श्री राम कथा हिंदी,बाल्मीकि रामायण से,भाग-5

✳ श्री राम कथा ✳

बाल्मीकि रामायण के प्रथम श्लोक में तीन विशेषण आचार्य के हैं , एक विशेषण शिष्य का है | देवर्षि नारद के तीन विशेषण, महर्षि बाल्मीकि का एक विशेषण |

तपः स्वाध्याय निरतं |

आचार्य को कैसा होना चाहिए तपस्वी भी होना चाहिए स्वाध्यायी भी होना चाहिए , केवल तपस्वी व्यक्ति भी आपके प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता और केवल स्वाध्यायी भी आपके प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता | श्रेष्ठ आचार्य वह है जिसमें तपस्या भी हो और स्वाध्याय भी हो--

तपश्च स्वाध्यायश्च तपः स्वाध्यायौतयोर्निरतं तप स्वाध्याय निरतं |

और दूसरा अर्थ है-- तप कहते हैं ब्रह्म को, ब्रह्म के स्वाध्याय से निरंतर लगा रहे ऐसा आचार्य श्रेष्ठ आचार्य है अथवा तप कहते हैं वेद को जो वेद के स्वाध्याय में निरंतर लगा रहे ऐसा आचार्य श्रेष्ठ आचार्य होता है |
और दूसरा विशेषण है- वाग्विदां वरम्  वाक शब्द के दो अर्थ होते हैं----

उच्चते असौ इति वाक्-उच्चते अनया इति वाक |

जिसका उच्चारण किया जाए उस वेद को भी वाक कहते हैं और जिसकी कृपा से उच्चारण किया जाए उस सरस्वती को भी वाक् कहते हैं |विद् लृ धातु भी और विद् ज्ञाने धातु भी है , तो इसका अर्थ हुआ कि जो वेद विद थे ( जो वेदों को जानने वाले थे ) श्रेष्ठ थे ऐसे नारद जी आचार्य थे अथवा सरस्वती की कृपा लाभ को भी पाने वाले नारद जी थे | आचार्य में दोनों होना चाहिए वेद का भी बोध हो और सरस्वती की कृपा भी हो वही श्रेष्ठ आचार्य होता है | और तीसरा विशेषण है--मुनि पुङ्गवम्

जो मनुष्य मननशील हो वह मुनि है |

मननाति इति मुनि पुङ्गव माने श्रेष्ठ, उस समय जितने भी मननशील लोग थे उसमें श्रेष्ठ थे देवर्षि नारद | एक बात और कहूं उपनिषद में कहा गया है--

तद् विज्ञानार्थं सगुरोमेवाभिगच्छेत

यदि विज्ञान पाना हो- विशेष ज्ञान पाना हो तो गुरु जी की शरण में जाओ ! कैसे गुरु की शरण में जाओ ? तो कहा-- समितपांणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठं
जो श्रोत्रिय हो और ब्रह्मनिष्ठ हो, श्रोत्रिय गुरु | आचार्य उसे कहते हैं जिसको श्रुति माने वेद का ज्ञान हो और ब्रह्मनिष्ठ आचार्य उसे कहते हैं जिसे ब्रह्म का साक्षात्कार किया हो | श्रोत्रिय आचार्य श्रुति ज्ञान से शिष्य के संशय का उच्छेदन करते हैं और ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ब्रह्म साक्षात्कार कराकर शिष्य के जीवन के संशय का उन्मूलन कर देते हैं |और देवर्षि नारद श्रोत्रिय और ब्रह्मनिष्ठ दोनों प्रकार के आचार्य हैं

तपः स्वाध्याय निरतं और वाग्विदां वरम् |

यह दो विशेषण उनके श्रोत्रिय होने का प्रमाण है, और मुनिपुङ्गवम्  उनके ब्रह्मनिष्ठ होने का प्रमाण है | और शिष्य को कैसा होना चाहिए कहा- तपस्वी होना चाहिए या वक्ता में तीन गुण हों |श्रोता को तपस्वी होना चाहिए-

तपो न्यासः न्यासः शरणागतिः |

श्रेष्ठ शिष्य वह है जो शरणागत हो अथवा श्रेष्ठ श्रोता वह है जिसने शरणागति ले ली हो जो वैष्णव हो , क्योंकि भागवत के महात्म्य में कहा गया है |
विष्णु दीक्षाविहीनानाधिकारी कथा श्रवेत |
तो यहां पर तपस्वी एक तात्पर्य यह भी है जो वैष्णव है वह श्रेष्ठ श्रोता है | क्योंकि वह कथा सुनना जानता है और इस बाल्मीकि रामायण के श्रोता तो रामजी हैं, अभी इसकी चर्चा आगें आएगी दुनिया की जितनी कथाएं हुई हैं सबके श्रोता भक्त दिखाई देते हैं , लेकिन यह ऐसी कथा है बाल्मीकि रामायण की जिसके श्रोता स्वयं भगवान ही हैं |

एक बात और कहूं वेद का अधिकार हर किसी को प्राप्त नहीं है लेकिन वही वेद जब रामायण के रूप में अवतार लेकर के आए तो इसमें सब का अधिकार हो गया , जो फल वेद परायण से होता है वही फल बाल्मीकि रामायण के पारायण, श्रवण से मिलता है | तो तपस्वी बाल्मीकि ने देवर्षि नारद से शोलह प्रश्न पूछें कौन कौन--
कोनवस्मिन साम्प्रतंलोके गुणमानकश्चवीर्यवान् |
धर्मज्ञश्च   कृतज्ञश्च    सत्यवाको   धृढवृतः ||
चारीत्रेण च कोयुक्तः सर्व भूतेषुकोहितः |
विद्वान कः कः समर्थश्च कश्चैकप्रियदर्शनः ||
आत्मवान कोजितक्रोधो दितिमानको न सूयकः|
कस्य विभ्यति देवाश्च जात रोसस्य संयुगे ||
एक बात और निवेदन कर दूं जिज्ञासा से ही हमारे भारतीय दर्शन का आरंभ होता है , दर्शन का तात्पर्य है वह ग्रंथ जिसके माध्यम से ईश्वर को देखा जा सके | दृश्यते अनेनेति दर्शनम् |

इसलिए हमारे यहां दर्शन ग्रंथ होते हैं, षड् शास्त्र होते हैं , षड् दर्शन होते हैं | तो निवेदन यह करना है, कि आप पाएंगे हमारे यहां का जो ब्रह्म सूत्र है, ब्रह्म सूत्र का अर्थ आप लोग समझते होंगे जैसे- जो बातें वैदिक ऋचाओं में लंबे लंबे वाक्यों में समझाई गई हैं, उन कई कई ऋचाओं को एक ही सूत्र में श्री वेदव्यास जी ने पिरोकर के ब्रह्म सूत्र की रचना की है |

अथवा जैसे आप लोग मैथमेटिक्स पढ़े होंगे उसमें अलजेब्रा,मैनश्योरेशन,त्रिकोणमिति पढ़ते हैं तो आपने अलजेब्रा में पड़ा- (a + b)2 = a2 + b2 + 2ab अपने एक सूत्र याद कर लिया तो सारे गणितीय सूत्र हल होते जाते हैं , वैसे ही ब्रह्म सूत्र का तात्पर्य है, जो ब्रह्म को हल कर दे सरलतम ढंग से सहज ढंग से | एक सूत्र आ गया तो आप धर्म के विज्ञान को समझ सकते हैं, और ब्रह्म सूत्र का आरंभ होता है-

अथातो ब्रह्म जिज्ञासा

तो जैसे वेदांत का आरंभ ब्रह्म जिज्ञासा से होता है वैसे बाल्मीकि रामायण का आरंभ भी ब्रह्म की जिज्ञासा से होता है | रामचरितमानस में भी ब्रह्म जिज्ञासा ही है--
राम कवनु प्रभु पूछहुं तोही
कहहि बुझाई कृपा निधि मोही | अथवा
प्रथम सो कारण कहो बिचारे
निर्गुण ब्रह्म सगुण वपु धारे |
पुनि प्रभु कहेउ राम अवतारा
बाल चरित पुनि कहेउ उदारा |
कहेउ जथा जानकी ब्याही
राजा तजा सो दूषण काही |

आदि लेकिन वेदांत की जिज्ञासा में जो उत्तर दिया गया वह है- जन्माद्यस्य यतः
 हमारे आचार्य कहते हैं शुष्ठु उत्तर है | लेकिन बाल्मीकि रामायण की जिज्ञासा के बाद जो उत्तर दिया गया है यह सरस जिज्ञासा है क्योंकि यहां उत्तर में भगवान के गुणों की चर्चा की गई है और भगवान के गुण बड़े सरस होते हैं |

इसलिए वेदांत की ब्रह्म जिज्ञासा की अपेक्षा बाल्मीकि रामायण की ब्रह्म जिज्ञासा श्रेष्ठ है, ऐसा हमारे आचार्यों ने स्वीकार किया है |महर्षि बाल्मीकि ने पूछा इस समय वर्तमान में धरती पर गुणवान कौन है गुणवान का अर्थ होता है सीलवान कौन है |

गुण्यते आवत्यते आश्रितजनैः पुनः पुनः अनुसन्धियते इति गुणः स्वशिल्यम् |

श्री गोविंद राज जी ने गुण शब्द का अर्थ है शील से लिया है और राम जी के सील की बड़ी विशद विवेचना की गई है | एक निवेदन करूं एक घटना मिलती है हनुमन्नाटकं में इसका जिक्र है और बाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में भी इसका सूत्र है , रावण एक सेनापति के मरने के बाद में युद्ध करने राम जी से आ गया राम जी ने विभीषण से पूछा भाई यह कौन है ? मित्र यह कौन है ?

तो विभीषण ने कहा प्रभु यह तो भैया लंकेश हैं राम जी ने कहा अभी तो बड़े बड़े योद्धा हैं मेघनाथ,कुंभकरण हैं मध्य में युद्ध करने कैसे आ गया रावण ? तो विभीषण जी ने कहा प्रभु यह अपने सेनापति से बहुत प्रेम करते थे इसलिए आ गए , राम जी ने कहा आया है तो लड़ने तो जाना पड़ेगा रामजी लड़ने आए राम जी ने रावण के छत्र चंवर को काट दिया सारथी को मार दिया रथ को भंग कर दिया, रावण निहत्था निहाल रणाङ्गण में खड़ा था रावण थर थर कांप रहा था रावण को लगा कि श्रीराम का अगला बांण मेरा प्राणांत कर देगा |

लेकिन जब बहुत क्षण व्यतीत हो गए रावण कांपता हुआ नेत्र खोला तो देखा मुस्कुराते हुए श्रीराम सामने खड़े थे , और भगवान श्री राम ने कहा रावण मै निहत्थे पर वार नहीं करता जाओ पूरा स्वस्थ होकर आना फिर मुझसे युद्ध करना रावण आज वापस आया, रात की बेला है महल की सबसे ऊपरी छत पर टहल रहा था पीछे से मंदोदरी ने कंधे पर हाथ रखा कहा महाराज आंखों में नींद नहीं है ?

रावण ने कहा मंदोदरी एक हृदय की बात कहूं मंदोदरी ने कहा- महाराज कहो , अच्छा यह बतलाओ दुनिया श्रीराम के विषय में क्या क्या कहती है मुझे बताओ ! अच्छा बताओ दुनिया कहती है ना कि पुत्र हो तो राम की तरह ? मंदोदरी ने कहा महाराज सच तो यही है दुनिया कहती है पुत्र हो तो श्रीराम की तरह |

रावण ने कहा मंदोदरी दुनिया कहती है ना कि भाई हो तो राम की तरह ?
मंदोदरी ने कहा हमारा हां सच तो यही है दुनिया कहती है भाई हो तो राम की तरह !
रावण मंदोदरी से पुनः कहा दुनिया कहती है ना मित्र हो तो राम की तरह ?
मंदोदरी ने कहा महाराज यह भी सत्य है दुनिया कहती है मित्र हो तो राम की तरह !

रावण ने कहा मंदोदरी आज रावण कहता है कि यदि शत्रु भी हो तो राम की तरह हो तो जीवन धन्य हो जाए | आज रावण का जीवन धन्य हो गया क्योंकि राम की तरह सत्रु मिला ,

राम जी की ऐसी शीलता है जिसने शत्रु के हृदय को भी जीत लिया |

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