श्री राम कथा हिंदी,बाल्मीकि रामायण से,भाग-4

✳ श्री राम कथा ✳

बाल्मीकि रामायण में राम जी के गुणों के विषय में प्रश्न किया गया

 और आरंभ में तो 16 गुणों की चर्चा महर्षि बाल्मीकि जी ने नारद जी से की और नारद जी ने 68 गुण और सुना दिए साथ में, सब 84 गुणों की चर्चा है |

और राम जी के गुणों की चर्चा उनके भक्तों में नहीं होगी तो कहां होगी हमारे राम भक्ति शाखा में रसिक संप्रदाय के संस्थापक स्वामी युगलानंद जी महाराज ने एक श्री रघुवर गुणदर्पण नाम का ग्रंथ लिखा है, उसमें उन्होंने लिखा है कि साधनावस्था में जीवो का अवलंबन तो भगवान के गुण ही होते हैं , सिद्धा वस्था में भले हम उनके रूप माधुर्य का स्वाद ले सकें लेकिन साधनावस्था में तो हमारा अवलम्बन ही भगवान के गुण ही हैं |

एक बात और कहूं आपसे- गोस्वामी जी ने धर्म के स्वभाव की व्याख्या बहुत की है, कोई गोस्वामी जी से पूछे आप जरा धर्म को परिभाषित करें तो एक जगह गोस्वामी जी कहते हैं--
धर्म न दूसर सत्य समाना
आगम निगम पुराण बखाना

सत्य के समान कोई दूसरा धर्म नहीं है और दूसरी जगह कहते हैं--

परहित सरिस धर्म नहिं भाई
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई
दूसरे के हित के समान कोई धर्म नहीं है यहां भी समान शब्द का प्रयोग करते हैं, यहां भी सरिस  शब्द का प्रयोग करते हैं | किसी ने पूछा कि महाराज आप निश्चित बात बताएं कि सत्य के समान कोई दूसरा धर्म नहीं है, कि परहित के समान कोई दूसरा धर्म नहीं है | तो संतो ने कहा कि यह सब धर्म के स्वभाव हैं, धर्म का स्वरूप क्या है ? तो महर्षि बाल्मीकि ने कहा- धर्म के स्वरूप को देखना है तो

रामो विग्रह वान धर्मः साधुः सत्यत्वास्त्तमः |

राम जी धर्म के विग्रह हैं, राम जी साक्षात धर्म के स्वरूप हैं, राम जी को देख लो धर्म को समझ जाओगे | राम जी का उठाना, चलना, बोलना, राम जी की जीवन की प्रत्येक क्रियाएं यहां तक शत्रु के साथ भी जो राम जी का व्यवहार है वह भी धर्म संश्लिष्ट है , वह भी धर्म युक्त है |

तो राम जी साक्षात धर्म के विग्रह हैं और एक बात और है धर्म को समझना हो तो हमारे यहां धर्म के 10 लक्षण बताए गए हैं |
धृति क्षमादमोस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः |
भिविद्या सत्यमक्रोधो दशको धर्मलक्षणम् ||
ये 10 चीजें जिनमें हो तो आप समझिए वास्तव में  वह धार्मिक है | आप पाएंगे कि रावण के दस सिर तो हैं, लेकिन यह धर्म के दस लक्षण दिखाई नहीं दे रहे हैं , बहुत से लोग तो रावण को भी बड़ा धार्मिक स्वीकार करने को तैयार होते हैं रावण में दस सिर हैं लेकिन रामजी में दश लक्षण हैं |

इसको आप समझेंगे धर्म के समस्त लक्षण भगवान श्री राघवेंद्र के जीवन में परिघटित होते दिखाई देते हैं | इसलिए श्री बिंदुपाद जी ने बड़ी सुंदर रचना की है कि यदि धर्म को सच्चे अर्थ में समझना हो और धर्म पर चलना हो तो सबसे पहले आपको रामायण की कथा सुननी चाहिए , क्योंकि निज धर्म को समझाने की क्षमता तो रामायण की ही पंक्तियों में है |

बिंदुपाद के शब्दों में हम लोग देखें निज धर्म पर तो रामायण ही चलना सिखाती है, गोस्वामी श्री बिंदु पाद जी ने अपने शब्दों में यह बात कही--
हमें निज धर्म पर चलना बताती रोज रामायण
सदा शुभ आचरण करना सिखाती रोज रामायण
धर्म को समझना हो तो हमें रामायण की कथा समझनी पड़ेगी, आइए श्री बाल्मीकि रामायण में प्रवेश करते हैं क्योंकि हम समय की व्यस्तता को समझते हैं बहुत कम समय है यह प्रथम दिन की कथा है तो प्रवेश हो जाए, क्योंकि बाल्मीकि रामायण में दूसरे दिन ही राम जी का जन्म होता है , तो दूसरे दिन की कथा में तो अयोध्या के राजमहल में जन्मोत्सव मनाया जाएगा |

तो यथा किचिंत थोड़ा सा प्रवेश हम लोग करलें देखिए बाल्मीकि रामायण का आरंभ ऋषियों के संवाद से आरंभ होता है, महर्षि बाल्मीकि वर्णन कर रहे हैं---
ॐ तपः स्वाध्याय निरतं तपस्वी वाग्विदां वरम् |
नारदं परिपप्रक्ष वाल्मीकिर्मुनिपुङ्गवम् ||
ॐ तपः स्वाध्याय निरतं ॐ लगाया है वेद मंत्रों में जैसे ॐ लगता है, वैसे बाल्मीकि रामायण के भी आरंभ में ॐ है ,प्रणव शब्द | तपः स्वाध्याय निरतं , देखिए तवर्ण से बाल्मीकि रामायण का आरंभ होता है और अद्भुत बात यह है कि त अक्षर पर ही बाल्मीकि रामायण का अंत भी होता है |

जगाम त्रिदिवं महत,  तकार से आरंभ और तकार से अंत , बाल्मीकि रामायण में चौबीस हजार श्लोक हैं, आप सभी लोग ब्रह्म गायत्री से परिचित होंगे ब्रह्म गायत्री में भी चौबीस ही अक्षर होते हैं | ॐ यह प्रणव है भुः भुवः स्वः यह तीन व्याघ्रतियां हैं, मंत्र का आरंभ होता है- तत्सवितुर्वरेण्यं-  तकार से आरंभ होता है और प्रचोदयात के तकार पर मंत्र का अंत होता है | जैसे ब्रह्म गायत्री का आरंभ त से हो कर ता पर अंत होता है वैसे ही,,,

बाल्मीकि रामायण का आरंभ भी त से होता है और ता से ही अंत होता है |

जैसे उसमें चौबीस अक्षर हैं, वैसे बाल्मीकि रामायण में चौबीस हजार श्लोक हैं, हमारे आचार्यों ने माना है कि एक एक अक्षर पर एक हजार श्लोकों की रचना की है और जैसे त के बाद अगला वर्ण गायत्री मंत्र में स है, ऐसे छंद में हलंत वर्ण का ग्रहण नहीं होता अकारांत का ही ग्रहण होता है तो त के बाद दूसरा अक्षर है स वैसे ही एक हजार श्लोक के बाद इसमें भी अगला अक्षर स है इस वैज्ञानिक रूप से बाल्मीकि रामायण का आरंभ है |

इसलिए गोस्वामी जी ने आरती लिखी है रामायण जी की उसमें एक शब्द का प्रयोग किया है- बाल्मीकि विज्ञान विशारद - बाल्मीकि जी से बड़ा विज्ञानी कोई नहीं हो सकता ऐसा विज्ञान है ,बाल्मीकि रामायण ऐसी रचना है ,ऐसा परिणन है ऐसा विज्ञान किसी काव्य में देखा ही नहीं गया, कि कोई इस प्रकार से ग्रंथ की रचना करे |

वैसे आपने सुना होगा गोपी गीत की रचना कनक मंजरी छंद में की गई है, तो जो प्रथम चरण का दूसरा अक्षर है वह दूसरे चरण का दूसरा अक्षर, वही तीसरे चरण का दूसरा अक्षर , वहीं चौथे चरण का दूसरा अक्षर |

जयति तेधिकं तो ज के बाद य है , जयति तेधिकं जन्मना व्रजः तो फिर श्रयत इन्दिरा -श्र के बाद पुनः य है,
श्रयत इन्दिरा शस्वदत्र हि फिर दयित दृश्यतां तीसरे चरण में दूसरा अक्षर है य दयित दृश्यतां दिक्षुतावकास् फिर त्वयि धृता सवस्त्वां विचिन्वते | फिर दूसरा अक्षर चौथे चरण का भी य है |

तो एकात गीतों पर कहीं वैज्ञानिकता दिखती है लेकिन बाल्मीकि रामायण के संपूर्ण रचना में तो वैज्ञानिकता ही दिखाई देती है | किसी ने गोस्वामी जी से पूछा कि बाबा आपकी दृष्टि में श्री सीताराम जी के गुण ग्राम का सबसे अधिक जानकार कौन है ?

गोस्वामी जी कहते हैं मेरी दृष्टि में दो लोग--

सीताराम गुणग्राम पुण्यारण्यविहारिणौ |
वन्दे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वर कपीश्वरौ ||
दोनों शुद्ध नहीं विशुद्ध है दोनों ज्ञानी नहीं विज्ञानी हैं, यह कौन है कहा हमारी दृष्टि में एक हनुमान जी हैं और एक महर्षि बाल्मीकि हैं | तो किसी ने पूछा की आप हनुमान जी को पहले महत्व दोगे कि महर्षि बाल्मीकि को ? तो गोस्वामी जी कहते हैं मैं पहले महर्षि बाल्मीकि को महत्व दूंगा -

वंदे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ  

पहले कवीश्वर फिर कपीस्वर | और आरंभ में भी विज्ञानी कहा ऐसे विशिष्ट ज्ञान या ऐसे कहें कि विशेष ज्ञान है महर्षि वाल्मीकि का | गायत्री मंत्र की संपूर्ण व्याख्या बाल्मीकि रामायण को स्वीकार किया गया |

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