भगवान शिव की क्रोध अग्नि से कामदेव का भस्म होना
पद्म पुराण के सृष्टि खंड में पार्वती जी के जन्म के पश्चात कथा आती है, नारद जी के कहने पर इंद्र कामदेव का स्मरण करता है और उससे कहता है- मां पार्वती और भोलेनाथ का इसी चैत्र मास में संयोग कराओ | कामदेव कहने लगा देवराज काम बांण तो मुनियों और दानवों के लिए बड़ा भयंकर है, किंतु भगवान भोलेनाथ को वश में करना बड़ा कठिन है |
इंद्र कहने लगा मैं तुम्हारे पराक्रम को जानता हूं,
तुम अवश्य इस कार्य को पूर्ण करोगे मुझे विश्वास है , इंद्र के ऐसा कहने पर कामदेव अपने मित्र मधुमास को लेकर रति के साथ भोलेनाथ के यहां पहुंच गया हिमालय के शिखर पर , वहां पहुंचकर वह कार्य की योजना बनाने लगा सोचने लगा कि महात्मा पुरुष को अपने काम बांण से घायल करना बड़ा कठिन काम है | क्योंकि वह अपने आत्मानंद में मस्त रहते हैं , फिर कामदेव ने विचार किया कि मैं महादेव के हृदय में जाकर इंद्रियों पर अपना प्रभाव डालूंगा और अपने कार्य को पूरा करूंगा | जैसे ही काम दे उस पावन भूमि पर अपने चरण रखता है वहां का वातावरण देखता है विचार करने लगा मानो यह पृथ्वी का सार है, बहुत दिव्य स्थान है , वहां की बेदी, देवदारू के वृक्ष बड़े सुशोभित हो रहे थे | तो जहां तपस्या होती है वहां की सुंदरता की एक अलग ही आभा होती है
वह कामदेव धीरे धीरे भोलेनाथ की तरफ बढ़ने लगा ,
वो नहीं जानती था कि मेरा अंत समय समीप है, भगवान शिव को देखा सुंदर समाधि लगी हुई है , उनके अर्ध खुले नेत्र कमल के समान सुंदर शोभायमान हो रहे थे | शरीर मे मृगछाला धारण किए हुए थे , सर्पों की माला धारण किये हैं, उनकी जटा हवा के प्रवाह से लहरा रहे थे बड़ी सुंदर भगवान शिव की शोभा थी | कामदेव आगे बढ़ता गया और कान के मार्ग से वह भोलेनाथ के हृदय में प्रवेश कर गया, काम का आधार भूत मधुर झंकार को भगवान शिव ने सुना तो उनके अंदर काम की लालसा उत्पन्न हुई , उन्होंने सती का स्मरण करना प्रारंभ किया | देवों के देव महादेव क्षण भर के लिए काम को प्राप्त हुए किंतु यह अवस्था थोड़ी ही समय की थी | भोलेनाथ कामदेव का रचा हुआ यह पूरा खेल जान गए उनके हृदय में थोड़ी क्रोध उत्पन्न हुआ , लेकिन वह भगवान का ध्यान करके समाधिस्थ हो गए , समाधि लगते ही कामदेव तो हृदय में था जलने लगा छटपटा कर बाहर आया इसके बाद कामदेव ने अपने पुष्प धनुष पर मोहनास्त्र का सन्धान कर के..भगवान शिव के हृदय में प्रहार किया |
तभी भगवान शिव को क्रोध आया उन्होंने दृष्टिपात किया उनका मुख क्रोध के कारण अत्यंत भयानक दिखने लगा, तीसरे नेत्र में भयंकर ज्वाला निकलने लगी, भगवान शिव का वह तीसरा नेत्र ऐसा दिखाई पड़ रहा था मानो तीनों लोकों को भस्म कर दे | उस तीसरे नेत्र की ज्वाला से मदन का प्राणांत हो गया, देवता लोग त्राहि-त्राहि कर चिल्लाते रह गए | कामदेव को भष्म करने के बाद वह तीसरा नेत्र जगत को नष्ट करने के लिए उद्यत हो उठा , भगवान शिव ने परमात्मा का ध्यान किया और तीसरी नेत्र को शांत किया | तभी कामदेव की पत्नी रति ने घुटने टेक कर भगवान शिव के सामने जोर जोर से विलाप करने लगी, और शिवजी की स्तुति की- जगत के एकमात्र स्वामी देवों के देव महादेव आप प्राकृतिक गुणों से रहित हैं, आपने ही कर्मों को उत्पन्न किया है,
आपका स्वरूप अनंत है, आप को मेरा नमस्कार है |
मैं अपने पति की प्राप्ति के लिए आपकी शरण में आई हूं , भगवान भोलेनाथ बड़े दयालु हैं वह रति की स्तुति से प्रसन्न होकर कहने लगे समय आने पर कामदेव शीघ्र ही उत्पन्न होगा | वही श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में आया |