लेकिन हम सबसे
यह गलती होती है कि जब नाम रखने की बारी आती है तो बिना अर्थ का नाम ही चिंकू, टिंकू,
पिंकू, डबलू, बबलू आदि
नाम को रख लेते हैं। जिनका कोई अर्थ नहीं जिस नाम से कोई कल्याण नहीं। तो नाम होना
चाहिए शास्त्रोक्त आचार्य ब्राह्मण गुरु से सलाह लेकर नाम रखें। नाम का बड़ा
महत्वपूर्ण स्थान है जीवन में हम सब ने भागवत महापुराण की कथा में सुना है अजामिल
जब संतों के आग्रह करने पर अपने छोटे पुत्र का नाम नारायण रख दिया। तो उसे नारायण
नाम रखने से ही उसका कल्याण हुआ तो नाम ऐसा रखिए जिससे कल्याण की प्राप्ति हो।
महाराज दशरथ जी के यहां भी अब कुमारो
का नाम करण करने का शुभ अवसर आ गया।
कछुक
दिवस बीते एहि भाँती। जात न जानिअ दिन अरु राती।।
नामकरण कर अवसरु जानी। भूप बोलि पठए मुनि ग्यानी।।
नामकरण के शुभ अवसर को जानकर महाराज
दशरथ जी ने गुरु वशिष्ठ जी को बुलावा पठाया है। गुरुदेव वशिष्ठ आए हैं महाराज दशरथ
जी ने उनका स्वागत सत्कार किया, उनका पूजन किया और फिर उनसे निवेदन
किया। हे मुनिराज आपने अपने मन मे जो विचार रखे हो वह नाम रखिए। मुनि ने कहा कि है
राजन इनके अनेक अनुपम नाम है फिर भी मैं अपनी बुद्धि के अनुसार इनका नाम कह रहा
हूं सुनिए-
जो
आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी॥
सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा॥
ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि
हैं, जिस (आनंदसिंधु) के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन (आपके सबसे बड़े पुत्र) का नाम 'राम' है, जो सुख का भवन और सम्पूर्ण लोकों को शांति देने
वाला है।
बोलिए राम
लला सरकार की जय
तो सज्जनो भगवान का जो नाम है यह
विश्राम देने वाला है और सबको यही चाहिए क्योंकि जीवन में सबके सब कुछ है लेकिन
किसी के पास विश्राम नहीं है। जीवन में सुख नहीं है, शांति नहीं है और
प्रभु का यह है प्यारा सा नाम राम सबको सुखी करने वाला है। सज्जनों हम दूसरे को
देखकर के यह समझते हैं कि अरे हम तो दुखी हैं लेकिन यह सामने वाला बहुत सुखी है
क्योंकि यह सुख सुविधा से संपन्न है। अगर इतनी सुख सुविधा जब हमारे पास हो जाएगी
तो हम भी सुखी हो जाएंगे। तो यह धारणा हमारी सत प्रतिशत गलत है। कोई सुखी नहीं है।
जिनको आप देख करके उनका संसाधन उनको सुखी समझ रहे हैं वह अपने से ऊपर वालों को
देखकर स्वयं को दुखी समझकर उनको सुखी समझ रहे हैं। बड़ा सुंदर एक भाव संदेश है-
दीन
कहे धनवान सुखी, धनवान कहे सुख राजा को भारी।
राजा कहे महाराजा सुखी, महाराजा कहे सुख इंद्र
को भारी।।
इंद्र कहे चतुरानन सुखी, चतुरानन कहे सुख शिव
को भारी।
तुलसी जी जान विचार कहे हरि भजन बिना सब जीव दुखारी।।
तो संसार से आज तक कोई सुखी नहीं हुआ, बिना
भजन के जीव केवल दुख को ही प्राप्त कर सकता है। क्योंकि इस संसार का दूसरा नाम ही
दुख्खालय है। दुख्खालयं अशास्वतम्। दुखों का घर तो जो दुखों का घर है वह
सुख कहां से प्रदान कर सकता है? यहां पर सभी दुखी हैं।
कोई
तन दुखी कोई मन दुखी, कोई धन बिन रहत उदास।
थोड़ी-थोड़ी सब दुखी, सुखी राम जी के दास।।
सुख देने वाले केवल श्री राम जी हैं
उनका नाम है तो प्रभु का नाम सबको आराम और विश्राम देने वाला है सुखी करने वाला
है।
बिस्व
भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई॥
जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा॥
जो संसार का भरण-पोषण करते हैं, उन
(आपके दूसरे पुत्र) का नाम 'भरत' होगा।
बोलिए भारत
लाल की जय
जिनके स्मरण मात्र से शत्रु का नाश
होता है,
उनका वेदों में प्रसिद्ध 'शत्रुघ्न' नाम है।
बोलिए
शत्रुघ्न लाल की जय
लच्छन
धाम राम प्रिय सकल जगत आधार।
गुरु बसिष्ठ तेहि राखा लछिमन नाम उदार॥
जो शुभ लक्षणों के धाम, श्री
रामजी के प्यारे और सारे जगत के आधार हैं, गुरु वशिष्ठजी ने
उनका 'लक्ष्मण' ऐसा श्रेष्ठ नाम रखा
है।
बोलिए लखन
लाल की जय
इस प्रकार चारों भाइयों के नाम क्रमशः रखे गए। इन चारों के पिता का नाम दशरथ है। संस्कृत भाषा में दशरथ शब्द का अर्थ है, जिसका रथ दसों दिशाओं में चल सकता है। जिसके रथ की गति कोई रोक नहीं सकता।