श्री राम कथा हिंदी,बाल्मीकि रामायण से,भाग-2

✳ श्री राम कथा ✳

श्री राम कथा हिंदी,बाल्मीकि रामायण से,भाग-2
( भाग-2 )
जानकी जी ने अपने को लंका में बन्दनी क्यों बनाया , कहा रावण जैसे दुष्ट जीवों का भी उद्धार हो सके इसलिए |

जानकी जी की कृपा क्या है कहते हैं कि स्वयं को इसलिए बंधन में डाल दिया कि रावण जैसे दुष्ट व्यक्ति को मुक्ति दिला सकें , जानकी जी के वैभव का वर्णन जिस रामायण में हो वह रामायण श्रेष्ठ इतिहास है |

श्री राम कथा हिंदी,बाल्मीकि रामायण से,भाग-2

दूसरी बात कि महाभारत के सबसे बड़े पात्र हैं  भीष्म पितामह और रामायण का एक छोटा सा पात्र है नाम है जटायु , एक के जीवन में धर्म की अतिशय उत्कृष्टता है और दूसरे के जीवन में बहुत उत्कृष्ट धर्म दिखाई नहीं देता, वह मांस भक्षी पक्षी है |

और दोनों के जीवन में एक बार समान घटना घटी दोनों के आंखों के सामने एक स्त्री की लाज लूटी जा रही थी, लेकिन आप पाएंगे कि महाभारत के इस सबसे बड़े पात्र पितामह भीष्म ने एक स्त्री की लुटती हुई लाज का खड़े होकर के विरोध नहीं किया और रामायण के इस छोटे से पात्र ने रावण के रास्ते को रोक लिया और रोक कर के कहा-- रावण ' मैं जानता हूं तुम से युद्ध लडने में समर्थ नहीं हूं |

वृध्दोहं त्वमयुवाधन्वी शक्ती कवची शरी 

मैं बूढ़ा हूं तुम युवा हो, तुम रथ पर हो मैं बिरथ हूं, तुम अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित हो मेरे पास कोई अस्त्र शस्त्र नहीं है, तुम्हारे पास अनेकों युद्धों का अनुभव है , मैंने कोई बड़ी लड़ाई जीवन में नहीं लड़ी है |

लेकिन यह भारत वर्ष है भारत का बाप कितना भी बूढ़ा हो जाए लेकिन उसके आगें, आंखों के सामने कोई उसकी बेटी को हाथ नहीं लगा सकता और आप पाएंगे रामायण के इस छोटे से पात्र ने इस मांस भक्षी पक्षी ने एक स्त्री की लाज की रक्षा के लिए अपने प्राण उत्सर्जित कर दिए ,आत्मोत्सर्जित कर दिए |

रामायण के एक छोटे से छोटा पात्र भी अपने जीवन से शिक्षा देता है, इसलिए हमें रामायण की कथा सुननी चाहिए | देखिए काव्य की तीन कोटियां हमारे यहां बताई गई हैं-तीन प्रकार के काव्य होते हैं-एक शब्द प्रधान, दूसरा अर्थ प्रधान, तीसरा व्यंग प्रधान |

शब्द प्रधान काव्य वेद हैं, अर्थ प्रधान काव्य महाभारत आदि और व्यंग प्रधान काव्य है श्रीमद् बाल्मीकि रामायण, जो शब्द प्रधान काव्य होता है वह प्रभु सम्मित होता है ,जो अर्थ प्रधान काव्य होता है वह सुहृत संम्मित होता है और जो व्यंग प्रधान काव्य होता है वह कांता सम्मित होता है |

तो जो वेद हैं वह प्रभु सम्मित हैं, जो महाभारत आदि हैं सुहृत संम्मित हैं और जो बाल्मीकि रामायण है यह कांता संम्मित काव्य है |

जैसे- उपदेश तीन प्रकार के होते हैं ना , पहला प्रभु सम्मित उपदेश या स्वामी सम्मित उपदेश , सुहृत सम्मित, कान्ता सम्मित उपदेश|

अब इसे ऐसे समझें किसकी बात ज्यादा समझ में आती है कोई स्वामी समझाए यह बात समझ में आती है? कोई मित्र समझाएं वह बात ज्यादा समझ में आती है? या आपकी पत्नी समझाए वह बात ज्यादा समझ में आती है? जैसे भगवान वेद कहते हैं ना-

धर्मं चर सत्यं वद, आचार्य देवो भव, मातृदेवो भव, पितृ देवो भव|

यह सब आदेश आत्मक है धर्मं चर- धर्म पर चलो, सत्यं वद- सत्य बोलो, यह सब आदेशात्मक है, और सुहृत सम्मित है जैसे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता समझाई यह सुहृत संम्मित है , लेकिन जो बाल्मीकि रामायण में है यह कांता सम्मित उपदेश है | कांता समिति काव्य है | जो काव्य होते हैं कांता सम्मित होते हैं |

जैसे- पत्नी मीठी मीठी बातों के द्वारा अपने पति को समझाती है, वैसे यह का बड़े से बड़े सिद्धांतों को मीठे ढंग से समझा देती है | भगवत चरित्र का आश्रय लेकर के और हमारे एक आचार्य ने लिखा है कि शब्द प्रधान होने के कारण बाल्मीकि रामायण वेद की तरह है |

अर्थ प्रधान होने के कारण यह महाभारत और पुराणों आदि की तरह भी है और व्यंग प्रधान होने के कारण यह कांता सम्मित तो है ही , यह श्रेष्ठ काव्य है ही ( व्यंग का तात्पर्य है ) कि जहां एक शब्द कई अर्थों को व्यन्जित करते हों, अर्थ प्रगट करते हों  उसे व्यंग प्रधान कहते हैं |

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