श्री राम कथा हिंदी,बाल्मीकि रामायण से,भाग-3

✳ श्री राम कथा ✳

( भाग-3 )
हमारे भगवत अनंतपादी स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी ने श्रीशैलपूर्ण स्वामी जी से अठारह बार बाल्मीकि रामायण का अध्ययन किया और अठारहों बार उन्हें एक नए अर्थ की प्राप्ति हुई |

श्री गोविंद राज जी ने भूषण टीका में अधिकतम भगवत अनंतपादी स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी के भावों को सहेज कर के रखा है, एक अचार्य ने तो बाल्मीकि रामायण को द्वयमंत्र की व्याख्या स्वीकार की है |

श्रीमन्नारायण चरणौ शरणं प्रपद्ये श्रीमते नारायणाय नमः

वह कहते हैं श्रीमन्नारायण की व्याख्या बालकांड में , चरणों की व्याख्या अयोध्याकांड में, शरणम् की व्याख्या अरण्यकांड में , प्रपद्ये की व्याख्या किष्किंधा कांड में, श्रीमते की व्याख्या सुंदरकांड में, नारायण की व्याख्या लंकाकांड में और नमः की व्याख्या उत्तरकांड में की गई है |

श्री माननीय सीता जी नारायण श्रीमान कैसे हुये ? नारायणावतार भगवान श्री राघवेंद्र है जब श्री सीता जी से ब्याह हुआ उनका तो श्रीमन्नारायण हुए, तो बालकाडं में श्री सीता राम जी की विवाह की चर्चा है, इसीलिए श्रीमन्नारायण की व्याख्या बालकांड में की गई है |

चरणों की व्याख्या अयोध्या कांड में की गई है चरणों में द्विवचन का प्रयोग है दो लोगों की शरणागति का वर्णन है, भैया लक्ष्मण की शरणागति अयोध्या में हुई है और भैया भरत की शरणागति चित्रकूट में हुई |

मां जानकी को जो प्रभु ने कहा कि आप मेरे साथ चलो तो लखन भैया का हृदय स्पंदित होने लगा मैं सेवक हूं मैं कैसे कहूंगा कि राघव भैया मुझे भी साथ ले चलो तो जब कोई उपाय नहीं देखा तो महर्षि बाल्मीकि ने लिखा है--

साभ्रातुस्चरणौ गाढं निरूप्य रघुनन्दन

लखन भैया ने दोनों हाथों श्री भैया राघवेंद्र के चरणों को पकड़ लिए, जब जीव निरूपाय हो जाए तो एक मात्र उपाय बचता है भगवत शरणागति का और यहां पर शरणागति जब लखन भैया ने की तो राम जी उनको साथ ले गए और जब भैया भरत चित्रकूट में गए तो--

पादाव प्राप्ति रामस्य परात भरतौ रुधम्

पाहि नाथ कहि पाहि गोसाईं
भूतल परहिं लकुट की नाहीं |

तो चरणों की व्याख्या अयोध्या कांड में की और शरणम् की व्याख्या----
वैखानसाः बालखिल्याः सम्प्रक्षालाः मरीचिपाः
अस्मकुष्टास्य बहवः पत्राहाराश्च तामसाः ||

सारे ऋषि महात्मा आए भगवान की अंगुली पकड़े और कहते हैं प्रभु यह जो पहाड़ देख रहे हैं ना यह पत्थर मिट्टी के नहीं हैं , हम संतो के मांस को खाकर राक्षस यही हड्डियां फेंक देते हैं यह संतों की हड्डियों का पहाड़ है |

राम जी के नेत्र सजल हो गए, जो शरण में आया राम जी ने प्रतिज्ञा करी---
निसिचर हीन करहु मही भुज उठाय प्रण कीन्ह |
तो शरणम की व्याख्या अरण्यकांड में की गई और प्रपद्ये की व्याख्या किष्किंधा कांड में, प्रपद्य कहते हैं पांव पकड़ने वाले को | हनुमान जी राम जी को पीठ पर बिठाल कर लाए---

पृष्ठ मारोप्यितो वीरो जगाम कपि कुन्जराः |

जीवन में श्रेष्ठ सदगुरु मिल जाए तो भगवान को पीठ पर बिठा कर लाता है और जीव की शरणागति करा देता है और जब सुग्रीव जी ने शरणागति ग्रहण कर ली, सुग्रीव की रक्षा भई |
और पुनः श्रीमते की व्याख्या सुंदरकांड है- राम जी फिर श्रीहीन हो गए थे--
प्रिया हीन डरपत मन मोरा |
रावण जानकी जी का हरण कर लिया था और हनुमान जी ने आकर कहा---

नियतां अक्षतां देवी राघवाय निवेदयत

वह नियत है और अक्षिता है, फिर से श्रीमान राम जी हो गए | तो श्रीमते की व्याख्या सुंदरकांड में की गई नारायण के लिए ही हर कोई है, भगवान श्री राघवेंद्र ने रणक क्रीडा करी और इन सारे लंका के दुष्टों को अपने धाम में भेज दिया |

और फिर नमः की व्याख्या उत्तरकांड में है , देखिए- दोनों चाहे रामचरितमानस का उत्तरकांड हो, चाहे बाल्मीकि रामायण का इसमें भगवान के परत्व का प्रतिपादन किया गया है |

और नमः माने नमस्कार के योग्य शरणागति कुयोग्य एकमात्र भगवान राम ही हैं | इस बात को वहां पर सत्यापित किया गया है, तो आचार्यों ने इसको शरणागति की व्याख्या स्वीकार किया है | संसार के जितने भी काव्य हैं उन सारे काव्यों का उपजिव्य कोई है तो श्रीमद् बाल्मीकि रामायण है |

परवर्ति जितने भी साहित्य हैं सबको किसी ने प्रभावित किया है , चाहे वह पैराटाइज लास्ट हो (जार्ज मिल्टन की रचना है संभवतः) चाहे भाष्य हों, कालिदास हों, भारवि हों, माघ हों आगे चलकर कालिदास जी हों सबका जो उपजिव्य काव्य है वह श्रीमद् बाल्मीकि रामायण ही है |

समस्त साहित्यकारों को किसी की लेखनी ने सर्वाधिक प्रभावित किया है तो महर्षि बाल्मीकि की लेखनी ने ही प्रभावित किया है | श्री वेदव्यास जी ने तो बृहद धर्म पुराण में लिखा है---

पठरामायणं व्यासं काव्य बीजं सनातनम् |

जब मैंने उस सनातन काव्य के आदि बीज बाल्मीकि रामायण का स्वाध्याय किया तब हममें श्लोक बनाने की क्षमता आई ,यह श्री वेदव्यास जी ने स्वीकार किया है जो पुराणों के रचयिता हैं, वह वेदव्यास जी भी स्वीकार करते हैं कि हमारा उपजिव्य ग्रन्थ भी श्रीमद् बाल्मीकि रामायण ही है |

ऐसे भगवान श्री सीताराम जी के चरित्र से गुम्फित यह काव्य श्रीमद् बाल्मीकि रामायण है, बाल्मीकि रामायण का अतिशय महत्व है हमारे यहां बाल्मीकि रामायण को सिद्धांत ग्रंथ स्वीकार किया है |

निवेदन यह करना है कि जब यह वेदावतार है तो कोई यह अन्वेषण करे कि भाई वेद कब से हैं ? एक मन में विचार आता है तो यदि हम आप से पूछें कि बताइए कि आपकी स्वांस कब से है ? आप क्या कहेंगे- आपकी श्वांस कब से है , कहा जब से आप हैं तब से आपकी श्वांस है , सांस ना हो तो आप नहीं होंगे | तो वेद भगवान के स्वांस हैं-----
गोस्वामी जी भी कहते हैं--
जाकी सहज श्वांस श्रुति चारी
सोहरि पढहिं यह कौतुक भारी |
तो वेद भगवान के स्वांस है इसका मतलब जब से भगवान हैं तब से उनकी स्वांस है, तात्पर्य कि जब से भगवान हैं तब से वेद हैं तो हम लोग आज भी काल निर्धारण के चक्कर में पडते हैं कि वेदों का काल निर्धारण किया जाए कि वेद कब से हैं ?

दुनिया का कोई भी ऐतिहविद आज तक वेद का काल निर्धारण नहीं कर सका क्योंकि वह जिस काल में भी ढूंढते हैं उस काल में वेद पाए ही जाते हैंं तो यह वेद अनादि हैं |

ऐसा वेदावतार यह श्रीमद् बाल्मीकि रामायण है , हमारे आचार्यों ने इसमें खूब डुबकी लगाई खूब रसास्वादन किया समास्वादन किया |
रामायण कहते किसको हैं ?  तो पहले कहा पहले तो---

रामस्य अयनं रामायणम् |

राम जी का निवास हो वह रामायण है , जो राम जी का घर हो वह रामायण है, जिसमें राम जी निवास करे वह रामायण है |

श्रीरामस्य चरितान्वितं काव्यं रामायणम् |

जो श्री राम चरित्र से युक्त काव्य हो वह रामायण है , लेकिन एक आचार्य ने कहा कि यहां--
( अय गतौ धातु है ) और ल्युट का अन् होता है उससे रामायण शब्द बना |

श्री रामः अय्यते प्राप्ते येन तद् रामायणम् |
तो जो भगवान श्री राघवेंद्र की प्राप्ति करा दे उसे कहते हैं रामायण | यह समझने वाली बात है कि कथा रामायण की हो तो प्राप्ति राम जी की होनी चाहिए ( अथवा )

श्री रामः अय्यतेप्रतिपाद्यते अनेन तद रामायणम् |

जो भगवान श्रीराम का ही प्रतिपादन करें वह रामायण है ,माने कथा रामजी की हो तो प्रतिपादन भी भगवान श्री राम जी का होना चाहिए |

कभी-कभी ऐसा भी होता है की कथा रामायण की हो और उसमें चरित्र सारे भागवत वाले सुनाए जाते हैं, तो रामायण की कथा में जो प्रतिपादन हो वह राम चरित्र का हो अथवा एक तन्निश्लोकी का हमारे दाक्षणाचार्य हैं उन्होंने अर्थ किया है कि---
रमायाः इदं चरितं तद् रामम्
रामा माने जानकी जी के चरित्र को ही राम कहा जाता है---
रमायाः इदं चरितं रामं तस्यायनं रामायणम् |
मतलब जानकी जी के चरित्र से सम्प्रित्य जो गुम्फित जो काव्य हो उसी को कहा जाता है रामायण | इसीलिए महर्षि बाल्मीकि कहते हैं--

काव्यं रामायणं कृष्नं सीतायास्चरितं महत् |

का चरित्र से अच्छा, यहां महत विशेषण सीता जी का चरित्र का है , महत का राम जी के चरित्र में महत विशेषण नहीं लगा है, तो ऐसे ही श्री सीता चरित्र युक्त बाल्मीकि रामायण में हम सब प्रवेश करें |

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