राम कथा हिंदी में लिखी हुई-80 ramayan katha hindi notes download
मंदोदरी
शोक प्रसंग
पति का सिर देखते ही मंदोदरी विकल और
मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर कर चिल्लाने लगी, बाल खुल गये देह का सँभाल न
रहा, अनेक प्रकार से छाती पीटती है और रोते हुए उसके प्रताप
का वर्णन करती है, हे नाथ! तुम्हारे बल से नित्य पृथ्वी
हिलती थी, चन्द्र और सूर्य तेजहीन हो जाते थे, शेष कमठ बोझ नहीं सह सकते थे, आज वही शिर धूल से भरा
हुआ पृथ्वी पर पड़ा है, वरुण कुबेर इन्द्र और वायु युद्ध में
कोई धैर्य धारण न कर सका, भुजा के बल से हे स्वामिन ! तुमने
काल और यम को जीता सो आज अनाथ की भाँति पड़े हो ।
तुम्हारी राम के विमुख ऐसी दशा हुई
कि कुल में कोई रोने वाला न रहा।सब स्त्रियों को रोते देख विभीषण को बड़ा दुःख
हुआ। भाई रावण की दशा देख विभीषण अत्यन्त दुःखित हुए। रामजी के आज्ञा से लक्ष्मणजी
ने जाकर उनको समझाया,
समझाने पर उनका मोह गया और उनके साथ प्रभु के पास आये ।
प्रभु ने कृपा दृष्टि से विभीषण को
देखकर कहा कि सब शोक छोड़कर क्रिया करो, प्रभु की आज्ञा मानकर देश
और काल का मन में विचार करके, विधिवत् रावण की क्रिया की।
मंदोदरी आदि रानियाँ उसे तिलांजलि देकर रामजी के गुणग्रामों का मन में वर्णन करती
घर चली गईं।
विभीषण
राज्य प्रसंग
सज्जनों विभीषण प्रभु के पास आए तब
उन्होंने लक्ष्मण भैया,
अंगद , हनुमान, जामवंत
सबको भेज करके कहा कि तुम जाकर महाराज विभीषण का राजतिलक कर दो। पिता जी के वचनों
के कारण मैं नगर में नहीं आ सकता। सबने जाकर तिलक का
आयोजन किया, आदर के सहित सिंहासन पर विभीषण को बिठाया,
तिलक किया और स्तुति करने लगे। फिर सभी विभीषण सहित श्रीरामजी के
पास आ जाते हैं।
सीता रघुवर
मिलन
प्रभु श्री रामचंद्र जी के कहने पर
महाराज विभीषण,
हनुमान, अंगद आदि के साथ माता जानकी को प्रभु
राघव के पास लाते हैं। मार्ग में सभी वानर भालू मां जानकी के दर्शन के लिए खड़े
हैं। उस समय आकाश से देवताओं ने बहुत पुष्प बरसाए हैं। यहां प्रभु राघव ने एक लीला
की।
सीता
प्रथम अनल महुँ राखी। प्रगट कीन्हि चह अंतर साखी।।
माता जानकी के असली स्वरूप को पहले
प्रभु ने अग्नि में रखा था अब भगवान उनको प्रकट करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने
माता जानकी को अग्नि में प्रवेश करके उनके पास आने के लिए कहा।
तेहि
कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद।
सुनत जातुधानीं सब लागीं करै बिषाद।।
प्रभु के वचनों को सुनकर के सभी दुखी
हो गए। लेकिन माता- सीता अग्नि में सहर्ष प्रवेश करती हैं, प्रतिबिम्ब
नष्ट होकर वास्तविक सीता प्रकट हो जाती हैं इस रहस्य को राम-सीता के अतिरिक्त उस
समय कोई नहीं समझ पाता है।
श्रीखंड
सम पावक प्रबेस कियो सुमिरि प्रभु मैथिली।
जय कोसलेस महेस बंदित चरन रति अति निर्मली।।
प्रतिबिंब अरु लौकिक कलंक प्रचंड पावक महुँ जरे।
प्रभु चरित काहुँ न लखे नभ सुर सिद्ध मुनि देखहिं खरे।।
सीता अग्नि से बाहर निकलकर चरणारविंद
में प्रणाम करती है। देवता फूलों की वर्षा करते हैं। श्रीरामजी की आज्ञा पाकर मातलि चरणों में सिर नवाकर चले गये।
इसके बाद बंधु माताओं सभी देवताओं को
साथ में लिए ब्रह्मा जी प्रभु राघव की स्तुति करने लगे। आइये हम भी बड़े भाव के
साथ प्रभु की स्तुति गायें-
जय राम सदा
सुखधाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे।।
भव बारन दारन सिंह प्रभो। गुन सागर नागर नाथ बिभो।।
तन काम अनेक अनूप छबी। गुन गावत सिद्ध मुनींद्र
कबी।।
जसु पावन रावन नाग महा। खगनाथ जथा करि कोप गहा।।
जन रंजन भंजन सोक भयं। गतक्रोध सदा प्रभु बोधमयं।।
अवतार उदार अपार गुनं। महि भार बिभंजन ग्यानघनं।।
अज ब्यापकमेकमनादि सदा। करुनाकर राम नमामि मुदा।।
रघुबंस बिभूषन दूषन हा। कृत भूप बिभीषन दीन रहा।।
गुन ग्यान निधान अमान अजं। नित राम नमामि बिभुं बिरजं।।
भुजदंड प्रचंड प्रताप बलं। खल बृंद निकंद महा कुसलं।।
बिनु कारन दीन दयाल हितं। छबि धाम नमामि रमा
सहितं।।
भव तारन कारन काज परं। मन संभव दारुन दोष हरं।।
सर चाप मनोहर त्रोन धरं। जरजारुन लोचन भूपबरं।।
सुख मंदिर सुंदर श्रीरमनं। मद मार मुधा ममता समनं।।
अनवद्य अखंड न गोचर गो। सबरूप सदा सब होइ न गो।।
इति बेद बदंति न दंतकथा। रबि आतप भिन्नमभिन्न जथा।।
कृतकृत्य बिभो सब बानर ए। निरखंति तवानन सादर ए।।
धिग जीवन देव सरीर हरे। तव भक्ति बिना भव भूलि परे।।
अब दीन दयाल दया करिऐ। मति मोरि बिभेदकरी हरिऐ।।
जेहि ते बिपरीत क्रिया करिऐ। दुख सो सुख मानि सुखी चरिऐ।।
खल खंडन मंडन रम्य छमा। पद पंकज सेवित संभु उमा।।
नृप नायक दे बरदानमिदं। चरनांबुज प्रेम सदा सुभदं।।
यह स्तुति ब्रह्माजी द्वारा मर्यादा
पुरुषोत्तम श्रीराम जी के दिव्य गुणों, करुणामय स्वभाव और विश्वरूप
का वर्णन करती है। श्रीराम सदा सुखदायी, धनुष-बाण धारण कर
संसार के भव-बंधनों को काटने वाले सिंह समान प्रभु हैं। वे गुणों के सागर हैं।
उनका रूप अनुपम है।
जिस प्रकार सूर्य की किरणें जल को
वाष्पित कर देती हैं,
वैसे ही राम-नाम संसार के समस्त दुखों को भस्म कर देता है।
ब्रह्माजी प्रार्थना करते हैं कि प्रभु अपनी दया दृष्टि से भक्तों की अज्ञानजनित
भ्रांतियाँ दूर करें, उन्हें सद्बुद्धि दें और अपने पद-कमलों
के प्रति अनन्य प्रेम बनाए रखें, क्योंकि यही सभी मंगलों का
मूल है।
इस प्रकार ब्रह्मा जी स्तुति कर सभी
देवताओं के साथ अपने-अपने लोक को चले गए। सज्जनों राम जी की यह
कथा वेदों द्वारा प्रतिपादित सनातन सत्य है। जिसमें विपरीत परिस्थितियों में भी
धैर्य, नीति और प्रेम की विजय का संदेश निहित है।
श्रीराम
दशरथ समागम
तेहि
अवसर दशरथ तहँ आए । तनय बिलोकि नयन जल छाये ॥
अनुज
सहित प्रभु बंदन कीन्हा। आसिरवाद पिता तब दीन्हा।।
इसी समय दशरथ जी वहां आए पुत्र श्री
राम जी को देखकर उनके नेत्रों से प्रेम के आंसू बह चले। छोटे भाई लक्ष्मण सहित
प्रभु ने उनके चरण वंदना की। तब दशरथ जी ने उनको आशीर्वाद दिया। प्रभु श्री राम ने
कहा कि हे पिताजी यह सब आपके पुण्यों का प्रभाव है जो मैंने अजेय राक्षषराज रावण
को जीत लिया। पुत्र के वचन सुनकर उनको बड़ी प्रसन्नता हुई।
शिवजी उमा से कहते हैं उमा ! दशरथ ने
भेद भक्ति में मन लगाया था इसलिये मोक्ष नहीं पाया। और-
सगुनोपासक
मोच्छ न लेहीं। तिन्ह कहुँ राम भगति निज देहीं।।
बार बार करि प्रभुहि प्रनामा। दसरथ हरषि गए सुरधामा।।
सच्चिदानंदमय दिव्यगुणयुक्त सगुण स्वरूप की उपासना करने वाले भक्त इस प्रकार का मोक्ष
लेते भी नहीं। उनको श्री राम जी अपनी भक्ति देते हैं। प्रभु को इष्ट बुद्धि से
बार-बार प्रणाम करके दशरथ जी हर्षित होकर देवलोक को चले गए।
सज्जनों इसके बाद प्रभु श्री राम जी
के चरणों में विभीषण ने प्रार्थना किया
उज्वल यश
तिहुँ लोक में,
फैला चारु चरित्र ।
नाथ विभीषण
भवन भी,
चलकर करें पवित्र ॥
ऐसा सुन राम जी विभीषण से कहने लगे-
हे सखे मैने 14
वर्ष वन में रहने का संकल्प किया है इसलिए नगर प्रवेश नहीं कर सकता।
तुम्हारा घर, तुम्हारा कोष सब मेरा ही है। इस
समय भरत की दशा याद करके मुझे एक-एक पल कल्प के समान बीत रहा है। हे सखा वही उपाय
करो जिससे मैं जल्दी से जल्दी उन्हें देख सकूं। क्योंकि-
बीतें
अवधि जाउँ जौं जिअत न पावउँ बीर।
सुमिरत अनुज प्रीति प्रभु पुनि पुनि पुलक सरीर।।
यदि अवधि बीत जाने पर मैं जाता हूं
तो अपने भाई भरत को जीता नहीं पाऊंगा। विभीषणजी रामजी के बचन सुनकर हर्षित होकर
कृपाधाम के चरण पकड़ लिये,
और घर जाकर विमान को मणि वस्त्र भूषणों में भरवाया। पुष्पक विमान
लेकर प्रभु के सामने रखा।
कृपासिंधु ने हँसकर कहा, हे
सखा विभीषण! विमान में चढ़कर आकाश में जाकर मणि वस्त्र की वर्षा करो, तब विभीषण ने आकाश में जाकर मणि और वस्त्रों को वर्षा दिया। जिसे जो देखने
में अच्छा लगता है, वही बंदर लेते हैं और मणि को मुख में
डालकर उगल देते हैं। राम सीता छोटे भाई सहित देखकर हँस रहे हैं, कृपा निकेता परम कौतुकी हैं।
बंदर भालुओं ने गहने कपड़े पाये तो
उन्हें पहन कर रामजी के पास आए, प्रभु ने देखकर सब पर दया की और कहने
लगे- अब तुम सब अपने-अपने घर को जाओ। उनको घर की इच्छा
नहीं, परंतु प्रभु की प्रेरणा से सब वानर भालू श्री राम जी
के रूप को हृदय में रखकर और अनेकों प्रकार से विनती करके हर्ष और विषाद सहित घर को
चले।
वानरराज सुग्रीव, नील,
जांबवान, अंगद, नल और
हनुमान जी तथा विभीषण यह भी प्रभु के साथ जाना चाहते हैं लेकिन बोल नहीं पाते। वे
प्रभु के प्रेम में मग्न हैं प्रभु को छोड़ना नहीं चाहते।
अतिसय
प्रीति देख रघुराई। लिन्हे सकल बिमान चढ़ाई।।
मन
महुँ बिप्र चरन सिरु नायो। उत्तर दिसिहि बिमान चलायो।।
चलत
बिमान कोलाहल होई। जय रघुबीर कहइ सबु कोई।।
परम प्रीति देखकर राम उन्हें विमान
पर बिठा लेते हैं जामवंत,
सुग्रीव, नल, नील आदि और
हनुमान, विभीषण जी के सहित विमान से चले । विमान को उत्तर
दिशा की ओर चलाया, राम सीता से बोले- तीर्थराज प्रयाग को देखो जिसके दर्शन से अनेक जन्म के पाप भागते हैं।
हर्षित होकर पुन: प्रयागराज आकर त्रिवेणी में स्नान किया और बंदरों के सहित
ब्राह्मणों को अनेक प्रकार के दान दिये। प्रभु ने प्रयागराज में हनुमानजी को
समझाकर कहा-
समाचार
हनुमान कहो,
अवध पुरी में जाय ।
कुशल भरत
शत्रुहन की मुझे सुनाओ आय ॥
हनुमानजी ब्राह्मण वेश में श्री भरत
लाल जी तक रघुवर के आने का समाचार कहने के लिए चल पड़े पड़े। तब प्रभु भरद्वाज जी
के पास गये,
मुनि ने नाना प्रकार से स्तुति करके आशीर्वाद दिया। सीताजी ने
गंगाजी की पूजा की।
बंधु माताओं यहां भगवान के तट पर
उतरने की बात सुनते ही निषादराज प्रेम से आकुल होकर निकट आया, प्रभु
को जानकी के साथ देखकर वह पृथ्वी पर गिर पड़ा उसे शरीर की सुधि न रही उसकी परम
प्रीति देख राम ने उसे हृदय से लगा लिया और अत्यंत निकट बैठाकर उसका कुशल मंगल
पूछा। तब निषाद राज ने प्रभु के चरणों में यही भाव रखा-
अब
कुशल पद पंकज बिलोकि विरंचि शंकर सेव्यजे ।
सुखधाम
पूरन काम राम नमामि राम नमामि ते ॥
मैं आपके चरणों में बारम्बार नमस्कार
करता हूँ ।