barah jyotirling story / 12 ज्योतिर्लिंगों की कथा

*  ज्योतिर्लिंग  :  ज्योति की महिमा  *

हिमालय की कांगड़ा घाटी में ज्वालामुखी नामक एक दिव्य स्थान है , साक्षात परमेश्वर - शुभशंकर -
शंकर जी उस तेजोमय ज्योति के रूप में प्रकट हुए हैं | उस पवित्र ज्योति के दर्शन के लिए भक्त गणों का वहां तांता लगा रहता है , ज्योति का यह चमत्कार अनेक स्थानों पर दिखाई देता है उन स्थानों पर दर्शन के हेतु  मेंले  लगते हैं |

वे स्थान निम्न प्रकार हैं :- 

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्री शैले मल्लिकार्जुनम् |
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम् ||
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम् |
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ||
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमी तटे |
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ||
महादेव जी के अर्थात शंकर भगवान के बारह ज्योतिर्लिंग के तेजोमय और पवित्र स्थानों की महिमा अनोखी है , सभी ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु भक्तों की कतारें लगी रहती है | अति प्राचीन समय में यह स्थान संभवत उसी ज्वालामुखी की तरह ही रहे होंगे परंतु अब वहां भव्य शिव मंदिरों का निर्माण हुआ है |
सागर तट पर दो , नदी के किनारे पर तीन , पर्वतों की ऊंचाई पर चार और मैदानी प्रदेशों में गांव के पास तीन इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंग बिखरे हुए रूप में दिखाई देते हैं हर स्थान का वर्णन साक्षात्कार के साथ अनेक लोगों ने किया है | शिव स्थानों के दर्शन से हमारा जीवन पुण्यमय सुखी तथा कृतार्थ हो जाता है , यह श्रद्धा है और अनुभव भी है |

बारह ज्योतिर्लिंग

 यद्यपि पृथ्वी में विद्यमान लिंग असंख्य हैं तथापि प्रधान ज्योतिर्लिंग द्वादश है --
 सौराष्ट्र में सोमनाथ ,  श्रीशैल में मल्लिकार्जुन , उज्जैन में महाकाल , विंध्य प्रदेश में ओमकारेश्वर ,  हिमालय श्रृंग पर केदार , डाकिनी में भीम शंकर , वाराणसी में विश्वेश , गोमती तट पर त्र्यंबक , चिता भूमि में वेद्यनाथ , अयोध्या के दारुक वन में नागेश , सेतुबंध में रामेश्वर और देव सरोवर में घुश्मेंष |
 प्रातः काल उठकर इन द्वादश ज्योतिर्लिंग का स्मरण करने से आवागमन के चक्र से मुक्ति मिल जाती है , इनकी पूजा से सभी वर्णों के लोग के दुखों का नाश हो जाता है  |
आइए अब एक एक करके 12 ज्योतिर्लिंग की महिमा को जाने | उनकी कथा:-

1.  सौराष्ट्र में सोमनाथ  


सौराष्ट्र देशे विशदेतिरम्ये
           ज्योतिर्मयं चंद्रकलासतंसम् |
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं
            तं सोमनाथं शरणं प्रपद्यते || 

जय सोमनाथ , जय सोमनाथ

 इस जयघोष से गुजरात में सौराष्ट्र की वेरावल बंदरगाह का और प्रभासपट्टण इस गांव का परिसर गूंज उठता था , साथ-साथ मंदिर घाट की सीढ़ियों पर आकर टकराने वाली समुद्री लहरों से जैसे की जय शंकर  - जय शंकर यह निकलने वाली धीर गंभीर आवाज और स्वर्ण घंटा नाद से निकलने वाला ओम नमः शिवाय - ओम नमः शिवाय जय घोष से सारा परिसर भक्तिमय बन जाता था |
मंदिर की वह विशाल स्वर्ण घंटा दो सौ  मन सोने की थी और मंदिर के छप्पन खंभे - हीरे , माणिक्य ,पाचूख्वैडूर्य आदि रत्नों से जड़े हुए थे |
मंदिर के गर्भाशय में रत्न दीपों की जगमगाहट रात दिन रहती थी और कनौजी इत्र से नंदादीप हमेशा प्रज्वलित रहता था , भंडार गृह में अनगिनत द्रव्य सुरक्षित रहता था |


भगवान की पूजा अभिषेक के लिए हरिद्वार प्रयाग काशी से गंधोदक हर रोज लाया जाता था , कश्मीर से फूल आते थे , नित्य की पूजा के लिए एक हजार ब्राम्हण गण नियुक्त किए थे , मंदिर के दरबार में चलने वाले नृत्य गायन के लिए लगभग साढे तीन सौ नृक्तांगनायें नियुक्त की थी |
इस धार्मिक संस्थान को दस हजार गांव का उत्पादन इनाम के रूप में मिलता था |.श्री शंकर जी के बारह ज्योतिर्लिंग में से सोमनाथ को आदि ज्योतिर्लिंग माना जाता है |

 यह स्वयंभू देवस्थान होने के कारण और हमेशा जागृत होने के कारण लाखों भक्तगण यहां आकर पवित्र पावन बन जाते थे | भक्त गणों द्वारा समर्पित करोड़ों रुपयों की धन-दौलत से देवस्थान का भंडार सदा भरा-भरा रहता था | साथ ही अग्नि पूजक विदेशी व्यापारी लोगों ने अपने मुनाफे में से कुछ रकम इस पवित्र देवता के भंडार में समर्पित कर संपत्ति में अनगिनत वृद्धि की थी|
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