महर्षि वशिष्ठ की क्षमा / विश्वामित्र जी कैसे राजर्षि से ब्रह्मर्षि पद को प्राप्त किए

     महर्षि वशिष्ठ की क्षमा  

विश्वामित्र जी कैसे राजर्षि से ब्रह्मर्षि पद को प्राप्त किए ?


मुझे ब्रह्मर्षि होना है---  होना ही है ! विश्वामित्रजी का आग्रह इतना प्रबल था कि सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी भी असमंजस में पड़ गए थे | जिसमें दृढ़ निश्चय है , प्रबल उद्योग है , अनिवार्य उत्साह है----अलभ्य उसके लिए कुछ रह कैसे सकता है |
       समस्या फिर भी सरल नहीं थी | ब्रह्माजी भी किसी को ब्रह्मर्षि घोषित नहीं कर सकते थे---करना नहीं चाहते थे , यही ठीक जान पड़ता है | उन्होंने भी यही निर्णय दिया--- 'महर्षि वशिष्ठ यदि ब्रह्मर्षि  मान लें तो विश्वामित्र ब्रह्मर्षि हुए |
    विश्वामित्र थे जन्म से छत्रिय--- परम प्रतापी नरेश | उन्होंने झुकना सिखा नहीं था | जिस वशिष्ठ की प्रतिद्वन्द्विता में क्षत्रियत्व से उठकर ब्राह्मण होने का निश्चय करना पड़ा उन्हें , उसी वशिष्ठ के सामने वे झुकें ? यह बात तो मन में ही नहीं आई उनके | उन्होंने तो प्रयत्न से---- गौरव से प्राप्त करना सीखा था |

    कठोर तप--- असाध्यको साध्य करने का एक ही मार्ग शास्त्रों पर श्रद्धा करने वाला जानता है |  महा तापस विश्वामित्र का तप--- त्रिलोकी के आधीश्वरों ने भी ऐसा तपस्वी मानव कदाचित् ही देखा हो | अनेक विघ्न आए , अनेक बार तप भंग हुआ--- अथक था वह उद्योगी |
तपस्या भी असमर्थ रही | तपस्या से भगवान शिव तक को प्रसन्न कर लिया और अकल्पनीय दिव्यास्त्र मिले; किंतु वशिष्ठ के ब्रह्म तेज ने उन्हें पतिहत कर दिया | तपस्या ने नवीन सृष्टि करने तक की सामर्थ्य दे दी | भले ब्रह्माजी की आज्ञा का सम्मान करके सृष्टि कार्य आरंभ में ही रोक दिया गया हो | सब हुआ; किंतु वशिष्ठ ने 'राजर्षि कहना नहीं छोड़ा |

विश्वामित्र में क्रोध जाग उठा | उन्होंने वशिष्ठ जी के सभी पुत्रों को राक्षस के द्वारा मरवा दिया |    वशिष्ठ सब कुछ जान कर भी शांत रहें | मैं वशिष्ठ को ही समाप्त कर दूंगा ! प्रतिहिंसा सीमापर पहुंच गई |
सम्मुख आक्रमण करके  विश्वामित्र बार बार मुंह की खा चुके थे | अस्त्र-शस्त्र लेकर रात्रि के समय छिपकर वशिष्ट जी के आश्रम में जाना था उन्हें | रात्रि के समय वे पहुंच गए हत्या का घोर संकल्प लेकर |

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पूर्णिमा की रात्रि , निर्मल गगन , शुभ्र ज्योत्सना का विस्तार , कुसुमित कानन | प्रकृति शांत हो रही थी | महर्षि वशिष्ठ अपनी पत्नी अरुंधति जी के साथ कुटिया से बाहर एक वेदिका पर विराजमान थे |

  'कितनी स्वच्छ , कितनी निर्मल ज्योत्सना है ! अरुंधती ने कहा |

   वशिष्ठ जी ने कहा हां देवी | यह चंद्रिका दिशाओं को उसी प्रकार उज्जवल कर रही है ,  जैसे आजकल विश्वामित्र की तपस्या का तेज ! बड़ी शांत मधुर वाणी थी महर्षि वशिष्ठ की |

        ' विश्वामित्र की तपस्या का तेज ! वृक्षों के झुरमुट में छिपा एक मनुष्य चौंक गया | एकांत में अपनी पत्नी से अपने शत्रु की महिमा को इस सच्चाई से प्रकट करने वाले ये महापुरुष !

  और इनकी हत्या का संकल्प लेकर रात्रि में चोर की भांति छिपकर आने वाला मैं पुरुषाधम...!

    महात्मा के हृदय का परिचय मिलते ही प्रतिहिंसा पूर्ण ह्रदय बदल गया | नोच फेंके अस्त्र-शस्त्र उस पुरुष ने शरीर पर से और दौड़कर वेदी के सम्मुख भूमि पर गिर पड़ा-----
" मुझ अधम को क्षमा करें | स्वर पहिचाना हुआ था , भले आकृति ना दीख पड़ी हो | अरुंधती जी चकित हो गई | महर्षि वशिष्ठ वेदी से कूद पड़े और चरणों में पड़े व्यक्ति को उठाने के लिए झुकते हुए उन्होंने स्नेह पूर्ण कंठ से पुकारा-----  ब्रह्मर्षि विश्वामित्र !

शस्त्र त्यागकर , नम्रता और क्षमा को अपनाकर आज विश्वामित्र ब्रह्मर्षि हो गए थे |

Drishtant Bhagwat

👉 हम सभी को भी नम्रता और क्षमा को अपनाना चाहिए !

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