कलियुग के राजा प्रायः म्लेक्षो के समान होंगे अधर्मी झूठ बोलने वाले होंगे, स्त्री बालक और गाय ब्राह्मणों की हत्या करने वाले होंगे, दूसरों की स्त्री और धन का हरण करने वाले होंगे, अपवित्र तथा रजोगुण तमोगुण स्वभाव के होंगे।
वानप्रस्थ और सन्यासी भी घर गृहस्ती जुटाकर व्यापार करने लगेंगे, कलयुग के अंत में तब संभल ग्राम में विष्णु यश नामक ब्राह्मण के यहां कल्कि भगवान का अवतार होगा, कल्कि भगवान अधर्म का नाश कर सतयुग की स्थापना करेंगे । राजा परीक्षित पूछते हैं गुरुदेव कलयुग में रहते हुए कलयुग के दोषों से बचने का क्या उपाय है ?
श्री शुकदेव जी कहते हैं-
राजा परीक्षित पूछते हैं गुरुदेव प्रलय कितने प्रकार के होते हैं श्री शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित प्रलय चार प्रकार के होते हैं- नित्य, नैमित्तिक, प्राकृतिक और आत्यान्तिक, जीव प्रतिक्षण मृत्यु की ओर बढ़ रहा है यह नित्य प्रलय है, एक हजार चतुर्युगी का ब्रह्मा जी का एक दिन होता है।
ब्रह्मा जी के एक दिन को कल्प कहते हैं एक कल्प में चौदह मनु होते हैं कल्प के अंत में इतने ही समय की रात्रि होती है उस समय तीनो लोक जल में लीन हो जाते हैं उसे नैमित्तिक प्रलय कहते हैं, ब्रह्मा जी की सौ वर्ष की आयु के पश्चात जो प्रलय होता है उसे प्राकृतिक प्रलय कहते हैं, जीव विवेक रूपी खड्ग के द्वारा जब माया मय अहंकार के बंधन को काट अपने स्वरूप में स्थित हो पाता है उसे आत्यन्तिक प्रलय कहते हैं।
[ कलयुग के राजाओं का वर्णन]
वित्तमेव कलौ नृणां जन्माचारगुणोदयः।
कलयुग मैं जिसके पास धन होगा उसे ही गुणिन समझा जाएगा जिसे बहुत बोलना आता है उसे पंडित समझा जाएगा, दंभी पाखंडी को साधु समझा जाएगा, दूर के तलाब को लोग तीर्थ समझेंगे, अपना पेट भरना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ होगा, कलयुग में वर्णाश्रम का धर्म बताने वाला वेद मार्ग नष्ट हो जाएगा।वानप्रस्थ और सन्यासी भी घर गृहस्ती जुटाकर व्यापार करने लगेंगे, कलयुग के अंत में तब संभल ग्राम में विष्णु यश नामक ब्राह्मण के यहां कल्कि भगवान का अवतार होगा, कल्कि भगवान अधर्म का नाश कर सतयुग की स्थापना करेंगे । राजा परीक्षित पूछते हैं गुरुदेव कलयुग में रहते हुए कलयुग के दोषों से बचने का क्या उपाय है ?
श्री शुकदेव जी कहते हैं-
भगवान श्री कृष्ण के कीर्तन से कलयुग के दोषों से बचा जा सकता है
सतयुग में जो ध्यान करने से, त्रेता में जो यज्ञ से और द्वापर में सेवा से जिस फल की प्राप्ति होती है, कलयुग में वह श्री कृष्ण के कीर्तन से प्राप्त हो जाता है।राजा परीक्षित पूछते हैं गुरुदेव प्रलय कितने प्रकार के होते हैं श्री शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित प्रलय चार प्रकार के होते हैं- नित्य, नैमित्तिक, प्राकृतिक और आत्यान्तिक, जीव प्रतिक्षण मृत्यु की ओर बढ़ रहा है यह नित्य प्रलय है, एक हजार चतुर्युगी का ब्रह्मा जी का एक दिन होता है।
ब्रह्मा जी के एक दिन को कल्प कहते हैं एक कल्प में चौदह मनु होते हैं कल्प के अंत में इतने ही समय की रात्रि होती है उस समय तीनो लोक जल में लीन हो जाते हैं उसे नैमित्तिक प्रलय कहते हैं, ब्रह्मा जी की सौ वर्ष की आयु के पश्चात जो प्रलय होता है उसे प्राकृतिक प्रलय कहते हैं, जीव विवेक रूपी खड्ग के द्वारा जब माया मय अहंकार के बंधन को काट अपने स्वरूप में स्थित हो पाता है उसे आत्यन्तिक प्रलय कहते हैं।
Bhagwat Katha in Hindi
श्री शुकदेव जी राजा परीक्षित को अंतिम उपदेश देते हैं-
राजन मैं मरूंगा इस प्रकार की पशुता मूलक बुद्धि का त्याग कर दो यह शरीर पहले वही था अब पैदा हुआ फिर नष्ट हो गया परंतु आत्मा का नाश नहीं होता, मैं ब्रह्मा हूं ऐसा चिंतन कर अपने स्वरूप में स्थित हो जाओ तक्षक आएगा तुम्हें डसेगा इसकी चिंता मत करो परीक्षित अभी तक तुमने प्रश्न किया मैंने उसका उत्तर दिया।
परीक्षित कहते हैं- प्रभु आपकी करुणा कृपा से मैं कृतकृत्य हो गया अपने स्वरूप में स्थित हो गया अब मुझे तक्षक से कोई डर नहीं।
श्री शुकदेव जी ने परीक्षित की इस स्थिति को देखा तो चलने लगे राजा परीक्षित ने श्री शुकदेव जी का पत्र पुष्पों से पूजन किया श्री शुकदेव जी से कहां से आए थे और कहां चले गए इसका भागवत में कहीं वर्णन नहीं।
तक्षक ब्राह्मण के वेश में आकर परीक्षित को डस लिया तक्षक के डसते ही राजा परीक्षित जलकर भस्म हो गए, चारों ओर हाहाकार मच गया परीक्षित पुत्र जनमेजय ने सर्पेस्टि यज्ञ किया सर्प आकर भस्म होने लगे जब तक्षक नहीं आया तो जनमेजय ने ब्राह्मणों से कहा अभी तक तक्षक सर्प नहीं आया तो ब्राह्मणों ने कहा उसने इंद्र की शरण ले रखी है।
जन्मेजय ने कहा अपराधी को शरण देने वाला अपराधी होता है ऐसा मंत्र पढ़ो कि तक्षक के साथ इंद्र आकर भस्म हो जाए, ब्राह्मणों ने जैसे ही मंत्र पढ़ा इंद्र का सिंहासन डोलने लगा देव गुरु बृहस्पति आए उन्होंने जन्मेजय से कहा राजन प्राणियों को अपने अपने कर्मों के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है इसमें किसी का कोई दोष नहीं है।
ब्राह्मण के श्राप के कारण तक्षक ने परीक्षित को डसा इसमें तक्षक का क्या अपराध है, इसलिए तुम सर्प यज्ञ बंद करो जन्मेजय ने सर्प यज्ञ बंद कर दिया। आज भी जन्मेजय का नाम पुकारा जाता है तो सर्प डर के मारे भाग जाते हैं।
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पहले स्कंध को अधिकार कहते हैं इसमें उन्नीस अध्याय है जिसमें तीन प्रकार के श्रोता वक्ता और माता कुंती द्रोपति और उत्तरा तीन माताओं की कथा का वर्णन किया गया है।
दूसरे स्कंध को सामान कहते हैं इसमें दस अध्याय हैं जिसमें श्रवण को प्रधान तथा चतुश्लोकी भागवत का वर्णन किया गया है।
तीसरे स्कंध को सर्ग कहते हैं इसमें तैतीस अध्याय हैं जिसमें ब्रह्मा जी से पूर्व की सृष्टि का वर्णन एवं कपिल भगवान के अवतार की कथा कपिल देवहूती संवाद का वर्णन किया गया है।
चौथे स्कंध को विसर्ग कहते हैं इसमें इकतीस अध्याय है, इसमें धर्म अर्थ काम मोक्ष इन चार पुरुषार्थ का चार उपाख्यान दक्ष ध्रुव पृथु और प्राचीन बरही के माध्यम से वर्णन किया गया है।
पांचवें स्कंध को स्थिति कहते हैं इसमें छब्बीस अध्याय हैं जिसमें भगवान की व्यवस्था व्यवस्थित है, यह भूगोल खगोल और जड़ भरत आदि के चरित्र के द्वारा बताया गया है।
छटवे स्कंध को सृष्टि कहते हैं इसमें उन्तीस अध्याय है जिसमें अजामिल और वृत्रासुर के प्रसंग से बतलाया गया है कि भगवान की कृपा हो तो असुर और पतित का भी उद्धार हो जाता है।
सातवें स्कंध को ऊंती कहते हैं इसमे पन्द्रह अध्याय हे इसमें मानव स्वभाव, देव स्वभाव और असुर स्वभाव का वर्णन किया गया है।
आठवें स्कंध को मन्वंतर कहते हैं इसमें चोबिस अध्याय हैं जिसमें किस मन्वन्तर मे किस भगवान का अवतार हुआ यह बताया गया है।
नवम स्कंध को ईशानु कथा कहते हैं इसमें चोबिस अध्याय हैं, प्रारंभ के तेरह अध्याय में सूर्यवंश का तथा बाद के ग्यारह अध्यायों में चंद्र वंश का वर्णन किया गया है।
दसवें स्कंध को निरोध कहते हैं इसमें नब्बे अध्याय हैं, पूर्वार्ध के उन्चास अध्याय में भगवान श्याम सुंदर वृंदावन लीला मथुरा लीला और उत्तरार्ध के इकतालिस अध्यायों में द्वारका लीला का वर्णन किया गया है।
ग्यारवे स्कंध को मुक्ति कहते हैं जिसमें इकतीस अध्यायो में भगवान ने ज्ञान वैराग्य योग और सांख्य का वर्णन किया है।
बारहवे स्कन्ध को आश्रय कहते हैं जिसमें सबके आश्रय पर ब्रह्म परमात्मा है यह श्री शुकदेव जी ने अपने अंतिम उपदेश के रूप में वर्णन किया है। श्रीमद्भागवत का उपक्रम जन्माध्य्स्य इस प्रथम श्लोक के अंतिम चरण सत्यं परं धीमही से हुआ था ओर भागवत का उपसहांर भी इस श्लोक के अंतिम चरण सत्यं परं धीमहि से ही होता है अब अंतिम श्लोक हम सब स्वर में बोलेंगे-
भगवान के नामों का संकीर्तन सारे पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है उनके चरणों में समर्पण सर्वदा के लिए ये सब प्रकार के दुखों को शांत कर देती है उन परम तत्व रूप श्री हरि को मैं बारंबार नमस्कार करता हूं......?
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