यह भी न रहेगा / जीवन की अटल सच्चाई , इसे हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा / आत्म तत्व को पहचानो / motivational story

जीवन की अटल सच्चाई , इसे हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा ?

      ✳  यह भी न रहेगा  ✳

मेरे एक मित्र हैं | उन्होंने अपनी मेज पर कुछ दिनों से एक आदर्श वाक्य रख लिखा था | 
वाक्य इतना ही था-- ' यह भी ना रहेगा |
बात कितनी सच्ची , कितनी कल्याणकारी है-- यदि हृदय में बैठ जाए | संसार का प्रत्येक अणु गतिशील है | परिवर्तन---- निरंतर परिवर्तन हो रहा है यहां |

हमारा यह शरीर--- इस शरीर को हम अपना कहते हैं , किंतु कहां है हमारा शरीर ?
हमारा शरीर कौन-सा ?
     एक शरीर माता के गर्भ में-- बहुत छोटा , बहुत सुकुमार , मांस का एक पिंड मात्र | जन्म के पश्चात शिशु का शरीर क्या उस गर्भस्थ शरीर के सामान रह गया ? क्या वह गर्भस्थ शरीर बदल नहीं गया ? 
बालक शरीर--- आप कहते हैं कि बालक युवा हो गया | क्या युवा हो गया जो बालक में था और युवक में है | शरीर युवा हुआ ? बालक के शरीर की आकृति के अतिरिक्त युवक के शरीर में और क्या है , बालक के शरीर का ? 

आकृति-- तब क्या मोम,  मिट्टी , पत्थर आदि से वैसी ही कोई आकृति बना देने से उसे आप बालक का शरीर कह देंगे ? 

युवक वृद्ध हो गया | युवक की देह से वृद्धि की देह में क्या गया या क्या घट गया ? वह युवक देह ही वृद्धि हुई--- यह एक धारणा नहीं है तो क्या है|
विज्ञान कहता है-- शरीर का प्रत्येक अणु साडे़ तीन वर्ष में बदल जाता है | आज जो शरीर है , साढ़े तीन वर्ष बाद उसका एक कण भी नहीं रहेगा | लेकिन देह तो रहेगी और जैसे हम आज इस देह को अपनी देह कहते हैं , उस देह को भी अपनी देह कहेंगे |

शरीर में व्याप्त जो चेतन तत्व है-- उसकी चर्चा ही व्यर्थ है | वह तो अविनाशी है | लेकिन देह--- देह तो परिवर्तनशील है | वह प्रत्येक क्षण बदल रही है | जी हां-- प्रत्येक क्षण | मल , मूत्र , कफ , स्वेद , नख , रोम आदि के मार्ग से ,और श्वास से और जो भी आप प्रत्यक्ष देखते हैं कि चर्म बदलता रहता है | 
अस्थि तक प्रतिक्षण बदल रही है | नवीन कण रुधिर , मांस , मज्जा , स्नायु एवं अस्थि आदि में स्थान ग्रहण करते हैं---- पुराने कण हट जाते हैं |  वे किसी मार्ग से शरीर से निकल जाते हैं | 

जैसे नदी की धारा प्रवाहित हो रही है--- जल चला जा रहा है | क्षण-क्षण नवीन जल आ रहा है | वही नदी , वही धारा--- भ्रम ही तो है |समस्त संसार क्षण-क्षण बदल रहा है| कुछ 'वही'नहीं है|
गर्भ में जो देह थी , बालक में नहीं है | बालक की देह--- युवक की वही देह नहीं है | युवक की देह  ही वृद्ध देह हुई--- यह केवल भ्रम है | सब अवस्थाएँ बदल रही हैं | वृद्ध मर गया-- हो क्या गया | शरीर तो बदलता रहा था , फिर बदल गया | आकृति का कुछ अर्थ नहीं है और जीव-- वह तो अविनाशी है | 
व्यर्थ है शरीर का मोह | व्यर्थ है मृत्यु का भय | जो नहीं रहता--- नहीं रहेगा वह | उस बदलने वाले  , नष्ट होने वाले अस्थिर , विनाशी का मोह व्यर्थ है |

   ( सच्चाई थोड़ा कड़वी है लेकिन सत्य है )

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