F राम कथा हिंदी में लिखी हुई-64 ram katha hindi pdf notes - bhagwat kathanak
राम कथा हिंदी में लिखी हुई-64 ram katha hindi pdf notes

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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-64 ram katha hindi pdf notes

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-64 ram katha hindi pdf notes

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-64 ram katha hindi pdf notes

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-64 ram katha hindi pdf notes

तब गीधराज ने एक ही झपट्टा में रावण के बाल शिखा पकड़कर उसे रथ समेत नीचे गिरा दिया। सीता को अपने घोंसले में बिठाकर फिर लौटा और चोंच मार-मारकर रावण के शरीर को विदीर्ण कर डाला। इससे उसे एक घड़ी को मूर्छा हो गई। बंधु माताओं यहाँ यह बात ध्यान देने की है कि हमारे देश भारत में पक्षी भी निर्दोष युद्ध जानते थे, नहीं तो रावण जब एक घड़ी मूर्छित पड़ा रहा तो वह चाहता तो इतने समय में वह रावण की आखों का मोतियाबिन्दु अपनी चोंच से निकल आपरेशन कर उसे अंधा बना देता। पर ये अधर्म का युद्ध कहलाता, मुर्छा में उसने कुछ भी क्रिया नहीं की।

रावण की मूर्छा जागी तो उसने अपनी तलवार से जटायू के पंख काट डाले। जटायु अद्भुत करणी करके और श्रीरामजी का स्मरण करके पृथ्वी पर गिर पड़े। रावण पुन: सीता जी को रथ पर चढ़ाकर बड़ी उतावली के साथ ले चला। सीता विलाप करती जा रही हैं, पर्वत पर बैठे हुए बंदरों को देखकर सीता ने हरिनाम लेकर वस्त्र डाल दिया। इस प्रकार वह सीता को ले गया और जाकर अशोक वाटिका में उनको रखा।

श्री रघुवीर विरह वर्णन प्रसंग

सज्जनो इधर रघुनाथ जी ने छोटे भाई लक्ष्मणजी को अपनी ओर आते देखकर बाह्य बहुत चिंता की पर हृदय से निश्चिंत थे । पास आकर प्रभु बोले- भाई तुमने जानकी को अकेली छोड़ दिया और मेरा बचन टालकर यहाँ चले आये। राक्षसों के झुंड बन में फिरते रहते हैं, मेरे मन में ऐसा आता है कि सीता अब आश्रम में नहीं हैं। लक्ष्मणजी ने चरण कमलों को पकड़ हाथ जोड़कर कहा, हे नाथ! मेरा कुछ भी दोष नहीं है। दोनों आश्रम पर आये, जानकी रहित आश्रम देखा।

आश्रम देखि जानकी हीना। भए बिकल जस प्राकृत दीना।।

तब श्री राम जी साधारण मनुष्य की भांति व्याकुल और दीन दुखी हो गए। वह विलाप करने लगे। श्री राम जी लताओं और वृक्षों से पूंछते हुए मां जानकी को ढूंढ रहे हैं।

हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी।।

हे पक्षियों, हे पशुओं, हे भौरों बताओ तुमने कहीं मृगनैनी सीता को देखा है? इस प्रकार प्रभु लता पता वृक्ष से भी माता जानकी को पूंछ रहे हैं। आगे जाने पर उन्होंने जटायु को पड़ा देखा।

आगे परा गीध पति देखा। सुमिरत राम चरन्ह जिन्ह रेखा ॥

श्रीराम जी ने कर कमल से गीध के सिर का स्पर्श किया, उसकी सब पीड़ा जाती रही। सज्जनो जटायु जी ने प्रभु श्री राम से सब बताया प्रभु रावण ने मेरी यह गति की है। वही दुष्ट मां सीता को लेकर दक्षिण दिशा में गया है। प्राण केवल आपको बताने के लिए मैं अभी तक धारण करके रखा था हे प्रभु अब मुझे विदा कीजिए। प्रभु से अविरल भक्ति मांग करके जटायु जी प्राणों का त्याग किया। बंधु माताओं आप दर्शन करिए जो सौभाग्य श्री राम जी ने पिताजी को नहीं दिया वह जटायु जी को दिया है। जटायु जी की अंतिम क्रिया भगवान श्री राम जी ने अपने हाथों से किया है। अब यहाँ कथा प्रसंग में शंकरजी उमा से कह रहे हैं हे उमा सुनो ! वे लोग अभागे हैं जो भगवान को छोड़कर विषयों से अनुराग करते हैं।

नर तन पाइ विषय मन देंही । पटलि सुधाते सठ विष लेंही ॥

हरि रूप सुधा है और विषय विष है, गीध से इतना ही हुआ कि वह हरिपद में अनुरक्त हो गया अत: वह महाभाग्यवान हो गया। आमिष भोजी गीध भाग्यवान हुआ और रावण अभागी हुआ ब्राह्मण होकर भी।

कवंध बध तथा सबरी गति प्रसंग

दोनों भाई सीता जी को खोजते हुए आगे चले, श्रीराम जी ने रास्ते में आते हुए कवंध को मारा, उसके भय से बन में कोई आता न था। उसने शाप की बातें प्रभु से निवेदन कीं कि मैं पूर्वजन्म में बड़ा सुंदर गंधर्व था पर ऐसा ही भयानक रूप धारण कर मुनियों को डराता फिरता था। इससे दुर्वासा ने मुझे शाप दे डाला जो अब प्रभु के चरण देखने से वह पाप मिट गया, श्रीराम ने कहा हे गंधर्व सुनो ! ब्राह्मण कुल से द्रोह करने वाला मुझे नहीं सुहाता । मन बचन कर्म से कपट छोड़कर जो ब्राह्मणों की सेवा करता है, मुझ समेत ब्रह्मा, शिव आदि सब देवता उसके वश में हो जाते हैं।

सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता।।
पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना।।

शाप देता हुआ, मारता हुआ और कठोर बचन कहता हुआ भी ब्राह्मण पूज्य हैं ऐसा संत कहते हैं। शील और गुणहीन भी ब्राह्मण पूज्यनीय है और गुणगणों से युक्त और ज्ञान में निपुण भी शूद्र पूज्यनीय नहीं है। आदरणीय का पात्र हो सकता है न कि पूजा का अधिकारी। आदर और पूजा में बहुत भारी अंतर है।

श्री राम जी ने अपना भागवत धर्म उसे समझाया तब वह कबंध श्री रघुनाथ जी के चरण कमल में सिर नवाकर अपनी गति गंधर्व रूप पाकर आकाश में चला गया।

अब राम जी माता शबरी के पास पहुंच गए। शबरी मैया को उनके गुरु जी ने कहा था बेटी प्रतीक्षा करना एक दिन तुम्हारे पास चलकर स्वयं भगवान आएंगे। यह वचन उन्होंने जवानी में कहा था राम जी आएंगे। आपको पता है शबरी मैया ने कितने दिन प्रतीक्षा किया है राम जी की? 10000 वर्ष। शबरी माता प्रतीक्षा करते-करते बूढी हो गई। लोग कहते तुम बूढी हो गई लेकिन तुम्हारे राम नहीं आए? सज्जनो तब माता शबरी यही कहती थी मैं बूढी हो गई हूं लेकिन मेरी प्रतीक्षा बूढ़ी नहीं हुई है। मेरे गुरु जी ने मुझसे कहा था कि भगवान आएंगे तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि भगवान जरूर मेरे पास आएंगे। शबरी निरन्तर राघव जी बाट देखती रहती और गुरु जी का दिया हुआ मंत्र गुनगुनाती रहती।

रामा रामा रटते रटते बीती रे उमरिया।
रघुकुल नंदन कब आओगे भीलनी की डगरिया।

सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए।।

शबरी मैया को दो पुरुष आते हुए दिखाई दिए। अब यहां पर दर्शन करिए शबरी माता को राम जी दिखाई दिए तो राम जी याद नहीं आए, कौन याद आया? गुरु जी याद आए। यह कथा कहती है जिस व्यक्ति के कारण हमको भगवान की प्राप्ति हो जाए भगवान से पहले उस व्यक्ति का स्मरण करना चाहिए, उनके कारण भगवान आज हमको मिले। सबरी जी को भी आज गुरु जी याद आए। शबरी माता उस समय गुरु जी से बोली थी कि गुरु जी हम तो राम जी को देखे ही नहीं हैं, वह मेरे पास आएंगे तो हम उनको पहचानेंगे कैसे? गुरु जी ने भगवान को पहचानने के लिए पांच बातें बताई थी शबरी मैया से।

सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला।।

और बोले सबरी यह पांच जिनमे दिखाई पड़ जाए समझ जाना की यही रामजी हैं। राम जी माता शबरी के पास चलकर के आ रहे हैं और माता शबरी गुरु जी के बताए हुए उन पांचो बातों को मिला रही हैं। गुरुजी बोले थे 1-( सरसिज लोचन ) कमल के पंखुड़ियां के समान उनके नेत्र होंगे। शबरी जी ने देखा अरे बिल्कुल वैसे ही आंखें हैं। प्रसन्न हो कई एक लक्षण मिल गया। दूसरा गुरु जी बोले थे 2-(बाहु बिसाला) राम जी की विशाल भुजाएं होंगी। शबरी मैया देखीं घुटने के नीचे तक उनके हाथ आ रहे हैं। अजानबाहु मन में सोची दो बातें तो मिल गई।

तीसरा गुरुजी बोले थे 3-(जटा मुकुट सिर) सर पर जटाओं का मुकुट होगा। देखकर कहने लगी अरे तीसरा भी मिल गया। चौथा देखने लगी 4-(उर बन माला) प्रभु के गले में वनमाला होगी। सज्जनो यहां तब तक राघव जी पास में आ गए। सबरी मैया ने राम जी से पूंछा आप जो यह माला पहने हुए हैं इस माल का क्या नाम है? राम जी बोले मइया इसका नाम बनमाला है। इतना सुनते ही शबरी माता मगन हो गई की चार मिल गए। अब अंतिम मिल जाए तो पक्का हो जाएगा यही हैं भगवान। अंतर्यामी प्रभु श्री राम सब जानते हैं मुस्कुराते हुए पूछने लगे अरे मैया क्या मिला रही हो? माता शबरी ने कहा प्रभु अभी नहीं बताऊंगी पांच मिल जाएंगे तब बताऊंगी।

अंतिम गुरुजी ने कहा था राम जी अकेले नहीं आएंगे 5-( श्याम गौर सुन्दर दोउ भाई) एक सांवले होंगे एक गोरे होंगे और दोनों भाई होंगे। शबरी मैया मिलान कर रही है सांवले गोरे तो है भाई हैं कि नहीं है यह पता नहीं है। तब शबरी माता ने प्रभु राघव जी से निवेदन किया किया है जो गोरे-गोरे हैं आपके क्या लगते हैं? तब प्रभु रघुनंदन मुस्कुराते हुए कहने लगे मायी जिनको आप ढूंढ रही हैं हम वही रघुराई हैं और यह हमार छोट भाई हैं। गोस्वामी जी लिखते हैं जैसे ही शबरी मैया ने पहचाना।

सबरी परी चरन लपटाई।।

माता शबरी बार-बार प्रभु के चरणों में प्रणाम कर रही हैं। गुरु जी ने कहा था शबरी माता से कि जब भगवान आए तो उनके चरणों को धुलना तो। निवेदन करने लगी राघव जी से प्रभु चरणों को धो लूं? राम जी बोले पानी तो लाई नहीं हो चरण कैसे धुलोगी? शबरी माता ने कहा प्रभु 10000 वर्षों से प्रतीक्षा कर रही हूं, लोग कहते थे राम जी नहीं आएंगे लेकिन मैं आज तक कभी रोई नहीं हूं। आपके चरण धोने लायक जल तो इन आंखों में भरा हुआ है। आज इन्हीं आंखों के जल से मैं आपके चरणों को पखारूंगी। फिर हाथ जोड़ के बोली मैं स्तुति की विधि नहीं जानती, मैं नीच जाति की और अत्यंत मूढ़ बुद्धि की स्त्री हूँ, तिस पर तुम्हारी स्तुति –

स्तुति ब्रह्मा दीनामपितद वसन्नस्त्वयि गिरः" (महिम्न स्तोत्र )

कोई स्तोत्र भी कंठ नहीं है, अब मैं क्या करूँ जिससे आप प्रसन्न हों।

"स्तोतुन्न जानामि देवेश किं करोमि प्रसीद में " (अध्यात्म रामायण)

राम जी कहते हैं मेरी बात सुनो ! मैं केवल एक भक्ति का ही नाता मानता हूँ। जाति (१) पाँति (२) कुल (३) धर्म (४) बड़ाई (५) धन (६) बल (७) परिजन (८) गुन (९) चतुराई ( १० ) यह सब हो लेकिन भक्ति ना हो तो-

भगति हीन नर सोहहि कैसा । बिनु जल वारिद देखिय जैसा।।

भक्तिहीन होने से ये दशों शोभाएँ व्यर्थ हैं। जैसे बिना जल का बादल । वह राम सुयश की वर्षा नहीं कर सकता। मैं जब तुमसे नवधा भक्ति कहता हूँ ।

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।।
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।।
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा।।
छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा।।
सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।।
आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।।
नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना।।

राम जी कहते हैं- पहले भक्ति है संतों का सत्संग। दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग में प्रेम। तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा और चौथी भक्ति यह है कि कपट छोड़कर प्रभु श्री राम के गुणों का गान करना। राघव जी के मंत्र का जाप और उनमें दृढ़ विश्वास यह पांचवी भक्ति है। छठवीं भक्ति है इंद्रियों का निग्रह, अच्छा स्वभाव अच्छा चरित्र। सातवीं भक्ति है जगत को समभाव से भगवतमय दृष्टि से देखना, संतो को भगवान से भी ज्यादा मानना और आठवीं भक्ति है जो कुछ भी मिल जाए उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी दूसरों के दोषों को ना देखना। नवमी भक्ति है सरल होना, कपट रहित जीवन जीना। इस प्रकार प्रभु रामचंद्र माता शबरी को नवधा भक्ति का अनुपम उपदेश किया है। और पूंछा हे भामिनी यदि तुम जानकी की कुछ खबर जानती हो तो बताओ?

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