✳ श्री राम कथा ✳
( भूमिका )
इन दोनों युगल श्री सीता रामचंद्र भगवान के चरण कमलों में कोटि-कोटि नमन नतमस्तक वंदन एवं अभिनंदन, चारों भैया और चारों मैया को कोटि-कोटि प्रणाम ,अनंत बलवंत गुणवंत श्री हनुमान जी महाराज के चरणों में बारंबार नमस्कार समुपस्थित भगवत भक्त श्रीरामकथानुरागी सज्जनों आप सभी को भी कोटि-कोटि नमन |
सज्जनों- बाल्मीकि रामायण की कथा अतिशय रम्य है | यह सच है जितनी भी रामायण की रचना की गई सभी रामायणों में भगवान श्री राघवेंद्र के विषय में कुछ - कुछ है ! श्री भरत जी , लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न के रूपों में | देखिए परमात्मा के रूप अनेक है पर स्वरूप एक ही है |
अनेक रूप रूपा़य विष्णवे प्रभु विष्णवे |
साक्षात वेद का अवतार ही है | वेद के रामायण के रूप में अवतार लेने की आवश्यकता क्या पड़ी ? यदि आप वेदाध्ययन करने चलें तो आज के समय में( आज के परिवेश में ) वेद को पढ़ना समझना बड़ा कठिन सा लग रहा है |
लेकिन जैसे परमात्मा को समझना बड़ा कठिन सा होता है, भगवान के अवतार के बिना उनके विज्ञान को समझा नहीं जा सकता | उसी प्रकार जब तक वेद का अवतार नहीं हुआ तब तक वेद को भी ठीक से समझ पाना बड़ा कठिन था|
तौ जैसे भगवान अवतार लेकर इस धरा पर आए तो सबके लिए सरल हो गये ( सहज हो गए ) वह जाकर शबरी जी के यहां शबरी से मिले , कोल भील लोगों को भी मिले , केवट को भी मिले और बंदर भालू के लिए भी सहज हो गए |
उसी प्रकार जब भगवान वेद अवतार लेकर के रामायण के रूप में आए तो वह भी सबके लिए सरल हो गए | यह भगवान वेद का अवतार है वह श्री रामायण का अवतार लेकर इस धारा में पधारे , जीवन में ज्ञान की कितनी उपयोगिता है इसको बताने की जरूरत नहीं है |
और वेद का अर्थ ही होता है ज्ञान की राशि ( ज्ञान का पुंज ) विद ज्ञाने धातु से वेद शब्द निस्पंन्न होता है , लेकिन हम अल्प ज्ञानी जीव जो वेद को नहीं समझते वेद को सरलतम ढंग से समझाने के लिए दो प्रकार के ग्रंथों की रचना हमारे यहां हुई-- एक को इतिहास कहते हैं , दूसरे को पुराण कहते हैं !
इतिहास पुराणाभ्यां वेदाभ्यां समुप बृंहयेत् |
उभयोर्मध्ये इतिहासप्रबलः |
तो हमारे आचार्य कहते हैं कि- महाभारत की अपेक्षा हमें रामायण की कथा सुननी चाहिए ! रामायण का तात्पर्य है बाल्मीकि रामायण से , रामायण की कथा क्यों सुने इस पर बहुत सी बातें कही गई हैं अलग-अलग आचार्यों के द्वारा और वही आचार्य आगे लिखते हैं कि--
इतिहास श्रेष्ठेन कारागृहवासकतृय वैभवं मुच्यते |
काव्यं रामायणं कृत्स्नं सीतायां चरितं महत् |
यह तीन वियोग हुए और हमारे आचार्यों ने कहा है-- तीनों वियोग तीन कारण से हुये प्रथम वियोग- कृपापक्ष को प्रकाशित करने के लिए है , दूसरा वियोग- पारतंत्र को प्रकट करने के लिए और तीसरा वियोग- अनन्यार्हत को प्रकट करने के लिए है |
तो कृपा क्या है ? क्या रावण में इतनी सामर्थ्य थी कि जो जानकी जी का अपहरण कर - सीता जी को लंका ले जा सकता था ? मानस में तो गोस्वामी जी ने लिखा है- लक्ष्मण ने छोटी रेखा भी खींची थी |
रामानुज लघु रेख खिंचाई सो नहिं लांघइ अस मनुषाई |
आनुकूलस्य भक्तिः प्रातिकूलस्य मुक्तिः |
[आगें की कथा अगले भाग में पढ़ें]