मान और धन की तुच्छता / ( विजय का त्याग , पारस का त्याग ) motivational story

     💥 मान और धन की तुच्छता 💥

नीचे दी गई दो motivational story जो आपका जीवन बदल देगीं !
( 1- विजय का त्याग )
वह दिग्विजय का युग था | राजाओं के लिए तो दिग्विजय का युग समाप्त हो गया था; किंतु विद्वानों के लिए दिग्विजय का युग था | संस्कृत के प्रतिभाशाली विद्वान बड़ी से बड़ी जो कामना कर सकते थे-----  दिग्विजय की कामना थी | वह दिग्विजय शस्त्रों से नहीं , पांडित्य से शास्त्रार्थ करके प्राप्त की जाती थी | 

ब्रज में एक विद्वान् दिग्विजय करते हुए पहुंचे | ब्रज के विद्वानों ने उनकी शास्त्रार्थ की चुनौती के उत्तर में कहा------  ब्रज में तो सनातन गोस्वामी और उनके भतीजे जीव गोस्वामी ही श्रेष्ठ विद्वान हैं | वे आपको विजय पत्र लिख दें तो हम सभी उस पर हस्ताक्षर कर देंगे | दिग्विजयी पहुंचे सनातन गोस्वामी के यहाँ | शास्त्रार्थ कीजिए या विजय पत्र लिख दीजिए ! उनकी सर्वत्र जो मांग थी , वही मांग वहां भी थी |

" हम तो विद्वानों के सेवक हैं | शास्त्रार्थ करना हम क्या जाने ? शास्त्र का मर्म कहां समझा है हमने | श्री सनातन जी गोस्वामी की नम्रता उनके ही उपयुक्त थी | उन्होंने दिग्विजयी को पत्र लिख दिया |
दिग्विजयी आनंद और गर्व से झूमते हुए लौटे | मार्ग में ही जीव गोस्वामी मिल गये | दिग्विजयी ने कहा-------     आपके ताऊ सनातन जी ने तो विजय पत्र लिख दिया है | आप उसी पर हस्ताक्षर करेंगे या शास्त्रार्थ करेंगे ? 

जीव गोस्वामी युवक थे और थे प्रकांड पंडित |  

नवीन रक्त----  अपने श्रद्धेय श्री सनातन गोस्वामी के प्रति दिग्विजयी का तिरस्कार भाव उनसे सहा नहीं गया | वे बोले----   मैं शास्त्रार्थ करने को प्रस्तुत हूँ | 
बेचारा दिग्विजयी क्या शास्त्रार्थ करता ? वह विद्वान था किंतु केवल विद्वान ही तो था | महामेधावी जीव गोस्वामी---   और फिर जिनपर ब्रज के उस नवयुवराज का वरदहस्त हो | उसकी उसकी पराजय कैसी ? दो-चार प्रश्नों में ही दिग्विजयी निरुत्तर हो गया | विजय पत्र उसने फाड़ फेंका | गर्व चूर हो गया | 

कितना दुखित होकर लौटा वह----   कोई कल्पना कर सकता है क्या | 
जीव गोस्वामी पहुंचे श्री सनातन जी के पास | दिग्विजयी की पराजय सुना दी उन्होंने | सुनकर सनातन जी के नेत्र कठोर हो गए | उन्होंने जीव गोस्वामी को झिड़कते हुए कहा--- जीव ! तुम तुरंत यहां से चले जाओ ! मैं तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहता | एक ब्राह्मण का अपमान किया तुमने | तुमसे भजन क्या होगा , जबकि तुममे इतना अहंकार है | 

किसी को विजयी स्वीकार कर लेने में बिगड़ता क्या है |

मान और धन की तुच्छता / ( विजय का त्याग , पारस का त्याग ) motivational story

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( 2- पारस का त्याग )

बहुत दूर बर्दवान से चलकर एक ब्राह्मण आया था ब्रज में | वह पूछता हुआ सनातन गोस्वामी के पास पहुंचा | उसे पारस पत्थर चाहिए | कई वर्ष से वह तप कर रहा था | भगवान शंकर ने स्वप्न में आदेश दिया था कि ब्रज में सनातन गोस्वामी को पारस का पता है , वहां जाओ | 

ब्राह्मण की बात सुनकर सनातन जी ने कहा---      मुझे अकस्मात् एक दिन पारस दिख गया | मैंने उसे रेत में ढक दिया कि आते जाते भूल से छू ना जाय | वहां उस स्थान पर खोदकर निकाल लो |
मैं स्नान कर चुका हूं | उसे छूने पर मुझे फिर स्नान करना पड़ेगा | 
निर्दिष्ट स्थान पर रेत हटाते ही पारस मिल गया | उससे स्पर्श होते ही लोहा सोना बन गया | ब्राह्मण का तप सफल हो गया | उसे सचमुच पारस प्राप्त हुआ---  अमूल्य पारस | जिससे स्वर्ण उत्पन्न होता है , उस पारस का मूल्य कोई कैसे बता सकता है |पारस लेकर ब्राह्मण चल पड़ा | कुछ दूर जाकर फिर लौटा और सनातन गोस्वामी के पास आकर खड़ा हो गया |

सनातन जी ने पूछा---  आपको पारस मिल गया ? 

जी पारस मिल गया | ब्राह्मण ने दोनों हांथ जोड़े---   लेकिन एक प्रश्न भी मिला उसके साथ | उस प्रश्न का उत्तर आप ही दे सकते हैं | जिस पारस के लिए मैंने वर्षों तक कठोर तप किया , वह पारस आपको प्राप्त था | आपने उस रेत में ढक दिया था और उसका स्पर्श तक नहीं करना चाहते थे | आपके पास पारस से भी अधिक मूल्यवान कोई वस्तु होनी चाहिए | क्या वस्तु है वह ?

" तुमको वह चाहिये ? सनातन गोस्वामी ने दृष्टि उठाई----  वह चाहिए तो पारस फेंको यमुना जी में | ब्राह्मण ने पारस फेंक दिया | उसे वह बहुमूल्य वस्तु मिली | वह वस्तु जिसकी तुलना में पारस एक कंकड़ जितना भी नहीं था | वह वस्तु---  श्री कृष्ण-नाम है |
मान और धन की तुच्छता / ( विजय का त्याग , पारस का त्याग ) motivational story

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